Shivaram Rajguru Birth Anniversary: राजगुरु को क्रांतिकारी साथी कहते थे- ‘द मैन ऑफ एचएसआरए’

आजादी की लड़ाई के दौरान क्रांतिकारियों के संगठन हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन (एचएसआए) में चंद्रशेखर आजाद (Chandra Shekhar Azad) के अलावा दूसरा शानदार शूटर था, तो वो थे शिवराम राजगुरु (Shivaram Rajguru)।

Shivaram Rajguru

राजगुरु।

Shivaram Rajguru Birth Anniversary: आजादी की लड़ाई के दौरान क्रांतिकारियों के संगठन हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन (एचएसआए) में चंद्रशेखर आजाद (Chandra Shekhar Azad) के अलावा दूसरा शानदार शूटर था, तो वो थे शिवराम राजगुरु (Shivaram Rajguru)। भगत सिंह (Bhagat Singh) के विदेशी विद्वानों की किताबों के ज्ञान को कोई भारतीय वैदिक ग्रंथों और संस्कृत भाषा के अपने ज्ञान से एचएसआरए की मीटिंग्स में दिलचस्प मुकाबला करता था, तो वो थे राजगुरु। आज इनकी जयंती है।

राजगुरु (Shivaram Rajguru) का जन्म 24 अगस्त, 1908 को पुणे के खेड़ में हुआ था। राजगुरु सावन के सोमवार को पैदा हुए थे, इसलिए उनका नाम शिव के नाम पर रखा गया था। 1908 में ही खुदीराम बोस को फांसी की सजा हुई थी, राजगुरु के विचार सुनकर लोग कहते थे कि उनके अंदर खुदीराम बोस की आत्मा घुस गई है। जब वे महज 6 साल के थे, उनकी मां की मौत हो गई।

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राजगुरु की मां की मौत के बाद पूरे घर की जिम्मेदारी उनके बड़े भाई दिनकर पर आ गई। दिनकर अभी 10वीं में पढ़ रहे थे। दिनकर को पुणे के राजस्व विभाग में नौकरी मिल गई। इसके कुछ समय बाद उन्होंने शादी और वहीं चले गए। कुछ समय बाद राजगुरु भी भाई के पास पुणे आए गए। वे न्यू इंग्लिश हाई स्कूल में पढ़ने लगे। राजगुरु (Shivaram Rajguru) संस्कृत के ग्रंथ पढ़ने में मन लगाते थे लेकिन उनके भाई दिनकर उन्हें अंग्रेजी पर ध्यान देने के लिए कहा करते थे।

राजगुरु अपने भाई को साफ कहते थे कि उन्हें अंग्रेजी हुकूमत के लिए काम नहीं करना है तो वो अंग्रेजी भाषा क्यों सीखें। साल 1924 में उनकी परीक्षाओं के नतीजे आए और उनके अंग्रेजी भाषा में काफी कम अंक आए, जिस पर दिनकर ने उन्हें दो वाक्य अंग्रेजी में बोलने को कहा नहीं तो घर छोड़ने के लिए कह दिया। राजगुरु (Shivaram Rajguru) ने घर छोड़ने का फैसला लिया। उनकी जेब में बस 3 आने थे। वे नासिक पहुंचे।

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नासिक में उन्होंने कुछ दिनों तक संस्कृत पढ़ी। वहां से वे झांसी पहुंचे। वहां एकनाथ सदाशिव गोरे ने संस्कृत की शिक्षा के लिए उन्हें काशी जाने की सलाह दी। वहां एक स्कूल संगवेद संस्कृत स्कूल में राजगुरु (Shivaram Rajguru) ने पढ़ाई शुरू कर दी। ढाई साल तक वहां संस्कृत की पढ़ाई की। उन्होंने इस दौरान भाई को एक चिट्ठी लिखी और बताया कि काशी में हूं।

भाई ने पांच रुपए महीने भेजने शुरू कर दिए। लेकिन उससे उनका खर्च नहीं चलता था। उन्होंने ट्यूशन पढ़ाकर खर्च निकालना शुरू किया। एक बार जब वो सूर्य नमस्कार कर रहे थे, तो मराठी स्टाइल में उनको संस्कृत श्लोक पढ़ते देख एक लड़का उनके पास आया, दोनों मित्र बन गए। उस लड़के का नाम था श्रीराम बलबंत सावरगांवकर।

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सावरगांवकर ने ही राजगुरु (Shivaram Rajguru) को आजाद और बाकी क्रांतिकारियों से मिलवाया। राजगुरु को उनके अंदाज और शूटिंग स्किल्स के लिए उन्हें टाइटल दिया गया ‘द मैन ऑफ एचएसआरए’। सांडर्स की हत्या करने में भी राजगुरू शामिल थे, आजाद के मना करने के बाद भी वह पिस्तौल लेकर सेंट्रल असेम्बली चले गए और उसी पिस्तौल से फायर कर दिया।

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इस कांड में तीनों को फांसी की सजा सुनाई गई। कहा जाता है कि सांडर्स हत्या के मामले की सुनवाई के दौरान अंग्रेज जज को राजगुरु (Shivaram Rajguru) संस्कृत भाषा में जवाब देते थे और भगत सिंह से कहते थे कि वो इसका अनुवाद करें। 23 मार्च, 1931 को भारत मां का यह लाल हंसते हुए देश की आजादी के लिए फांसी के फंदे पर चढ़ गया।

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