भारतीय सेना (फाइल फोटो)
आंकड़ों के अनुसार, भारतीय सेना (Indian Army) इन 32 सालों के आतंकवाद के दौर में राज्य में छेड़े गए आतंकवाद विरोधी अभियानों (Anti Terror Operations) में लगभग 4,200 सैनिकों को खो चुकी है।
जम्मू-कश्मीर (Jammu-Kashmir) से आतंकवाद (Terrorism) को उखाड़ फेंकने के लिए शुरू किए गए अभियानों में भारतीय सेना (Indian Army) और सुरक्षाबलों ने बहुत बलिदान दिया है। भारत भूमि की रक्षा के लिए हर पल तत्पर रहने वाले जवानों ने अपनी जान देकर भारत मां का कर्ज चुकाया है।
रक्षा मंत्रालय (Defense Ministry) के आंकड़ों के अनुसार, बीते 32 सालों के दौरान कुल 7,400 जवानों ने अपनी जान कुर्बान कर दी है। जबकि गैर सरकारी आंकड़ा बताता है कि 12,000 से अधिक सुरक्षाकर्मी शहीद हुए हैं। आंकड़ों के अनुसार, भारतीय सेना (Indian Army) इन 32 सालों के आतंकवाद के दौर में राज्य में छेड़े गए आतंकवाद विरोधी अभियानों (Anti Terror Operations) में लगभग 4,200 सैनिकों को खो चुकी है।
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इनमें प्रत्येक 25 सैनिकों के पीछे एक अधिकारी भी शामिल हैं। 32 सालों से चल रहे आतंक विरोधी अभियानों में भारतीय सेना (Indian Army) के लगभग 22,600 जवान और अधिकारी घायल भी हुए। इनमें से करीब 4,900 को समय से पूर्व सेवानिवृत्ति इसलिए देनी पड़ी क्योंकि वे आतंकी हमलों या मुठभेड़ों में घायल होने से शारीरिक रूप से दिव्यांग हो चुके थे।
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अभियानों के दौरान ऐसा अवसर भी आया था जब एक आतंकी हमले (Terrorist Attack) में सेना (Indian Army) को 3-3 अधिकारियों को एक साथ खोना पड़ा। वहीं, आंकड़ों के मुताबिक एक और तथ्य सामने आया है और वह ये है कि जम्मू-कश्मीर में ही स्थित विश्व के सबसे ऊंचे युद्धस्थल सियाचीन (Siachen) में शहीद होने वाले सैनिकों की संख्या कश्मीर में शहीद होने वाले सैनिकों की संख्या से बहुत ही कम है। कश्मीर और सियाचीन में शहीद होने वाले सैनिकों का अनुपात 8:1 का है।
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