करगिल में हाथ-पैर गंवाने वाले जवान मानिक वरधा ने सुनाई फतह की कहानी, पर सरकार से इस एक बात का है गिला

वर्ष 1999 में पड़ोसी मुल्क से आए दुश्मनों ने हमारे देश की तरफ नजर उठाकर देखने की गुस्ताखी की थी। इस युद्ध में देश के वीर जवानों ने दुश्मनों को धूल चटाया और उन्हें पीछे हटने पर मजबूर कर दिया था।

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मानिक वरधा ने करगिल युद्ध में दोनों हाथ पैर गंवा दिए। फाइल फोटो।

वर्ष 1999 में पड़ोसी मुल्क से आए दुश्मनों ने हमारे देश की तरफ नजर उठाकर देखने की गुस्ताखी की थी। इस युद्ध में देश के वीर जवानों ने दुश्मनों को धूल चटाया और उन्हें पीछे हटने पर मजबूर कर दिया था। झारखंड के जमशेदपुर जिले के गदरा गांव के रहने वाले मानिक वरधा भी इन्हीं वीर जवानों में से एक हैं। हवलदार मानिक वर्धा अपनी टुकड़ी के साथ करगिल युद्ध में तैनात खड़े थे। यूं तो इस दौरान कई जगह उनकी पोस्टिंग की गई लेकिन अंत में उन्हें उरी सेक्टर भेजा गया। इसी दौरान वहां एवलान्च आया और हवलदार मानिक वर्धा इस एवलान्च में दब गए। करीब 18 घंटे तक मानिक वर्धा इस एवलान्च में दबे रहे जिसकी वजह से उनके दोनों हाथ और पैरों ने काम करना बंद कर दिया और निष्क्रिय हो गए।

अंत में काफी खोजबीन करने के बाद सैनिक टुकड़ियों के द्वारा इस बहादुर हवलदार को एवलान्च से ऊपर उठाया गया और इलाज के लिए श्रीनगर, उधमपुर के बाद उन्हें पुणे के आर्टिफिशियल लिव फिटिंग सेंटर में भेजा गया। यहां इनके दोनों पैर और हाथों का इलाज किया गया परंतु सफलता नहीं मिली। वीर मानिक वर्धा आज भी दिव्यांग हैं। जब कभी मानिक वर्धा करगिल युद्ध को याद करते हैं तो उनका सीना आज भी गर्व से चौड़ा हो जाता है। वो इस युद्ध में भारत मां के वीर सपूतों के अदम्य साहस की कहानी को बखूबी बयां भी करते हैं। वो बताते हैं कि वो अपने साथियों के साथ भारत मां की जय जयकार करते हुए युद्ध में कूद गए थे और वो पल बेहद जोश भरने वाला था।

सुनिए करगिल फतह की पूरी कहानी वीर मानिक वर्धा की जुबानी:
मानिक वर्धा के मुताबिक 3 मई, 1999 को पाकिस्तानी मूवमेंट की सूचना मिली थी। उन्होंने बताया कि बटालिक सेक्टर के मारखम गांव के चरवाहे ताशी नामग्यात ने सबसे पहले काले कपड़े पहने छह संदिग्धों को खुदाई करते देखा था। जिसके बाद उसने सेना को इस बात की सूचना दी। इसी दौरान 28 मई को भारतीय वायुसेना का MI7 अभिमान पाकिस्तानी गोलाबारी का शिकार हो गया। जिसमें हमारे 4 जवान शहीद हो गए। पाकिस्तान ने बुझदिली दिखाते हुए नेशनल हाइवे पर बमबारी की लेकिन भारतीय सैनिक डरे नहीं बल्कि इसका डटकर मुकाबला किया। अंत में 5 जून, 1999 को कारगिल युद्ध के खिलाफ पाकिस्तान में रची गई कुछ दस्तावेज प्राप्त हुआ। वही 11 जून को इंटरसेप्ट जो भारतीय सैनिकों द्वारा पकड़े गए थे, उसमें परवेज मुशर्रफ एवं अन्य पाकिस्तानी अफसरों के बातचीत थी जिसमें कारगिल युद्ध के बारे में बहुत कुछ शामिल था। बड़ी कड़ी संघर्ष के बाद भारतीय सैनिक 13 जून 1999 को द्रास की तोलोलिंग पोस्ट पर विजय हासिल करते हुए लगातार आगे बढ़ गए । अंततः 29 जून 1999 भारतीय सैनिकों ने पॉइंट 50 60 पर फतह के साथ-साथ पॉइंट 5100 पर फिर से कब्जा करते हुए भारतीय तिरंगे को लहराया। इस प्रकार कारगिल युद्ध में भारतीय सैनिकों की जीत हुई।

मानिक वरधा के पिता का नाम सलखु वरधा है जो एक साधारण किसान थे। सुलखा वरधा के एक ही बेटे थे मानिक, जिन्हें पढ़ा-लिखा कर उन्होंने सेना में भेज दिया। मानिक 21 फरवरी, 1980 को पटना के दानापुर आर्मी कैंप में सैनिक परीक्षा में पास हुए। उनकी बिहार रेजीमेंट में बहाली हुई। मई 1999 में जब करगिल युद्ध शुरू हुआ तब बिहार रेजीमेंट से अपने साथियों के साथ वे युद्ध के लिए कारगिल गए थे। इनकी पत्नी करुणा एमए पास हैं तथा अपने गांव गदरा प्राथमिक विद्यालय में बतौर पारा शिक्षक कार्यरत हैं। इनके दो बेटे सुमित एवं तरुण हैं जो अभी पढ़ाई कर रहे हैं। मानिक वरधा की ख्वाहिश है कि उनका बेटा भी सेना में बड़ा अधिकारी बने। मानिक वरधा का कहना है, ‘सैनिक होना गर्व की बात है परंतु सैनिक जब शहीद हो जाते हैं या दिव्यांग हो जाते हैं तब सरकार का ध्यान उनके परिवार पर नहीं पड़ता है, जैसा कि मेरे साथ हो रहा है।’ उनका कहना है, ‘मेरी पत्नी एमए पास है और वह पारा टीचर भी है परंतु पत्नी की स्थायीकरण शिक्षक की मांग को लेकर कई बार सम्बंधित अधिकारियों के अलावा सरकार के दरवाजे गए लेकिन कोई सफलता नहीं हासिल हुई। जिसका मुझे अभी भी दुख है।’ करगिल युद्ध में दोनों हाथ-पैर गंवाने वाले मानिक को सरकार ने दो जगह जमीन मुहैया करवाई है जहां पर वो पंपसेट लगाकर खेती करते हैं और अपनी जीविका चलाते हैं।

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