कारगिल युद्ध: टाइगर हिल पर कब्जे की कहानी परमवीर चक्र विजेता की जुबानी, जानें क्या हुआ था उस वक्त

हम टाइगर हिल से 50 से 60 मीटर की दूरी पर थे तभी पाक सैनिकों को भनक लग गई और उन्हें पता लग गया हम कब्जे वाले इलाके में हैं। इसके बाद उन्होंने तुरंत फायरिंग शुरू कर दी। हम जिस जगह पर खड़े थे अगर उससे एक कदम आगे बढ़ाते तो तब भी मरना पक्का था।

Kargil

परमवीर चक्र सुबेदार मेजर योगेंद्र सिंह यादव।

हम टाइगर हिल से 50 से 60 मीटर की दूरी पर थे तभी पाक सैनिकों को भनक लग गई और उन्हें पता लग गया हम कब्जे वाले इलाके में हैं। इसके बाद उन्होंने तुरंत फायरिंग शुरू कर दी। हम जिस जगह पर खड़े थे अगर उससे एक कदम आगे बढ़ाते तो तब भी मरना पक्का था।

कारगिल की लड़ाई में भारत ने 1999 में पाकिस्तान को छठी का दूध याद दिला दिया था। पाकिस्तान को इस युद्ध में मुंह की खानी पड़ी थी। पाकिस्तान के धोखे का जवाब भारत ने बखूबी दिया जिसको याद कर दुश्मन देश आज भी थर-थर कांप उठता है। 5 जुलाई, 1999 के दिन कारगिल युद्ध के दौरान 1999 में एक 19 वर्षीय लड़के ने 17 गोलियां खाकर भी देश का सिर झुकने नहीं दिया था। इस जवान का नाम है ग्रेनेडियर योगेंद्र सिंह यादव। यादव ने टाइगर हिल पर पाक के कब्जे की कहानी का जिक्र किया है। उन्होंने एक न्यूज वेबसाइट से बात करते हुए उस पूरे घटनाक्रम का जिक्र किया है जिसमें 17 गोलियां खाने के बावजूद वह टाइगर हिल पर तिरंग लहराने में कामयाब हुए थे।

उन्होंने बताया कि ‘करीब 17 हजार फीट की ऊंचाई पर स्थित टाइगर हिल दुश्मन के कब्जे में थी। 18 ग्रेनेडियर यूनिट को इस ऑपरेशन की जिम्मेदारी दी गई थी। लेफ्टिनेंट खुशहाल सिंह कुल 21 जवानों के साथ इसे लीड कर रहे थे। दुश्मन ऊंचाई पर मौजूद थे और वह हमारी हर एक हरकत को देख सकते थे। 2 जुलाई की रात हमने चढ़ना शुरू किया था।’

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योगेंद्र सिंह यादव ने आगे बताया ‘दुश्मन की हम पर नजर थी इसलिए हम रात में चढ़ते और पूरे दिन पत्थरों में छुपे रहते। हम भूखे-प्यासे रस्सियों के सहारे एक दूसरे का हाथ पकड़कर आगे बढ़ रहे थे। इस दौरान जैसे ही पाक सेना को भनक लगी की हम टाइगिर हिल की तरफ आ चुके हैं तो उन्होंने ताबड़तोड़ फायरिंग शुरू कर दी। इसके बाद कुछ जवान नीचे ही रह गए और हम सात जवान ऊपर की तरफ थे।’

वह आगे बताते हैं ‘चार जुलाई की रात को हमने एकबार फिर बचे हुए रास्ते को कवर किया और जैसे ही हमें दुश्मन के दो बंकर नजर आए वैसे ही हमने फायरिंग शुरू कर दी। हम टाइगर हिल से 50 से 60 मीटर की दूरी पर थे तभी पाक सैनिकों को भनक लग गई और उन्हें पता लग गया हम कब्जे वाले इलाके में हैं। इसके बाद उन्होंने तुरंत फायरिंग शुरू कर दी। हम जिस जगह पर खड़े थे अगर उससे एक कदम आगे बढ़ाते तो तब भी मरना पक्का था और पीछे एक कदम करने पर भी यह सुनिश्चित था।

परमवीर च्रक विजेता यादव आगे बताते हैं, ‘हमने सोच रखा था कुछ भी हो जाए दुश्मन को नुकसान पहुंचाकर ही रहेंगे। मौत निश्चित तो थी ही। 5 जुलाई की सुबह हम उनके बंकर में घुस गए और इसके बाद फायरिंग शुरू हो गई। हम छिपे रहे। जो जवान हमारे नीचे थे उनसे हमने एम्यूनेशन मांगे और उन्होंने फेंक दिए। हम इतने लाचार थे कि एक कदम दूर पड़े एम्यूनेशन को उठा नहीं सकते थे क्योंकि दुश्मन हम पर नजर बनाए हुए था। फायरिंग के बाद पाकिस्तान के 10 से 12 जवान यह जानने के लिए निकले की भारत के कितने जवान है और वह मरे या नहीं।’

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उन्होंने भास्कर के साथ इंटरव्यू में आगे बताया, ‘हम इस पल का इंतजार कर रहे थे। जैसे ही वह हमारे पास आए हमने फायरिंग शुरू कर दी। उनके एक दो सैनिक ही जिंदा बचे थे और बाकी को हमने मौत के घाट उतार दिया। उनके बचे सैनिकों ने ऊपर जाकर सूचना दी। जिसके बाद आरपीजी (ग्रेनेड), पत्थर फेंके गए इसमें हमारे सैनिकों के हाथ टूट गए और उंगलियां कट गईं।’

वह आगे बताते हैं, ‘फायरिंग और ग्रेनेड दागते हुए पाकिस्तानी सेना के जवान हमारे करीब आ गए और पलभर में मेरे साथी जवान शहीद हो गए। इस दौरान मैं भी मरने का नाटक करने लगा। दुश्मन ने मुझे हाथ पर गोली मारी लेकिन मैंने कुछ भी रिएक्शन नहीं दिया और चुपचाप दर्द सहन करता रहा। इसके बाद उनके एक सैनिक ने मुझे सीने पर गोली मारी लेकिन मेरी पॉकेट में रखे सिक्कों से वो गोली टकरा गई और मैं जिंदा रहा। इस दौरान एक जवान आगे आया और मैंने ग्रेनेड दाग दिया। इसके बाद पाक सेना यह समझ कर भाग खड़ी हुई कि इंडियन आर्मी की दूसरी यूनिट ने अटैक कर दिया है। इसके बाद एक नाले से लुढ़कते हुए नीचे पहुंचा। वहां से मेरे साथी आए और मुझे उठाकर ले गए। जब मुझे होश आया तो मैं एक हॉस्पिटल में था।’

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