1965 का युद्ध: हाजीपीर की लड़ाई और मेजर दयाल का खौफ, हथियार छोड़ भाग खड़े हुए थे पाकिस्तानी

पाक सेना के जवानों ने जैसे ही भारतीय सेना की टुकड़ी को देखा सब इधर-उधर भागने लगे। एकदम से दुश्मन चौंक उठे और हथियार छोड़कर भागने लगे।

Indian Army

फाइल फोटो

पाक सेना के जवानों ने जैसे ही भारतीय सेना की टुकड़ी को देखा सब इधर-उधर भागने लगे। एकदम से दुश्मन चौंक उठे और हथियार छोड़कर भागने लगे।

पाकिस्तान (Pakistan) ने भारत के खिलाफ 1965 में यह सोचकर युद्ध लड़ा था कि चीन से हारने के बाद भारत के हौसले कमजोर होंगे। भारत 1961 में चीन से तो हार गया था लेकिन सेना के जवानों में हार का गुस्सा भरा हुआ था। पाकिस्तान ने 1965 में गुस्ताखी कर सेना के जवानों को ललकार दिया था। भारतीय सेना ने युद्ध में ऐसा शौर्य दिखाया था जिसे याद कर पाकिस्तानी सेना के जवान आज भी कांप उठते होंगे।

युद्ध के दौरान हाजीपीर की लड़ाई रणनीतिक रूप से बेहद अहम थी। इस युद्ध में सेना ने शौर्य के साथ-साथ सैन्य रणनीति का बेहद शानदार परिचय दिया था। सेना ने तय प्लान के मुताबिक हर कदम फूंक-फूंक कर रखा और क्षेत्र पर कब्जा पाया। युद्ध में 1-पैराशूट रेजिमेंट को हमले की जिम्मेदारी दी गई थी। मेजर रंजीत सिंह टुकड़ी को लीड कर रहे थे। 27 अगस्त को वह अपनी टुकड़ी के साथ रवाना हुए थे।

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हमारे जवान जैसे ही घाटी पर पहुंचे तो दुश्मनों ने फायरिंग शुरू कर दी थी। जिसके जवाब में सेना ने भी हमला बोल दिया था। फिर शाम और बारिश हुई। दो दिन चली फायरिंग के बाद हाजीपीर पास की शुरुआत तक पहुंचने पर मेजर दयाल ने सीधे रास्ते की बजाय खड़ी चढ़ाई के रास्ते जाना तय किया। सुबह साढ़े चार बजे टुकड़ी उड़ी-पुंछ हाईवे पर पहुंच गई। 6 बजते-बजते वे दुश्मन के सामने थे।

पाक सेना के जवानों ने जैसे ही भारतीय सेना की टुकड़ी को देखा सब इधर-उधर भागने लगे। सेना को देख दुश्मन अचानक चौंक उठे और हथियार छोड़कर भागने लगे। सेना की रणनीति कामयाब हुई और 28 अगस्त को हमारी सेना ने हाजीपीर पास फिर से कब्जे में ले लिया था। हालांकि इस ऑपरेशन में 21 भारतीय जवान शहीद हुए जबकि पाक सेना के 10 जवान ढेर किए गए थे।

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