युद्ध के दौरान 13 जून 1999 की रात को मोहम्मद असद कभी भुला नहीं पाते। उनके पास में आकर गिरे एक बम से हुए धमाके ने उन्हें जीवन भर के लिए दिव्यांग बना दिया।

युद्ध के दिनों को याद करते हुए नायक दीपचंद ने अपने अनुभवों और उस दौरान किन परिस्थितियों में जीत हासिल हुई थी इसका जिक्र किया है।

हम टाइगर हिल से 50 से 60 मीटर की दूरी पर थे तभी पाक सैनिकों को भनक लग गई और उन्हें पता लग गया हम कब्जे वाले इलाके में हैं। इसके बाद उन्होंने तुरंत फायरिंग शुरू कर दी। हम जिस जगह पर खड़े थे अगर उससे एक कदम आगे बढ़ाते तो तब भी मरना पक्का था।

कारगिल में भारतीय सेना के हथियारों ने अपनी ऐसी छाप छोड़ी जिसको याद कर आज भी पाकिस्तान थर-थर कांप उठता है।

भारतीय फील्ड मार्शल रहे सैम मनेकशॉ ने कहा था कि 'अगर कोई यह कहता है कि उसे मरने से डर नहीं लगता तो या तो वह शख्स झूठ बोल रहा है या फिर वह एक गोरखा है।'

युद्ध में दुश्मनों से लड़ते वक्त हथियार खत्म हो गए लेकिन देश के लिए कुछ कर गुजरने की दृढ़ इच्छा ने उन्हें पीछे हटने नहीं दिया और वह आगे बढ़ते रहे।

जंग में मेरठ के रणबांकुरों ने भी अद्भुत पराक्रम का परिचय दिया था। मेरठ से सेना की दो रेजीमेंट खास तौर पर कारगिल हिल पर कब्जा करने के लिए रवाना की गईं।

भारत ने समझौते के तहत सेना को पीछे बुला लिया पर पाक ने ऐसा नहीं किया। पाकिस्तानी सेना के 5 हजार जवानों ने कारगिल की महत्वपूर्ण पोस्टों पर कब्जा कर लिया।

सेना ने एक के बाद एक ऑपरेशन लॉन्च कर पाक सेना के कब्जे वाली पोस्ट पर फतह हासिल कर तिरंगा लहराया और पाकिस्तानियों को कारगिल से ही खदेड़ दिया गया।

युद्ध में भारत के 1300 से ज्यादा जवान घायल हुए थे। पाक सेना को भारत से कहीं ज्यादा नुकसान हुआ। उसने अपने सैनिकों की लाशें लेने से भी इनकार कर दिया था।

युद्ध के दौरान इंडियन एयर फोर्स ने दुश्मनों का सफाया करने के लिए ऑपरेशन 'सफेद सागर' चलाया था। उस दौरान मिग-27 के अलावा मिग 21 का भी इस्तेमाल किया गया था।

'ऑपरेशन विजय' के दौरान, सिपाही अशुली माओ नागा रेजीमेंट का हिस्सा था, जिसने द्रास सेक्टर में स्थित 'ब्लैक टूथ' पर हमला किया था।

हवलदार के पद से रिटायर हुए सैनिक राजेश ढुल ने कारगिल की लड़ाई में दुश्मन से लोहा लिया था। उन्होंने बताया कि युद्ध के दौरान उनका काम माइंस बिछाने का था।

परमवीर चक्र विजेता सूबेदार संजय कुमार ने बताया कि मुश्किल हालात से निपटने के लिए सेना ने युद्ध में एक खास ट्रिक 'साइलेंट मूवमेंट' का इस्तेमाल किया था।

25 नवंबर 1987 को 'ऑपरेशन पवन' के दौरान जब महार रेजिमेंट की आठवीं बटालियन के मेजर रामास्वामी परमेश्वरन श्रीलंका में एक तलाशी अभियान से लौट रहे थे।

पाक की इस हरकत का जवाब सेना ने बखूबी दिया। करीब 40 दिन चले युद्ध में दुश्मनों को भगा-भगाकर मारा। युद्ध में एक जवान थे जिन्होंने दुश्मनों को नेस्तनाबूद किया।

जब्त हथियारों में 7.62 एमएम एमजी 1ए गन मशीन शामिल हैं। इसके अलावा द्रास सेक्‍टर में पाक सैनिकों ने रॉ‍केट लॉन्‍चर (आरपीजी 7) का भी इस्तेमाल किया था।

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