1947 में कश्मीर हड़पने आया था PAK लेकिन भारतीय सेना के इस ‘हीरो’ ने बुरी तरह खदेड़ा

सेना के कई जवानों ने अकल्पनीय साहस का परिचय दिया था जिसकी मिसाल आज भी पेश की जाती है। कुछ जवान ऐसे थे जिनके प्रदर्शन से सीना गर्व से चौड़ा हो जाता है।

युद्ध के दौरान सेना के कई जवानों ने अकल्पनीय साहस का परिचय दिया था जिसकी मिसाल आज भी पेश की जाती है। यूं तो पूरी सेना ही इस जीत की हीरो है लेकिन कुछ जवान ऐसे थे जिनके प्रदर्शन से पूरे देश का सीना गर्व से चौड़ा हो जाता है।

पाकिस्तान (Pakistan) हमेशा से कश्मीर (Kashmir) को हड़पने की फिराक में रहता है। आजादी के बाद से ही वह इसके पीछे पड़ा हुआ है। कश्मीर के लिए पाकिस्तान ने 1947-48 में भारत के खिलाफ युद्ध भी लड़ा लेकिन बुरी तरह हार कर वापस लौट गया। इस युद्ध में भारतीय सेना ने ऐसा पराक्रम दिखाया था जिसे याद करके दुश्मन आज भी कांप उठते होंगे।

युद्ध के दौरान सेना के कई जवानों ने अकल्पनीय साहस का परिचय दिया था जिसकी मिसाल आज भी पेश की जाती है। यूं तो पूरी सेना ही इस जीत की हीरो है लेकिन कुछ जवान ऐसे थे जिनके प्रदर्शन से पूरे देश का सीना गर्व से चौड़ा हो जाता है। इन वीरों ने जान की बाजी लगाकर देश की रक्षा की। कश्मीर को हाथ से नहीं निकलने दिया। जम्मू-कश्मीर की आर्मी के प्रमुख ब्रिगेडियर राजेंद्र सिंह ने युद्ध में कश्मीर को कबायलियों से बचाने में उनकी भूमिका निभाई।

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वहीं 6 राजपूताना राइफल्स के पीरू सिंह को कश्मीर के टीथवाल में दुश्मनों द्वारा कब्जाई गई एक पहाड़ी पर हमला कर उस पर फतह हासिल की थी। बात करें देश का पहला और सबसे बड़ा सैन्य सम्मान ‘परमवीर चक्र’ पाने वाले मेजर सोमनाथ शर्मा की तो इनकी बहादुरी के किस्से आज भी चर्चित हैं। 3 नवंबर, 1947 को मेजर सोमनाथ शर्मा की टुकड़ी कश्मीर घाटी के बदगाम मोर्चे पर थी तभी 500 की संख्या में दुश्मन सेना के जवानों ने उनकी टुकड़ी को तीन तरफ से घेरकर हमला किया और भारी गोलाबारी से सोमनाथ के सैनिक हताहत होने लगे।

लेकिन हार न मानते हुए उन्होंने अंत तक लड़ाई की। दुश्मनों को आगे बढ़ने से रोके रखा। उन्होंने घायल होने के बावजूद अपने साथी जवानों का हौसला बनाए रखा। एक मोर्टार का निशाना ठीक वहीं पर लगा, जहां सोमनाथ मौजूद थे और वह शहीद हो गए। मेजर सोमनाथ शर्मा को देश का पहला परमवीर चक्र मिला था। अधिकतर सैनिकों को मरणोपरांत यह सम्‍मान मिला है। देश के सर्वोच्च सम्मान ‘भारत रत्न’ के बाद इसे दूसरा सबसे बड़ा पुरस्कार कहा जाता है।

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