कारगिल विजय दिवस: …जब वीर मोहम्मद असद के पास आकर गिरा बम, हाथ गंवाकर भी पीछे नहीं हटे

युद्ध के दौरान 13 जून 1999 की रात को मोहम्मद असद कभी भुला नहीं पाते। उनके पास में आकर गिरे एक बम से हुए धमाके ने उन्हें जीवन भर के लिए दिव्यांग बना दिया।

कारगिल युद्ध के दौरान 13 जून 1999 की रात को मोहम्मद असद कभी भुला नहीं पाते। उनके पास में आकर गिरे एक बम से हुए धमाके ने उन्हें जीवन भर के लिए दिव्यांग बना दिया।

कारगिल युद्ध के दौरान भारतीय सेना के करीब 1300 जवान घायल हुए थे। करीब 60 दिन चली इस लड़ाई में हमारे 527 जवान शहीद हुए। 26 जुलाई के दिन हर साल कारगिल विजय दिवस के रूप में मनाया जाता है। इस युद्ध में किसी जवान ने अपना हाथ खो दिया तो किसी ने पैर।

उत्तर प्रदेश के बिजनौर जिले के कई सैनिकों ने कारगिल युद्ध में दुश्मनों से लोहा लिया था। इस युद्ध में जांबाज सैनिक मोहम्मद असद ने अपना बायां हाथ गंवाया था।

कारगिल युद्ध के दौरान 13 जून 1999 की रात को मोहम्मद असद कभी भुला नहीं पाते। उनके पास में आकर गिरे एक बम से हुए धमाके ने उनके जीवन भर के लिए दिव्यांग बना दिया। उनका एक हाथ शरीर से अलग हो गया था। द्रास सेक्टर में अन्य साथियों के साथ वह मोर्चे पर थे। रात का वक्त था और कहीं कुछ दिखाई नहीं दे रहा था।

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वह बताते हैं ‘मेरी बटालियन में शामिल जवानों ने बहादुरी का परिचय देते हुए वहां पर डटे रहने की ठान ली। लेकिन अचानक एक बम पास में गिरा और फट गया। इसके बाद मैं बुरी तरह से घायल हो गया और मेरा हाथ शरीर से अलग हो गया।’

बता दें कि इस युद्ध में मेरठ के रणबांकुरों ने भी अद्भुत पराक्रम का परिचय दिया था। मेरठ से सेना की दो रेजीमेंट खास तौर पर कारगिल हिल पर कब्जा करने के लिए रवाना की गईं। मेरठ में तैनात 18 गढ़वाल राइफल्स को कारगिल के द्रास सेक्टर में दुश्मन का खात्मा करने के लिए भेजा गया था। पाकिस्तान के खिलाफ एक एक कर कई ऑपरेशान लॉन्च किए गए। जिसके बाद सेना को यह जीत हासिल हुई थी।

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