झारखंड जिले की चतरा पुलिस को बड़ी सफलता हाथ लगी है। रविवार की देर रात यहां पुलिस ने गुप्त सूचना के आधार पर विशेष छापेमारी अभियान चलाया। दरअसल पुलिस को इस इलाके में नक्सलियों के होने की सूचना मिली थी।

जब तक हमारा (नक्सलियों का) आदेश नहीं होगा तब तक पुल निर्माण का काम नहीं होगा। नक्सलियों के इस तुगलकी फरमान से झारखंड के चतरा में काम में लगे मजदूरों और काम करा रही कंस्ट्रक्शन कंपनी के होश उड़ हुए हैं।

नक्सल प्रभावित राज्य झारखंड में पुलिस बल नक्सलियों का जड़ काटने में जुट गए हैं। इस दिशा में अब सरकार ने बड़ा कदम उठाया है। सरकार ने झारखंड के 200 से ज्यादा नक्सलियों पर एक लाख से लेकर एक करोड़ रुपये तक के इनाम घोषित कर दिए हैं।

साल 2009 में 9 साल की इस मासूम को जब झारखंड से नक्सलियों ने अगवा किया तो उसे जरा भी इल्म नहीं था कि उसके साथ क्या हुआ। सारंडा के जगलों में जब करीब 400 नक्सलियों के बीच एक दिन इस लड़की ने खुद को पाया तो हक्का-बक्का रह गई।

वर्ष 1999 में पड़ोसी मुल्क से आए दुश्मनों ने हमारे देश की तरफ नजर उठाकर देखने की गुस्ताखी की थी। इस युद्ध में देश के वीर जवानों ने दुश्मनों को धूल चटाया और उन्हें पीछे हटने पर मजबूर कर दिया था।

नक्सलियों ने कायरता पूर्ण कार्रवाई करते हुए नीरज की पीठ में गोली मारी थी लेकिन बहादुर नीरज गोली लगने के बावजूद घंटों नक्सलियों से लड़ते रहे। लड़ते-लड़ते नीरज छेत्री मौके पर ही शहीद हो गए।

पुलिस ने इस नक्सली को मुख्यधारा में लौट आने के कई मौके दिए। प्रशासन यह चाहता था कि वो खुद सरेंडर कर दे ताकि लोकतंत्र में रहकर वो एक जिम्मेदार नागरिक की भूमिका में आ सके।

एक जवान ने देखा कि नियंत्रण रेखा के करीब 8 किलोमीटर दूर हसमत पूरा क्षेत्र में कुछ आतंकवादी छिपे हुए हैं। सेना के जवानों ने इन आतंकियों को चारों तरफ से घेर लिया। खुद को घिरा महसूस करते ही आतंकवादियों ने पुलिस पर गोले बरसाने शुरू कर दिए।

शहर में रहकर बड़े नक्सली कमांडर के लिए करते थे मुखबिरी का काम, साथ ही नक्सलियों के लिए वसूलते थे। पुलिस ने तीनों को किया गिरफ्तार।

मंटू यादव को देवरी पुलिस काफी दिनों से खोज रही थी। 4 दिसंबर, 2010 को इस नक्सली ने चिराग के साथ मिलकर झारखंड विकास मोर्चा की नेता मीरा तिवारी के घर पर हमला बोला था।

टीएसपीसी झारखंड में सक्रिय एक उग्रवादी संगठन है जिसका काम ठेकेदारों से लेवी और फिरौती लेना है। शर्त नहीं मानने पर सजा-ए-मौत अथवा अपहरण इस संगठन का एक तरीका है। यह संगठन झारखंड पुलिस के लिए एक बड़ा सिर दर्द बना हुआ है।

वीर शहीद जवान की मां ने कहा, 'आने वाले समय में भी हम अपने पुत्रों को पुलिस विभाग में भेजते रहेंगे'।

शहीद अपने पीछे अपनी पत्नी और 4 बेटों को छोड़ कर गए हैं। पहला बेटा सीताराम पुरतीजो 14 वर्ष के हैं वह सरायकेला में दसवीं कक्षा के छात्र हैं। जबकि दूसरे पुत्र राजेश पुरती 13 वर्ष के हैं जो राजनगर में नौवीं कक्षा में पढ़ाई करते हैं।

पत्नी और दिव्यांग बेटे का एकमात्र सहारा थे शहीद धनेश्वर महतो।

जिस तरह से शहीद के बेटे ने नक्सलियों को चेतावनी दी है इससे उनके माथे पर चिंता की लकीर थोड़ी तो जरूर खिंच गई होगी।

मजदूर से लेकर एएसआई तक का सफर किया शहीद मनोधन ने

हालत यह हो गई है कि नक्सली संगठन के कई बड़े नाम या तो अपनी मांद में आज दुबकर बैठे हैं या फिर किसी ना किसी तरह सरेंडर करने की फिराक में हैं।

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