भारतीय सेना के इस राइफलमैन ने अकेले ही 300 सैनिकों को कर दिया था ढेर, जानें वीरता की कहानी

चीनी सेना के हमले में गढ़वाल राइफल्स की चौथी बटालियन के ज्यादातर जवान शहीद हो गए थे। जसवंत सिंह अकेले ही 10 हजार फीट ऊंची अपनी पोस्ट डटे हुए थे।

शहीद राइफलमैन जसवंत सिंह रावत।

चीनी सेना के हमले में गढ़वाल राइफल्स की चौथी बटालियन के ज्यादातर जवान शहीद हो गए थे। जसवंत सिंह अकेले ही 10 हजार फीट ऊंची अपनी पोस्ट डटे हुए थे।

भारतीय सेना के जवान जब-जब युद्ध के मैदान में उतरते हैं, अपना पूरा दमखम लगा देते हैं। ऐसा ही चीन के खिलाफ युद्ध में भी हुआ था। गढ़वाल राइफल्स की चौथी बटालियन के राइफलमैन जसवंत सिंह रावत ने अकेले ही 300 चीनी सैनिकों को ढेर कर दिया था। युद्ध में उन्होंने ऐसा साहस दिखाया जिसे चीनी सेना उसे पूरी टुकड़ी ही समझ रही थी। दरअसल 1962 की जंग में महज 17-18 साल के जसवंत स‍िंह चीन के सामने हिमालय सा अडिग होकर 72 घंटों तक खड़े रहे।

बात 17 नवंबर 1962 के दिन की है। चीनी सेना के हमले में गढ़वाल राइफल्स की चौथी बटालियन के ज्यादातर जवान शहीद हो गए थे। जसवंत सिंह अकेले ही 10 हजार फीट की ऊंची अपनी पोस्ट डटे हुए थे। वह 17 नवंबर के दिन से लगातार 72 घंटों तक चीनी सेना के खिलाफ डटे रहे। दरअसल चौथी बटालियन के ज्यादातर जवान के मारे जाने के बाद चीन अरुणाचल के सेला टॉप के रास्ते सुरंग खोद रहा था। चीनी सेना का लगा था कि बटालियन को ढेर किय जा चुका है।

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लेकिन अचानक ही  राइफलमैन जसवंत सिंह रावत ने गोला बारूद की ऐसी बारिश की जिससे चीन को भारी नुकसान हुआ। चीनी सैनिकों की आंखे फटी की फटी रह गई। उन्होंने आग के ऐसे गोल बरसाए जिसमें कम से कम 300 सैनिक ढेर हो गए। इस हमले से चीनी सेना को लगा कि पता नहीं भारतीय सेना की कितनी सारी बटालियन तैनात है। लेकिन असल में एक जवान के द्वारा किया गया हमला इतना जबरदस्त था कि वे पूरी की पूरी बटालियन के बराबर ही था।

उन्होंने हमले से पहले अरुणाचल प्रदेश की मोनपा जनजाति की दो लड़कियों नूरा और सेला की मदद से फायरिंग ग्राउंड बनाया और तीन स्थानों पर मशीनगन और टैंक रखे। उन्होंने ऐसा इसलिए किया ताकि दुश्मन को लगे की भारतीय सेना के जवान भारी संख्या में अब भी मौजूद हैं। प्लानिंग कामयाब रही और रावत ने एक-एक कर 300 सैनिकों को मौत के घाट उतार दिया। हालांकि हमले में सेला मारी गई जबक‍ि नूरा को चीनी सैनिकों ने जिंदा पकड़ लिया। वहीं रावत ने युद्धबंदी बनने की बजाय खुद को गोली मार ली थी। हालांकि कहा यह भी जाता है कि रावत ने खुद को गोली नहीं मारी थी बल्कि चीनी सैनिकों ने उनको पकड़ लिया था और फांसी दे दी थी।

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