भारतीय सेना के इस शहीद के कपड़े आज भी होते हैं प्रेस, मिलता है प्रमोशन और छुट्टियां

चौबीस घंटे उनकी सेवा में भारतीय सेना के पांच जवान लगे रहते हैं। उनका बिस्तर लगाया जाता है। प्रमोशन और छुट्टियां उन्हें आज भी मिलते हैं।

शहीद जसवंत सिंह रावत।

चौबीस घंटे उनकी सेवा में भारतीय सेना के पांच जवान लगे रहते हैं। उनका बिस्तर लगाया जाता है। प्रमोशन और छुट्टियां उन्हें आज भी मिलते हैं।

भारतीय सेना के जवान अपनी जान की बाजी लगाकर जंग के मैदान में भारत मां की रक्षा करते हैं। सेना के जवानों का बलिदान हमेशा याद रखा जाता है। एक शहीद जवान ऐसे भी हैं जिनके कपड़ों को आज भी प्रेस किया जाता है। यही नहीं उन्हें समय-समय पर प्रमोशन भी दिया जाता है। शहीद का नाम जसवंत सिंह रावत है। वह गढ़वाल राइफल्स की चौथी बटालियन के राइफलमैन थे।

1962 के भारत-चीन युद्ध में 72 घंटे तक अकेले बॉर्डर पर लड़कर शहीद होने वाले भारतीय सैनिक जसवंत सिंह आज भी अमर हैं। भारत चीन सीमा पर स्थित नूरानांग में रहने वाले जवानों और स्थानीय लोगों का मानना है कि जसवंत सिंह रावत की आत्मा आज भी भारत की पूर्वी सीमा की रक्षा कर रही है।

यही वजह है कि आज भी उनके जूते पॉलिश कि जाते हैं और कपड़ों को प्रेस किया जाता है। नौ बजे नाश्ता और शाम सात बजे रात का खाना भी मिलता है। चौबीस घंटे उनकी सेवा में भारतीय सेना के पांच जवान लगे रहते हैं। उनका बिस्तर लगाया जाता है। प्रमोशन और छुट्टियां उन्हें आज भी मिलते हैं। यानी वे सेना के एकमात्र ऐसे शहीद हैं जिन्हें मौत के बाद भी प्रमोशन मिल रहा है।

युद्ध में ऐसे किया था दुश्मनों को ढेर
बात 17 नवंबर 1962 के दिन की है। चीनी सेना के हमले में गढ़वाल राइफल्स की चौथी बटालियन के ज्यादातर जवान शहीद हो गए थे। जसवंत सिंह अकेले ही 10 हजार फीट की ऊंची अपनी पोस्ट डटे हुए थे। वह 17 नवंबर के दिन से लगातार 72 घंटों तक चीनी सेना के खिलाफ डटे रहे। दरअसल चौथी बटालियन के ज्यादातर जवान के मारे जाने के बाद चीन अरुणाचल के सेला टॉप के रास्ते सुरंग खोद रहे थे। चीनी सेना को लगा था कि बटालियन को ढेर किया जा चुका है।

लेकिन अचानक ही  राइफलमैन जसवंत सिंह रावत ने गोला बारूद की ऐसी बारिश की जिससे चीन को भारी नुकसान हुआ। चीनी सैनिकों की आंखे फटी की फटी रह गईं। उन्होंने आग के ऐसे गोले बरसाए जिसमें कम से कम 300 सैनिक ढेर हो गए। इस हमले से चीनी सेना को पता ही नहीं लगा कि भारतीय सेना की कितनी सारी बटालियन तैनात हैं। लेकिन असल में एक जवान के द्वारा किया गया हमला इतना जबरदस्त था कि वे पूरी की पूरी बटालियन के बराबर ही था।

उन्होंने हमले से पहले अरुणाचल प्रदेश की मोनपा जनजाति की दो लड़कियों नूरा और सेला की मदद से फायरिंग ग्राउंड बनाया और तीन स्थानों पर मशीनगन और टैंक रखे। उन्होंने ऐसा इसलिए किया ताकि दुश्मन को लगे कि भारतीय सेना के जवान भारी संख्या में अब भी मौजूद हैं। प्लानिंग कामयाब रही और रावत ने एक-एक कर 300 सैनिकों को मौत के घाट उतार दिया। हालांकि हमले में सेला मारी गई जबक‍ि नूरा को चीनी सैनिकों ने जिंदा पकड़ लिया। वहीं रावत ने युद्धबंदी बनने की बजाय खुद को गोली मार ली।

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