आजादी के बाद हर युद्ध में गोरखा रजिमेंट ने लिया हिस्सा! जानें ट्रेनिंग से लेकर खुखरी तक हर खासियतें

भारतीय सेना में गोरखा सैनिकों के भर्ती को लेकर नेपाल से समझौता किया हुआ है। इसी के तहत गोरखाओं की भर्ती आर्मी में होती है।

Indo-China War 1962

भारतीय सेना के जवान। (फाइल फोटो)

भारतीय सेना में गोरखा सैनिकों की भर्ती को लेकर नेपाल से समझौता किया हुआ है। इसी के तहत गोरखाओं की भर्ती आर्मी में होती है। भारत में पहाड़ी इलाकों पर ज्यादातर गोरखा जवान ही तैनात रहते है।

गोरखा रेजीमेंट को दुनिया की सबसे खतरनाक रेजीमेंट में से एक माना जाता है। युद्ध कला में सर्वश्रेष्ठ कहे जाने वाले गोरखा जवान दुश्मन को मौत के घाट उतारकर ही दम लेते हैं।  इंडियन आर्मी ही नहीं बल्कि विश्व की अलग-अलग सेनाओं में गोरखाओं को जगह दी गई है। गोरखा जवान मूल रूप से नेपाल के होते हैं। आजादी के बाद से अबतक इन योद्धाओं का इस्तेमाल भारतीय सेना ने किया है।

भारतीय सेना में गोरखा सैनिकों के भर्ती को लेकर नेपाल से समझौता किया हुआ है। इसी के तहत गोरखाओं की भर्ती आर्मी में होती है। भारत में पहाड़ी इलाकों पर ज्यादातर गोरखा जवान ही तैनात रहते है। इनकी ट्रेनिंग बेहद ही कड़ी होती है। युद्ध के दौरान ये हथियारों के साथ-साथ अपनी खुखरी के दम पर ही दुश्मन को भस्म कर देते हैं। यानी कि आमने-सामने की लड़ाई में इनसे बेहतर कोई नहीं!

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गोरखाओं के लिए कहा जाता है कि पहाड़ों पर उनसे बेहतर लड़ाई कोई और नहीं लड़ सकता है। गोरखाओं के पास मौजूद खुखरी उन्हें कड़ी ट्रेनिंग के बाद दी जाती है। गोरखा मेंटली और फिजिकली बहुत मजबूत होते हैं। कठिन से कठिन परस्थितियों में भी वह अपने पर काबू रखते हैं और हर दर्द को सहन करते हुए दुश्मन को छलनी कर देते हैं। इनकी कदकाठी छोटी और गठी हुई होती है।

भारतीय फील्ड मार्शल रहे सैम मनेकशॉ ने गोरखा रेजीमेंट के लिए कहा था कि ‘अगर कोई यह कहता है कि उसे मरने से डर नहीं लगता तो या तो वह शख्स झूठ बोल रहा है या फिर वह एक गोरखा है।’ मनेकाशॉ का यह कथन गोरखा पर एकदम सटीक बैठता है।

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