Sukhdev Thapar: अंग्रेजी हुकूमत की नींव हिला देने वाले सुखदेव जब बंद कमरे में रोए…

एक रोज बैठक के दौरान सुखदेव ने भगत सिंह को ताना दे मारा। सुखदेव ने कहा कि कॉलेज की वो लड़की जो तुम्हें देख कर मुस्कराया करती थी, तुम उसके इश्क में गिरफ्तार हो गए हो।

Sukhdev Thapar

खुद मिट के बेनकाब किया पर्दा ए हयात
तस्वीर-ए-जिंदगी का तो अवकाश हो गया,
यूं हुरमते वतन पे हुआ करते हैं फिदा
दुश्मनों को आज ये एहसास हो गया।

Sukhdev Thapar: 1930 में लाहौर के अखबार में छपी ये कविता समर्पित है हमारे उस नायक को जिन्होंने ऐतिहासिक लाहौर कांड को अंजाम देकर अंग्रेज हुकूमत की नींव हिलाकर रख दी थी। जिनका नाम भारतीय शहीदों की उस प्रथम पंक्ति में हमेशा सम्मान और आदर से लिया जाता है जिसमें भगत सिंह, बटुकेश्वर दत्त, राजगुरु, चंद्रशेखर आजाद जैसे क्रांतिकारियों के नाम हैं…. अमर शहीद सुखदेव थापर (Sukhdev Thapar)।

सुखदेव थापर का जन्म 15 मई, 1907 को पंजाब के शहर लायलपुर में हुआ था। सुखदेव की मां का नाम था रल्ली देवी और पिता का नाम राम लाल थापर था। सुखदेव ने अपने पिता को कभी नहीं देखा क्योंकि उनके पैदा होने के तीन महीने पहले ही उनका निधन हो गया था। सुखदेव का पालन पोषण उनके ताऊ अचिंत्य राम ने किया था। लाला अचिंत्य राम आर्य समाज से प्रभावित थे, जिसका असर सुखदेव पर भी पड़ा था। बचपन से दलित और अछूत कहे जाने वाले बच्चों के बीच इनका उठना बैठना था। उनकी हालत देख इनका मन पसीजा तो गांव-गांव घूमकर ऐसे बच्चों को पढ़ाना शुरू कर दिया।

बचपन में ही बुलंद कर दिया था बगावत का नारा

दौर था 1909 का। जालियांवाला बाग में अंधाधुंध गोलियां चलाकर अंग्रेजों ने जो भीषण नरसंहार किया था, उसकी वजह से देश में भय, दहशत और गुस्से का माहौल व्याप्त था। देशभर के युवाओं का खून खौल रहा था। उस वक्त सुखदेव बमुश्किल 12 साल के थे। घटना के बाद लाहौर के सभी प्रमुख इलाकों में मार्शल लॉ लगा दिया गया था। स्कूल, कॉलेज वगैरह में ब्रिटिश पुलिस अधिकारी हर वक्त तैनात रहते थे। छात्रों को सख्त हिदायत दी गई थी कि जब कोई अंग्रेज पुलिस अधिकारी दिखे तो उसे सलाम करना है। सुखदेव के स्कूल में भी अंग्रेज अधिकारी तैनात थे। लेकिन एकबार सुखदेव ने पुलिस अधिकारी को सैल्यूट करने से इंकार कर दिया। उनके साथियों और टीचर्स ने बहुत समझाया पर वे नहीं माने, सलाम नहीं किया। इसका खामियाजा उन्हें अंग्रेज अधिकारियों की बेतें खाकर भुगतना पड़ा।

नेशनल कॉलेज में हुई भगत सिंह से मुलाकात

लायलपुर के सनातन धर्म हाई स्कूल से दसवीं की पढ़ाई पूरी करने के बाद सुखदेव (Sukhdev Thapar) ने लाहौर के नेशनल कॉलेज में एडमिशन लिया। यहीं पर उनकी मुलाकात भगत सिंह (Bhagat Singh) से हुई। दोनों की मंजिल और राह एक ही थी। दोनों का मकसद था भारत की आजादी। मुलाकात दोस्ती में बदली, फिर तो जैसे दोनों एक दूसरे के पूरक बन गए। कॉलेज की कैंटीन में दोनों घंटों साथ बैठते, तमाम विषयों पर चर्चा करते। चर्चा का सबसे खास विषय हुआ करता था कि आखिर कैसे देश को अंग्रेजों से आजाद कराया जाए।

सुखदेव, भगत सिंह और चंद्रशेखर आजाद (Chandra Shekhar Azad) के संपर्क में आ गए थे। पंजाब और उत्तर भारत में संगठन की नई इकाईयां स्थापित करने में उनकी अहम भूमिका रहती थी। फिर 1929 में जब नेशनल असेंबली में बम फेंकने की योजना को आखिरी रूप देने के लिए बैठकों का दौर शुरू हुआ तो ज्यादातर क्रांतिकारियों का सुझाव था कि ये जिम्मा भगत सिंह को नहीं सौंपा जाए। सबका मानना था कि भगत सिंह को पहले ही पुलिस लाहौर षड़यंत्र केस में ढूंढ रही है।

नायकः अमर शहीद सुखदेव थापर की अमर दास्तान

साथ ही क्रांतिकारियों को भगत सिंह, उनके कौशल और उनके नाम की बहुत जरुरत है। इसलिए क्रांतिकारी उन्हें इस काम में आगे करके खतरा नहीं मोल लेना चाहते थे। लेकिन सुखदेव (Sukhdev Thapar) इस बात को लेकर एकदम अड़े हुए थे। उनका मानना था कि नेशनल असेंबली में बम भगत सिंह को ही फेंकना चाहिए। सुखदेव की दलील थी कि भगत सिंह ऐसी शख्सियत हैं कि उनके बम फेंकने से देश में एक अलग ही माहौल पैदा होगा। और जब कोर्ट में मामला चलेगा तो जिस तरह भगत सिंह अपना पक्ष रखेंगे, जिरह करेंगे उससे देश में एक अलग तरह की चेतना उत्पन्न होगी। बतौर सुखदेव ये काम भगत सिंह के अलावा और कोई कर ही नहीं सकता था।

जब सुखदेव ने भगत सिंह को मारा ताना

शुरुआती बैठकों में तो भगत सिंह इस बात पर चुप्पी साधे रहे, फिर एक रोज बैठक के दौरान सुखदेव ने भगत सिंह को ताना दे मारा। सुखदेव ने कहा कि कॉलेज की वो लड़की जो तुम्हें देख कर मुस्कराया करती थी, तुम उसके इश्क में गिरफ्तार हो गए हो। इसीलिए मरना नहीं चाहते क्योंकि तुम्हें जिंदगी से प्यार हो गया है। माहौल में अचानक गर्माहट आ गई। उस दिन की बैठक वहीं खत्म हो गई। फिर अगले दिन क्रांतिकारियों बैठक शुरू हुई तो भगत सिंह ने आगे बढ़कर कहा कि नेशनल असेंबली में बम फेंकने का जिम्मा वो उठाना चाहते हैं। चंद्रशेखर आजाद समेत तमाम क्रांतिकारियों ने उन्हें समझाया लेकिन भगत सिंह नहीं माने।

बंद कमरे में बहुत देर तक रोए सुखदेव 

बाद में कई क्रांतिकारियों ने सुखदेव (Sukhdev Thapar) को इस बात के लिए पत्थर दिल तक कह डाला कि उन्होंने अपने दोस्त को मौत के मुंह में भेज दिया। कहा जाता है कि जब भगत सिंह गिरफ्तार हुए, तो उसके बाद सुखदेव बंद कमरे में बहुत देर तक रोए। उन्हें इस बात की टीस थी कि उन्होंने अपने सबसे प्यारे दोस्त को कुर्बान कर दिया।

8 अप्रैल, 1929 को असेंबली में बम फेंकना तय किया गया था। उससे तीन दिन पहले यानी 5 अप्रैल को दिल्ली के सीताराम बाजार में जिस घर में भगत सिंह रहते थे, उन्होंने वहां से सुखदेव को एक खत लिखा। इस खत को शिव वर्मा ने सुखदेव तक पहुंचाया। और 13 अप्रैल को जब पुलिस ने सुखदेव को गिरफ्तार किया तो उनके पास से इस खत को बरामद किया गया।

शहीद भगत सिंह का खत सुखदेव के नाम

प्रिय भाई, जैसे ही तुम्हें ये पत्र मिलेगा मैं दूर जा चुका होऊंगा एक मंजिल की तरफ। मैं तुम्हें विश्वास दिलाना चाहता हूं कि आज मैं बहुत खुश हूं। हमेशा से भी ज्यादा। एक बात जो मेरे मन में चुभ रही थी कि मेरे भाई, मेरे अपने भाई ने मुझे गलत समझा और मुझ पर बहुत ही गंभीर आरोप लगाए कमजोर होने के, आज मैं पूरी तरह से संतुष्ट हूं। पहले से भी कहीं अधिक। और आज मैं ये महसूस कर रहा हूं कि ये बात कुछ भी नहीं थी। बस एक गलतफहमी थी। मेरे भाई, मैं साफ दिल से विदा होना चाहता हूं। क्या तुम भी साफ होगे? यह तुम्हारी बड़ी दयालुता होगी, लेकिन ख्याल रखना कि तुम्हें जल्दबाजी में कोई कदम नहीं उठाना चाहिए। जनता के प्रति तुम्हारे भी कुछ कर्तव्य हैं। उन्हें निभाते हुए हर काम को अत्यंत सावधानी पूर्वक अंजाम देना।

व्यक्ति के चरित्र के बारे में बातचीत करते हुए हमेशा एक बात ध्यान रखनी चाहिए कि क्या प्यार कभी किसी मनुष्य के जीवन में सहायक सिद्ध हुआ है। मैं आज इस प्रश्न का उत्तर देना चाहता हूं। हां, वह मैज़िनी था इतालवी रिवोल्यूशनरी, तुमने अवश्य ही पढ़ा होगा उसके बारे में कि कैसे ये विद्रोही अपनी असफलता से, मन को कुचल डालने वाली हार और मरे हुए साथियों की याद को बर्दाश्त नहीं कर पाता था। आत्महत्या करने की सोचता था। लेकिन तभी उसे अपनी प्रेमिका का एक पत्र मिला जिससे वो पहले भी ज्यादा मजबूत हो गया। उसके इरादे और दृढ़ हो गए। मेरे भाई एक युवक और युवती आपस में प्यार कर सकते हैं और ये प्यार अपने आवेगों से ऊपर भी उठ सकता है। अपनी पवित्रता बनाए रख सकता है।

भगत सिंह ने इस खत के जरिए ना सिर्फ कहीं ये स्वीकार किया कि वो किसी लड़की से प्रेम करते। पर, उससे कहीं ज्यादा महत्वपूर्ण अपने दोस्त और साथी क्रांतिकारी सुखदेव को ये भी बताया कि उस प्रेम में जो पवित्रता थी वो उनको साहस देती थी। उनके क्रांतिकारी विचारों को संबल देती थी।

जब सुनाई गांधीजी को खरी-खोटी

8 अप्रैल, 1929 को भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त को नेशनल असेंबली में बम फेंकने के लिए गिरफ्तार किया जा चुका था। इसके बाद पूरे देश में पुलिस की दबिश बढ़ी। और क्रांतिकारियों की गिरफ्तारी का दौर शुरू हुआ। पुलिस की छानबीन में लाहौर में एक बम बनाने की फैक्ट्री पकड़ी गई और साथ ही 15 अप्रैल, 1929 को सुखदेव और उनके साथी किशोरी लाल तथा कुछ अन्य क्रांतिकारियों को गिरफ्तार कर लिया गया। मार्च 1931 में सुखदेव ने गांधी जी (Mahatma Gandhi) को एक पत्र लिखा।

पत्र में सुखदेव (Sukhdev Thapar) ने गांधी जी से पूछा कि आपने किससे पूछ कर और क्या सोच कर सविनय अवज्ञा आंदोलन को वापस लिया है। जितने राजनीतिक कैदी थे वो तो आपके आंदोलन के चलते रिहा हो गए हैं। पर क्रांतिकारी कैदियों का क्या होगा? 1915 से जेलों में बंद गदर पार्टी के दर्जनों क्रांतिकारी अभी भी कैद में सड़ रहे हैं। कइयों की तो सजा भी पूरी हो चुकी है। कई तो जैसे जेलों में ही जिंदा दफनाए जा चुके हैं। देवगढ, काकोरी, महुआ बाजार और लाहौर षड़यंत्र केस के बंदी भी अन्य बंदियों के साथ अभी भी जेल में बंद हैं। दर्जनों क्रांतिकारी फांसी के फंदे के इंतजार में हैं। इन सबके बारे में आप क्या सोचते हैं? और आपका क्या कहना है?

सुखदेव (Sukhdev Thapar) ने पत्र में गांधी जी की क्रांतिकारी विरोधी टिप्पणियों पर भी करारी टिप्पणी की थी। और लिखा था कि भावुकता के आधार पर ऐसी अपीलें करना जिनसे क्रांतिकारियों की हिम्मत पस्त हो, नितांत अविवेकपूर्ण और क्रांतिकारी विरोधी काम है। ये तो आप क्रांतिकारियों को कुचलने में सीधे सरकार की सहायता कर रहे हैं। गांधी जी ने इस पत्र को सुखदेव की फांसी के एक महीने बाद, 23 अप्रैल को यंग इंडिया में छापा था।

मजाकिया स्वभाव के थे सुखदेव

सुखदेव (Sukhdev Thapar) बेहद हंसमुख इंसान थे। गुस्सा उन्हें आता था लेकिन असल स्वभाव उनका मजाकिया था। अपने मस्तमौला स्वभाव की वजह से वो अंग्रेज अधिकारियों को चिढ़ाने में हमेशा कामयाब होते थे। सेंट्रल असेंबली में बम फेंकने के बाद जब कई क्रांतिकारी पकड़े गए और जेल में उन पर खूब अत्याचार हुआ तो अंग्रेजों के हर जुल्म का जवाब सुखदेव हंसी, व्यंग्य और तंज से दिया करते थे।

सुखदेव और राजगुरु लाहौर जेल में थे जबकि भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त दिल्ली जेल में थे। सॉन्डर्स की हत्या के मामले में जब सुनवाई होती थी तो कोर्ट में भगत सिंह और सुखदेव बहुत ही ओजपूर्ण भाषण देते थे। उनकी जिरह से सरकारी अभियोजन पक्ष का कई बार मुंह बंद हो जाता था और अदालत में ही इंकलाब जिंदाबाद के नारे गूंजने लगते थे।

खुदकुशी करने जा रहे थे सुखदेव

सुखदेव मौका पाते ही अदालत में भी हंसी मजाक करने लगते थे। जज इतने नाराज हो गए थे उनसे कि उनकी पिटाई के आदेश दिए। जेल में सुखदेव की बहुत पिटाई हुई। लेकिन इस पूरी जद्दोजहद में सुखदेव का मनोबल टूटने लगा था। अत्याचार, लगातार पिटाई और मानसिक टॉर्चर से वो परेशान हो गए थे और एकबार उन्होंने अपने दोस्त भगत सिंह से कहा मैं ये सब सह नहीं पा रहा, इससे अच्छा तो आत्महत्या कर लूं।

इस पर भगत सिंह ने सुखदेव (Sukhdev Thapar) को समझाया कि तुम ही तो हमेशा कहा करते थे कि इससे भयानक घृणित और भीरू कार्य कोई और नहीं है। अब तुम स्वयं इतना कायरतापूर्ण कार्य करने की कैसे सोच सकते हो। भगत सिंह ने जो हौसला बंधाया सुखदेव फिर से आशावादी हो गए। और फिर शुरू कर दिए उन्होंने हंस हंस कर सहने अंग्रेज हुकूमत के जुल्म। 23 मार्च, 1931 को राजगुरु और भगत सिंह के साथ सुखदेव ने भी हंसते-हंसते फांसी का फंदा चूम लिया और देश की आजादी के लिए शहीद हो गए। उनके बलिदान को सादर नमन।

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