सच के सिपाही

जम्मू-कश्मीर (Jammu-Kashmir) के पूंछ सेक्टर पाकिस्तान की ओर से किए गए सीजफायर उल्लंघन (Ceasefire Volation) में हिमाचल प्रदेश के हमीरपुर का जवान शहीद हुआ है। शहीद की पहचान रोहन कुमार (Martyr Rohin Kumar) को तौर पर हुई है।

पाकिस्तान 1965 में लड़े गए युद्ध में खुद को जीता हुआ मानता है। वह इसका लगातार जश्न भी मानाता आ रहा है जो कि झूठ पर आधारित है।

पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई ने कश्मीर हड़पने के बहुत बड़ी साजिश रची थीं जिसे जवानों ने हर मोर्चे पर फेल कर दिया था।

आज भारतीय सेना (Indian Army)  के एक ऐसे जांबाज का शहादत दिवस है जिसने आतंकियों (Terrorists) से भारत भूमि की रक्षा करते हुए अपनी जान कुर्बान कर दी। उस शूरवीर का नाम है कर्नल वसंत वेणुगोपाल (Colonel Vasanth Venugopal)।

1971 के भारत-पाकिस्तान जंग में सैम मानेकशॉ की मुख्य भूमिका रही और पाक के खिलाफ जीत हासिल की गई थी। वह युद्ध में पूरी तैयारी के साथ उतरे थे।

दुश्मनों ने 8 सितंबर 1965 को खेमकरण सेक्‍टर के उसल उताड़ गांव पर धावा बोल दिया। ये हमला पैदल सैन्य टुकड़ी के साथ पैटन टैंक के साथ किया गया था।

सेना के कई जवानों ने अकल्पनीय साहस का परिचय दिया था जिसकी मिसाल आज भी पेश की जाती है। कुछ जवान ऐसे थे जिनके प्रदर्शन से सीना गर्व से चौड़ा हो जाता है।

हरि सिंह ने देर से ही सही लेकिन भारत को कश्मीर में मिलाने के लिए हामी भरी तो देखते ही देखते भारतीय सेना कश्मीर पहुंची और दुश्मनों को भगा-भगाकर मारना शुरू किया।

3 दिसंबर, 1971 को पाक एयर फोर्स ने भारत पर हमला कर दिया था। भारत के अमृतसर और आगरा समेत कई शहरों को निशाना बनाया। 16 दिसंबर, 1971 को पाकिस्तान की सेना के आत्मसमर्पण और बांग्लादेश के जन्म के साथ युद्ध का समापन हुआ।

कारगिल युद्ध में सेना को लीड करने वाले कई अधिकारियों ने कई मौकों पर कहा है कि भारतीय वायुसेना के हवाई हमले से दुश्मन का मनोबल टूटा था।

देश की सेवा में पूरी तरह समर्पित यह फोर्स पर्यावरण को लेकर कितनी सजग है, इस बात का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि इसने देशभर में 22 लाख पेड़ लगाने का लक्ष्य तय किया है।

युद्ध के दौरान 13 जून 1999 की रात को मोहम्मद असद कभी भुला नहीं पाते। उनके पास में आकर गिरे एक बम से हुए धमाके ने उन्हें जीवन भर के लिए दिव्यांग बना दिया।

युद्ध के दिनों को याद करते हुए नायक दीपचंद ने अपने अनुभवों और उस दौरान किन परिस्थितियों में जीत हासिल हुई थी इसका जिक्र किया है।

उन्होंने कारगिल युद्ध की सबसे दुर्गम चोटी टोलोलिंग पर दुश्मनों को मुंहतोड़ जवाब देकर जीत हासिल की थी। इस दौरान उन्हें गोली लगी और वह घायल हो गए थे।

पूरे 21 साल पहले हुए कारगिल युद्ध को यादकर ब्रिगेडियर कारिअप्पा की आंखे नम हो जातीं हैं।

हम टाइगर हिल से 50 से 60 मीटर की दूरी पर थे तभी पाक सैनिकों को भनक लग गई और उन्हें पता लग गया हम कब्जे वाले इलाके में हैं। इसके बाद उन्होंने तुरंत फायरिंग शुरू कर दी। हम जिस जगह पर खड़े थे अगर उससे एक कदम आगे बढ़ाते तो तब भी मरना पक्का था।

कारगिल में भारतीय सेना के हथियारों ने अपनी ऐसी छाप छोड़ी जिसको याद कर आज भी पाकिस्तान थर-थर कांप उठता है।

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