सच के सिपाही

कैप्टन संदीप सांखला (Captain Sandeep Shankla) 8 अगस्त, 1991 को जम्मू-कश्मीर के कुपवाड़ा के जफरखान गांव में आतंकवादियों (Terrorists) से लोहा लेते हुए देश के लिए शहीद हो गए थे।

युद्ध की वजह थी नाथू ला में भारतीय सीमा से सटे इलाके में चीनी द्वारा गड्ढों की खुदाई। चीनी सैनिकों ने नाथू ला में सेना की चौकियों पर हमला कर दिया था।

Indian Army ने योजनाबद्ध तरीके से 3 दिसंबर, 1971 की सुबह कार्रवाई शुरू की। भारी गोलाबारी के बीच, बंकरों को ध्वस्त करते हुए, वे अपने लक्ष्य की ओर आगे बढ़ते चले गए।

14 दिसंबर 1971 को श्रीनगर एयरफील्ड पर दुश्मन के 6 सेबर एयरक्राफ्ट ने हमला कर दिया था। सेखों उस समय ड्यूटी के लिए तैयार थे।

नाथु ला विवाद का केंद्र इसलिए है क्योंकि 1965 के भारत और पाकिस्तान के युद्ध के दौरान चीन ने इस इलाके को खाली करने के लिए बोला था लेकिन भारतीय सेना वहां से पीछे नहीं हटी थी।

1947-48 के युद्ध के बाद जम्मू-कश्मीर के दो तिहाई हिस्सा भारत में ही रहा जबकि एक तिहाई हिस्से पर आज भी पाकिस्तान का कब्जा है।

जंग में वे और उनके 14 गार्ड्स रेजिमेंट के साथियों ने अगरतला को पाक के हमलों से बचाया था। गंगासागर स्टेशन के पास इस जंग में दुश्मनों की कमर तोड़कर रख दी थी।

रजा इस युद्ध में सबसे आगे होकर लड़ रहे थे। भारतीय सेना ने मुंहतोड़ जवाब देते हुए पाकिस्तान के 250 से अधिक सैनिक मार गिराए। 17 दिसंबर की रात युद्ध खत्म हुआ।

युद्धविराम पर सहमत होने के बाद दुश्मन देश ने अपने सैनिकों को निकालने से इनकार कर दिया नतीजन कश्मीर दो भागों में विभाजित हो गया।

साल 1971 भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश के लिए बेहद अहम था। 1971 में पूर्वी पाकिस्तान में आजादी का आंदोलन दिन ब दिन तेज होता जा रहा था।

हथियार भी उतने एडवांस नहीं थे जितना चीनी सैनिकों के पास थे। हालांकि इस युद्ध में सेना के कई जवानों ने हैंड टू हैंड फाइट कर कई चीनी सैनिकों को ढेर किया था।

दुश्मनों ने 6500 मीटर की ऊंचाई पर स्थिति चोटिंयों पर कब्जा जमा लिया था। ग्‍लेशियर पर बर्फं ने पाकिस्‍तानी घुसपैठियों की स्थिति को बेहद मजबूत कर दिया था।

बंटवारे के वक्त ब्रिटिश इंडिया सैन्य टुकड़ियों को भी भारत-पाक के बीच बांटा जा रहा था। ब्रिगेडियर मोहम्मद उस्मान भीड़ में शामिल नहीं हुए।

चीनी सेना के हमले में गढ़वाल राइफल्स की चौथी बटालियन के ज्यादातर जवान शहीद हो गए थे। जसवंत सिंह अकेले ही 10 हजार फीट ऊंची अपनी पोस्ट डटे हुए थे।

भारतीय सेना में गोरखा सैनिकों के भर्ती को लेकर नेपाल से समझौता किया हुआ है। इसी के तहत गोरखाओं की भर्ती आर्मी में होती है।

लड़ाई में भारतीय सेना लाहौर तक पहुंच चुकी थी लेकिन बॉर्डर पर ही रुक गई। सेना चाहती तो पाकिस्तानी के कई इलाकों पर कब्जा कर सकती थी लेकिन ऐसा नहीं किया गया।

22 साल के बेटे को तिरंगे में लिपटा देख पिता अपने आंसू नहीं रोक सके। उधर उनकी मां समेत पूरे परिवार का रो रो कर बहुत बुरा हाल हो गया था।

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