सच के सिपाही

राय ने देखा कि उनके साथी रायफलमैन विष्णु प्रसाद राय घायल हो चुके हैं और आतंकी उनका रेडियो सेट और कार्बाइन को उठाने की कोशिश कर रहे हैं।

बिहार के सीएम नीतीश कुमार ने दोनों जवानों की शहादत पर दुख जताया है। उन्होंने कहा कि देश उनके बलिदान को हमेशा याद रखेगा।

Kashmir: प्रशांत ने 23 सितंबर 2014 को भारतीय सेना ज्वाइन की थी। इस दौरान उनकी उम्र महज 18 साल थी। वे 29 आरआर के जवान थे।

विभाजन के बाद से ही पाकिस्तान (Pakistan) की नजर कश्मीर (kashmir) पर थी जिसे वो आज तक हमसे नहीं छीन पाया है। ऐसा भारतीय सेना के शौर्य के चलते संभव हो सका है।

शहीद बिशन सिंह (Martyr Bishan Singh) 17 कुमाउं रेजीमेंट में तैनात थे। वह मूल रूप से पिथौरागढ़ जिले के मुनस्यारी के माणीधामी बंगापानी के रहने वाले थे।

नेगी जनवरी में LoC पर हुए हिमस्खलन का शिकार हो गए थे। इसके बाद से ही उनकी खोज जारी थी लेकिन जब सेना को उनके बारे में कोई जानकारी नहीं मिल सकी तो सेना ने उन्हें शहीद घोषित कर दिया।

15 दिसंबर 1971 के दिन को गोलंदाज फौज की तीसरी बटालियन का नेतृत्व मेजर होशियार कर रहे थे। बटालियन को आदेश दिया गया कि बसंतर नदी के पार तैनाती लें।

बसंतर (बैटल ऑफ बसंतर) की मशहूर लड़ाई में दुश्मन से घिर जाने के बावजूद अपने हर जूनियर ऑफिसर को एक इंच भी पीछे हटने के लिए मना कर दिया था।

पाक सेना के जवानों ने जैसे ही भारतीय सेना की टुकड़ी को देखा सब इधर-उधर भागने लगे। एकदम से दुश्मन चौंक उठे और हथियार छोड़कर भागने लगे।

क्षेत्र पर कब्जा करने की जिम्मेदारी तारापोर (Lieutenant Colonel Ardeshir Burzorji Tarapore) को ही सौंपी गई थी। सात सितंबर के दिन फिल्लौरी में सेना का सामना पैटन टैंक से लैस पाकिस्तानी सेना से हुआ था।

1961 में चीन से युद्ध में हारने के बाद भारत को तीन साल बाद ही पाकिस्तान से भी लड़ना पड़ा। 1965 के युद्ध (1965 India-Pakistan War) में भारत ने पाकिस्तान को वो मजा चखाया जिसे यादकर दुश्मन देश आज भी थर-थर कांप उठता है।

स्वतंत्रता दिवस (Independence Day) की पूर्व संध्या पर वीरता और सर्विस पुरस्कारों का ऐलान कर दिया गया है। इस अवसर पर देश के सबसे बड़े अर्द्धसैनिक बल केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल को वीरता के लिए 55 पुलिस मेडल्स देने की घोषणा की गई है।

सेना ने खास रणनीति 'वॉर ऑफ मूवमेंट' के जरिए दुश्मनों के कब्जे वाले इलाकों पर कहर बरपा कर खुद का कब्जा जमाया था। यहां तक भारतीय सेना ढाका तक पहुंच गई थी।

छत्तीसगढ़ (Chhattisgarh) में नक्सलियों (Naxalites) के लिए खौफ का दूसरा नाम है इंस्पेक्टर लक्ष्मण केवट (Inspector Laxman Kewat)। नक्सल मोर्चे पर तैनात इंस्पेक्टर लक्ष्मण केवट 100 से अधिक मुठभेडों में कुशल नेतृत्व कर चुके हैं।

राधेश्याम तिवारी के बड़े बेटे साधूराम तिवारी एयर फोर्स से रिटायर्ट हैं। साधूराम बताते हैं कि मेरे भाई राजेश भी सेना से रिटायर्ड हैं। जबकि तीसरी पीढ़ी से धीरेंद्र तिवारी नेवी में लेफ्टिनेंट कमांडर से रिटायर हैं।

इस वॉर मेमोरियल में आपको पता लगेगा कि कैसे युद्ध में भारतीय सैनिक बंकर से लेकर बंकर तक योजनाबद्ध तरीके से भागते हुए दुश्मन सेना पर हथगोले फेंकते थे।

युद्ध के बारे में भैरो सिंह ने कई मौकों पर जिक्र किया है। वह बताते हैं कि जब हाईकमान से आदेश आया तो वह तनोट होते हुए लोंगेवाला के पास पहुंचे थे।

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