ब्रिगेडियर मोहम्मद उस्मान को जिन्ना ने दिया था आर्मी चीफ पद का ऑफर, फिर मिला ये जवाब

बंटवारे के वक्त ब्रिटिश इंडिया सैन्य टुकड़ियों को भी भारत-पाक के बीच बांटा जा रहा था। ब्रिगेडियर मोहम्मद उस्मान भीड़ में शामिल नहीं हुए।

ब्रिगेडियर मोहम्मद उस्मान।

बंटवारे के वक्त ब्रिटिश इंडिया सैन्य टुकड़ियों को भी भारत-पाक के बीच बांटा जा रहा था। ब्रिगेडियर मोहम्मद उस्मान भीड़ में शामिल नहीं हुए।

बंटवारे के दौरान पाकिस्तान (Pakistan) भारत की वो हर चीज को हड़पना चाहता था जो कि उसे भारत के बराबर लाकर खड़ा कर दे। पाकिस्तान की नजर हर उस अनमोल चीज पर थी जिससे वह भारत को टक्कर दे सके। पाकिस्तान के संस्थापक मोहम्मद अली जिन्ना की नजर उस वक्त भारत के ऐसे वीर सपूत पर थी जिनकी बहादुरी के किस्से दूर दूर तक मशहूर थे। ब्रिगेडियर मोहम्मद उस्मान को पाकिस्तानी सेना प्रमुख का प्रस्ताव दिया गया लेकिन उस्मान का दिल भारत में बसता था।

दरअसल बंटवारे के वक्त ब्रिटिश इंडिया की सैन्य टुकड़ियों को भी भारत और पाकिस्तान के बीच बांटा जा रहा था। बलूच रेजिमेंट के ज्यादातर जवान मुस्लिम थे तो लिहाजा पाकिस्तानी सेना में शामिल होने चल दिए। ऐसा इसलिए क्योंकि पाकिस्तान की स्थापना ही धर्म के आधार पर हुई थी। हालांकि ब्रिगेडियर मोहम्मद उस्मान भीड़ में शामिल नहीं हुए। वह भारत से प्यार करते थे।

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उन्हें जिन्ना ने ऑफर दिया था कि वे पाकिस्तान सेना में शामिल होंगे तो उन्हें सीधा आर्मी चीफ बना दिया जाएगा। इस ऑफर को उन्होंने सिरे से नकार दिया था। उन्होंने कहा था कि  मैं भारत में जन्मा हूं और इसी जमीन पर मैं आखिरी सांस लूंगा।’ जिन्ना को अपना जवाब मिल चुका था। जिन्ना ने उनको मुस्लिम होने का वास्ता दिया और पाकिस्तानी सेना में आने का ऑफर दिया। वह उन्हें इस्लाम का पाठ पढ़ाकर अपनी ओर खींचना चाहते थे लेकिन वह देश के लिए बने थे और अंतिम सांस तक देश की सेवा की।

वह 1947 के भारत-पाकिस्तान युद्ध में शहीद हो गए थे। जम्मू-कश्मीर में पाकिस्तानी सैनिकों से लड़ते हुए 3 जुलाई 1948 में वो शहीद हो गए थे। उन्हें दुश्मन के सामने बहादुरी के लिए मरणोपरांत दूसरे सबसे बड़े सैन्य सम्मान ‘महावीर चक्र’ से सम्मानित किया गया। उनकी बहादुरी भरे कारनामे के लिए उनको नौशेरा का शेर के नाम से पुकारा जाता था। 

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