सीजफायर की घोषणा होने तक अपनी पोस्ट से हटने से कर दिया था इनकार, ऐसे थे ‘परमवीर चक्र’ पाने वाले मेजर होशियार सिंह

15 दिसंबर 1971 के दिन को गोलंदाज फौज की तीसरी बटालियन का नेतृत्व मेजर होशियार कर रहे थे। बटालियन को आदेश दिया गया कि बसंतर नदी के पार तैनाती लें।

होशियार सिंह ने युद्ध में पाकिस्तानी सेना के छक्के छुड़ा दिए थे।

15 दिसंबर 1971 के दिन को गोलंदाज फौज की तीसरी बटालियन का नेतृत्व मेजर होशियार सिंह दहिया कर रहे थे। इस बटालियन को आदेश दिया गया कि वह शकरगढ़ सेक्टर में बसंतर नदी के पार तैनाती लें। ये वो जगह थी जहां दुश्मन पहले से मजबूत स्थिति में थे।

भारत के खिलाफ लड़कर पाकिस्तान हमेशा हार का मुंह देखता रहा है। पाकिस्तान के खिलाफ हमारी सेना जब-जब जंग के मैदान में उतरती है दुश्मन थर-थर कांप उठते हैं। ऐसा ही 1971 में भी हुआ था जब सेना के शौर्य और जबरदस्त रणनीति में फंसकर पाकिस्तानी सेना बुरी तरह से हार गई थी। 1971 के भारत-पाक युद्ध में सेना के 4 जाबांज सैनिकों को सर्वोच्च सैन्य सम्मान परमवीर चक्र से नवाजा गया था जिसमें से एक थे मेजर होशियार सिंह।

इनकी शौर्य की गाथा बेहद ही साहस भरी है। होशियार सिंह ने युद्ध में पाकिस्तानी सेना के छक्के छुड़ा दिए थे। होशियार सिंह के युद्ध कौशल के आगे दुश्मन देश के जावान के पसीने छूट गए थे। बसंतर की लड़ाई में घायल होने के बाद भी उन्होंने अपनी टुकड़ी का नेतृत्व किया और पाकिस्तानी सेना को वापस भागने पर मजबूर कर दिया था।

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दरअसल 15 दिसंबर 1971 के दिन को गोलंदाज फौज की तीसरी बटालियन का नेतृत्व मेजर होशियार सिंह दहिया कर रहे थे। इस बटालियन को आदेश दिया गया कि वह शकरगढ़ सेक्टर में बसंतर नदी के पार तैनाती लें। ये वो जगह थी जहां दुश्मन पहले से मजबूत स्थिति में थे। जिस भी देश का इस इलाके पर कब्ज़ा हो जाता उसी की स्थिति युद्ध में मजबूत हो जाती। चुनौती भी कम नहीं थी क्योंकि नदी दोनों तरफ से गहरी लैंड माइन से ढकी हुई थी और पाकिस्तानी सेना द्वारा अच्छी तरह से संरक्षित थी। बटालियन को जरवाल तथा लोहाल गांवों पर कब्जा करना था।

हाईकमान से आदेश मिलते ही होशियार सिंह की टुकड़ी दुश्मनों पर टूट पड़ी। इस दौरान दुश्मन की तरफ से मीडियम मशीनगन की ताबड़तोड़ गोलीबारी और क्रॉस फायरिंग हुई। भारतीय सैनिकों का हौसला डगमगा गया लेकिन होशियार सिंह के हौसले बुलंद थे और वह बेखौफ थे। वह बटालियन के साथ बेखौफ आगे बढ़ते गए और उन जगहों पर कब्जा कर लिया जिसके लिए हाईकमान ने आदेश दिया था।

इसके अगले ही दिन पाकिस्तानी सैनिकों ने और तैयारी के साथ हमला बोल दिया लेकिन होशियार सिंह अपनी टुकड़ी का हौसला बढ़ाते रहे। तीसरे दिन पाकिस्तानी सेना ने टैंकों से हमला बोल दिया। इस हमले में होशियार सिंह घायल हो गए थे लेकिन फिर भी वह सेना का मनोबल बढ़ाते रहे। युद्ध चल ही रहा था कि अचानक एक पाकिस्तानी गोला उनकी मीडियम मशीनगन की एक चौकी के समीप आ गिरा। मशीनगन का गनर शहीद हो गया तो उन्होंने वह स्वयं संभाल ली। उस दिन दुश्मन के 89 जवान मारे गए, जिनमें उनका कमांडिंग ऑफिसर लेफ्टिनेंट कर्नल मोहम्मद अकरम राजा भी शमिल था।

परिणामस्वरूप उनकी कंपनी ने पाकिस्तानी सेना के भारी हमलों के बावजूद दुश्मन को बहुत क्षति पहुंचाई और उनकर सभी हमलों को विफल कर दिया। गम्भीर रूप से घायल होने के बावजूद मेजर होशियार सिंह ने युद्धविराम तक पीछे हटने से मना कर दिया। इस अभियान के दौरान मेजर होशियार सिंह ने सेना की सर्वोच्च परंपराओं में सबसे विशिष्ट बहादुरी, अतुलनीय लड़ाई भावना और नेतृत्व को प्रदर्शित किया। शौर्य का परिचय देने के लिए उन्हें गणतंत्र दिवस 1972 को सेना के सर्वोच्च सैन्य सम्मान ‘परमवीर चक्र’ से सम्मानित किया गया।

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