सच के सिपाही

सूबेदार मेजर योगेंद्र सिंह यादव एकमात्र ऐसे सैनिक हैं, जिन्हें जिंदा रहते सेना के सर्वोच्च सम्मान 'परमवीर चक्र' से सम्मानित किया गया है।

युद्ध के इतिहास में यह एक अद्वितीय अभियान था। बाद में पोस्ट का नाम इस अभियान में विशिष्ट योगदान के लिए एक बहादुर सैनिक के नाम पर 'बाना टॉप' रख दिया गया था।

शहीद मनीष कारपेंटर मध्य प्रदेश के राजगढ़ के रहने वाले थे। शहीद का पार्थिव शरीर 26 अगस्त उनके गृह नगर खुजनेर पहुंचा। यहां पर मनीष को अंतिम विदाई देने के लिए हजारों लोग इकट्ठे हुए।

जम्मू-कश्मीर (Jammu-Kashmir) से आतंकवाद (Terrorism) को उखाड़ फेंकने के लिए शुरू किए गए अभियानों में भारतीय सेना (Indian Army) और सुरक्षाबलों को भारी कीमत चुकानी पड़ी है।

जवानों के बलिदान को याद रखने और युद्ध में उनकी शौर्य गाथा को बताने के लिए युद्ध स्मारक बनाए जाते हैं। देश में कई जगहों पर युद्ध स्मारक बनाए गए हैं।

चीनी सेना का उद्देश्य रेजांगला दर्रे पर कब्जा कर सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण चुशूल गैरिसन का लेह से एकमात्र सड़क संपर्क तोड़ना था।

आजादी की लड़ाई के दौरान क्रांतिकारियों के संगठन हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन (एचएसआए) में चंद्रशेखर आजाद (Chandra Shekhar Azad) के अलावा दूसरा शानदार शूटर था, तो वो थे शिवराम राजगुरु (Shivaram Rajguru)।

दुश्मनों को खदेड़ना भारतीय सेना के लिए बड़ी चुनौती थी। इस युद्ध के दौरान जम्मू-कश्मीर स्थित तिथवाल क्षेत्र में लंबे समय तक एक भीषण लड़ाई लड़ी गई।

भीषण गोलाबारी के बीच, 15000 फीट से अधिक ऊंचाई वाले खड़ी ढाल के पहाड़ पर चढ़ाई कर, आमने-सामने की लड़ाई में घुसपैठियों को मार गिराया था।

जम्मू-कश्मीर (Jammu-Kashmir) के बारामूला में आतंकियों (Terrorists) ने विस्फोट कर दिया। इस विस्फोट में सेना का एक जवान शहीद हो गया। शहीद जवान का नाम मनीष विश्वकर्मा (Martyr Manish Vishwakarma) है।

रवि सिंह (Ravi Singh) की 2 साल पहले ही शादी हुई थी। रवि के घरवाले चाहते थे कि जल्द से जल्द उनके घर में किलकारियां गूंजें लेकिन ये इच्छा अधूरी ही रह गई।

जंग के मैदान में उतरे तो उनकी उम्र उस वक्त महज 21 साल थी। उनके इस शौर्य के लिए उन्हें सेना के सर्वोच्च सम्मान 'परमवीर चक्र से नवाजा गया।

युद्ध में वीरता का प्रदर्शन करने के लिए उन्हें तत्कालीन राष्ट्रपति डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद ने 26 जनवरी 1950 को 'वीर चक्र' से सम्मानित किया था।

युद्ध में उनके पराक्रम का परिचय तब देखने को मिला जब वह अपने साथियों के साथ फीचूगंज पहुंचे थे। दरअसल यहां पर उन्हें नदी को रेलवे पुल के रास्ते पार करना था।

युद्ध 18 हजार फीट की ऊंचाई पर लड़ा गया। पाकिस्तान मानता है कि उसके करीब 357 सैनिक ही मारे गए थे। वहीं युद्ध में भारत के 527 जवान शहीद हुए।

चौबीस घंटे उनकी सेवा में भारतीय सेना के पांच जवान लगे रहते हैं। उनका बिस्तर लगाया जाता है। प्रमोशन और छुट्टियां उन्हें आज भी मिलते हैं।

8 और 9 दिसंबर की रात को इस ऑपरेशन लागू किया गया। एक मिसाइल शिप और दो युद्ध-पोत के जरिए कराची के तट पर मौजूद जहाजों के ग्रुप पर हमला किया गया था।

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