1971 की लड़ाई: परमवीर चक्र से सम्मानित अरुण खेत्रपाल ने पाक के 10 टैंकों के उड़ा दिए थे चिथड़े

जंग के मैदान में उतरे तो उनकी उम्र उस वक्त महज 21 साल थी। उनके इस शौर्य के लिए उन्हें सेना के सर्वोच्च सम्मान ‘परमवीर चक्र से नवाजा गया।

Arun Khetarpal

Second Lieutenant Arun Khetarpal

जंग के मैदान में उतरे तो उनकी उम्र उस वक्त महज 21 साल थी। उनके इस शौर्य के लिए उन्हें सेना के सर्वोच्च सम्मान ‘परमवीर चक्र से नवाजा गया।

पाकिस्तान (Pakistan) के खिलाफ जब भी भारतीय सेना (Indian Army) जंग के मैदान में उतरी है, हमेशा जीत हासिल करके ही वापस लौटी है। पाकिस्तानी सैनिकों पर हमारे देश के जवान बुरी तरह से टूट पड़ते हैं और उन्हें भगा-भगाकर मारते हैं। ऐसा ही 1971 की लड़ाई में भी हुआ था। सेना ने पाकिस्तानियों को बुरी तरह से धूल चटा दी थी। यूं तो पूरी सेना को ही इस जीत के लिए श्रेय मिलता है लेकिन कुछ जवान ऐसे होते हैं जिनके शौर्य से देश का नाम और ऊंचा हो जाता है।

1971 की लड़ाई के एक ‘हीरो’ ऐसे थे जिन्होंने अकेले ही दुश्मन के टैंको को नेस्तनाबूद कर दिया था। सेना के इस जवान का नाम था सेकंड लेफ्टिनेंट अरुण खेत्रपाल। उन्होंने लड़ाई में पंजाब-जम्मू सेक्टर के शकरगढ़ में शत्रु सेना के 10 टैंक नष्ट कर दिए थे। जब वह जंग के मैदान में उतरे तो उनकी उम्र उस वक्त महज 21 साल थी। उनके इस शौर्य के लिए उन्हें सेना के सर्वोच्च सम्मान ‘परमवीर चक्र से नवाजा गया।

अरुण खेत्रपाल की स्क्वॉड्रन 17 पुणे हार्स 16 दिसंबर को शकरगढ़ में थी। उस दिन भीषण युद्ध हुआ। दअरसल 16 दिसंबर को तड़के पूना हॉर्स के भीमकाय टैंक एक लाइन बनाते हुए आगे बढ़ रहे थे। 16 मद्रास के कमांडिंग ऑफीसर ने खबर भिजवाई थी कि एक बड़े हमले के लिए पाकिस्तानी टैंक जमा हो रहे हैं। इस तरह भारतीय सेना भी पहले से मुस्तैद हो गई। जैसे ही पाकिस्तानी टैंकों ने हमला शुरू किया, अरुण खेत्रपाल और उनके साथियों ने भी जवाबी हमला बोल दिया।

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इस दौरान एक गोला अरुण खेत्रपाल के एक साथी के टैंक में जा लगा। इस दौरान खेत्रपाल अकेले ही दुश्मन से लोहा लेते रहे लेकिन हाईकमान ने उन्हें वापस आने के लिए कहा लेकिन उन्होंने मना कर दिया। इस दौरान जिस आखिरी टैंक पर अरुण ने निशाना लगाया वो पाकिस्तान के स्कवार्डन कमांडर का टैंक था। पाकिस्तानी टैंक और उनके टैंक का आमना-सामना हुआ तो दोनों ने एक-दूसरे पर निशाना लगाया।

दुश्मन देश का सिपाही तो टैंक से निकल गया लेकिन खेत्रपाल नहीं निकल सके और वह शहीद हो गए। हालांकि तब तक दुश्मन की कमर टूट चुकी थी। वह पाक सेना से लोहा लेते हुए 16 दिसंबर, 1971 को वीरगति को प्राप्त हुए थे।

सेकंड लेफ्टिनेंट खेत्रपाल के शौर्य तथा बलिदान को देखते हुए उन्हें मरणोपरांत परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया। बता दें कि वह एक सैनिक परिवार से आते थे। उनके दादा पहले विश्व युद्ध और पिता दूसरे विश्व युद्ध और 1965 की लड़ाई में लड़ चुके थे। उनमें बचपन से ही नेतृत्व और जिम्मेदारी के गुण थे।

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