युद्धविराम पर सहमत होने के बाद दुश्मन देश ने अपने सैनिकों को निकालने से इनकार कर दिया नतीजन कश्मीर दो भागों में विभाजित हो गया।

साल 1971 भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश के लिए बेहद अहम था। 1971 में पूर्वी पाकिस्तान में आजादी का आंदोलन दिन ब दिन तेज होता जा रहा था।

हथियार भी उतने एडवांस नहीं थे जितना चीनी सैनिकों के पास थे। हालांकि इस युद्ध में सेना के कई जवानों ने हैंड टू हैंड फाइट कर कई चीनी सैनिकों को ढेर किया था।

दुश्मनों ने 6500 मीटर की ऊंचाई पर स्थिति चोटिंयों पर कब्जा जमा लिया था। ग्‍लेशियर पर बर्फं ने पाकिस्‍तानी घुसपैठियों की स्थिति को बेहद मजबूत कर दिया था।

बंटवारे के वक्त ब्रिटिश इंडिया सैन्य टुकड़ियों को भी भारत-पाक के बीच बांटा जा रहा था। ब्रिगेडियर मोहम्मद उस्मान भीड़ में शामिल नहीं हुए।

चीनी सेना के हमले में गढ़वाल राइफल्स की चौथी बटालियन के ज्यादातर जवान शहीद हो गए थे। जसवंत सिंह अकेले ही 10 हजार फीट ऊंची अपनी पोस्ट डटे हुए थे।

भारतीय सेना में गोरखा सैनिकों के भर्ती को लेकर नेपाल से समझौता किया हुआ है। इसी के तहत गोरखाओं की भर्ती आर्मी में होती है।

लड़ाई में भारतीय सेना लाहौर तक पहुंच चुकी थी लेकिन बॉर्डर पर ही रुक गई। सेना चाहती तो पाकिस्तानी के कई इलाकों पर कब्जा कर सकती थी लेकिन ऐसा नहीं किया गया।

पाकिस्तान 1965 में लड़े गए युद्ध में खुद को जीता हुआ मानता है। वह इसका लगातार जश्न भी मानाता आ रहा है जो कि झूठ पर आधारित है।

पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई ने कश्मीर हड़पने के बहुत बड़ी साजिश रची थीं जिसे जवानों ने हर मोर्चे पर फेल कर दिया था।

आशंका जताई जा रही है कि नक्सली संगठन द्वारा जंगल में ही 31 जुलाई तक शहादत दिवस मनाया जा रहा है। सभी संदिग्ध नक्सली दस्ता के सदस्य हो सकते हैं।

1971 के भारत-पाकिस्तान जंग में सैम मानेकशॉ की मुख्य भूमिका रही और पाक के खिलाफ जीत हासिल की गई थी। वह युद्ध में पूरी तैयारी के साथ उतरे थे।

दुश्मनों ने 8 सितंबर 1965 को खेमकरण सेक्‍टर के उसल उताड़ गांव पर धावा बोल दिया। ये हमला पैदल सैन्य टुकड़ी के साथ पैटन टैंक के साथ किया गया था।

सेना के कई जवानों ने अकल्पनीय साहस का परिचय दिया था जिसकी मिसाल आज भी पेश की जाती है। कुछ जवान ऐसे थे जिनके प्रदर्शन से सीना गर्व से चौड़ा हो जाता है।

हरि सिंह ने देर से ही सही लेकिन भारत को कश्मीर में मिलाने के लिए हामी भरी तो देखते ही देखते भारतीय सेना कश्मीर पहुंची और दुश्मनों को भगा-भगाकर मारना शुरू किया।

3 दिसंबर, 1971 को पाक एयर फोर्स ने भारत पर हमला कर दिया था। भारत के अमृतसर और आगरा समेत कई शहरों को निशाना बनाया। 16 दिसंबर, 1971 को पाकिस्तान की सेना के आत्मसमर्पण और बांग्लादेश के जन्म के साथ युद्ध का समापन हुआ।

कारगिल युद्ध में सेना को लीड करने वाले कई अधिकारियों ने कई मौकों पर कहा है कि भारतीय वायुसेना के हवाई हमले से दुश्मन का मनोबल टूटा था।

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