कभी मजदूरी करते थे झारखंड पुलिस के शहीद ASI मनोधन हांसदा, फुटबॉल से था खास लगाव

मजदूर से लेकर एएसआई तक का सफर किया शहीद मनोधन ने

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झारखंड के सरायकेल में नक्सली हमले में शहीद हुए एएसआई मनोधन हांसदा

Saraikela Naxal Attack: कम उम्र में ही सिर से पिता का साया हट गया। लेकिन दोनों भाइयों ने विपरित परिस्थितियों में भी अपनी पढ़ाई जारी रखी। मेहनत और लगन से दोनों भाइयों सोनाधन हांसदा और छोटे मनोधन हांसदा ने झारखंड पुलिस ज्वॉइन कर लिया। दोनों भाइयों में देश एवं राज्य की सेवा करने की तमन्ना थी और इसी तमन्ना ने उन्हें इस नौकरी के लिए हमेशा प्रेरित किया। यह कहानी है झारखंड के सरायकेल में नक्सली हमले में शहीद हुए एएसआई मनोधन हांसदा की। शुक्रवार 21 जून, 2019 को शहीद एएसआई मनोधन हांसदा का तिरंगे से लिपटा शव जैसे ही उनके पैतृक गांव डोमनाडीह पहुंचा तो माहौल गमगीन हो गया। शहीद के शव के अंतिम दर्शन के लिए दर्जनों गांवों से लोगों का भारी भीड़ जमा थी और सभी की आंखें नम। भारी जनसैलाब ‘भारत माता की जय’, ‘वीर सहित मनोहर हांसदा अमर रहे’ का नारा लगा रहा था। यह भीड़ नक्सलियों को भी चेतावनी दे रहा था कि ‘नक्सलियों को अब झारखंड छोड़ना पड़ेगा’, ‘कायर नक्सल।’

साथी पुलिसकर्मियों ने दिया कंधा

शव पहुंचते ही पाली चोरी एसडीपीओ अरविंद कुमार सिंह ने पार्थिव शरीर को कंधा देकर उतारा और सलामी दी। वहां मौजूद पदाधिकारी एवं जवानों ने शहीद साथी को सलामी देते हुए जिस तिरंगे से शहीद का शव लिपटा हुआ था उस तिरंगे को एसडीपीओ एवं थाना प्रभारी जयराम सिंह के अलावा अन्य पुलिस पदाधिकारी की उपस्थिति में उनकी पत्नी मार्था मरांडी को सौंपा।

फफक पड़ा परिवार

मनोधन हांसदा के शहादत की खबर मिलते ही उनकी भाभी सांतोसिला मुर्मू, छोटी बहन सुकोदि हांसदा, जीजा नुनूलाल मुर्मू, बड़ी बहन सोनोदी हांसदा, पर तो जैसे दुखों का पहाड़ टूट पड़ा। भारी जनसैलाब के बीच मनोधन का अंतिम संस्कार आदिवासी रीति रिवाज के अनुसार डोमनाडीह में कर दिया गया। शहीद मनोधन ने दुमका में पुलिस लाइन के समीप जमीन खरीदकर घर बनाया था। वहीं पत्नी मारथा मरांडी तथा उसके दो छोटे बेटे 8 वर्षीय सुरेश हांसदा एवं 5 वर्षीय नरेश हांसदा के साथ रहती है। बता दें कि शहीद मनोधन की शादी 15 वर्ष पूर्व दुमका जिला के डगालपाड़ा गांव की रहने वाली मारथा मरांडी के साथ हुई थी।

मजदूरी से ASI तक का सफर

परिवार वालों के अनुसार मनोधन काफी मिलनसार प्रवृत्ति के इंसान थे। वह खुले दिमाग से सभी से मिलते-जुलते और दूसरों की हमेशा मदद करते थे। शहीद मनोधन ने मजदूर से लेकर एएसआई तक का सफर किया है। नौकरी से पहले मनोधन ने मजदूरी कर अपना और अपने परिवार की जिम्मेवारियों को संभालना शुरू किया। शहीद मनोधन के मित्र रहे रतन दास ने बताया कि वह गरीबी और तंगहाली में कड़ी संघर्ष कर मजदूर से सिपाही एवम् सिपाही से लेकर एएसआई बने। शहीद के बड़े भाई सोनाधन हांसदा भी झारखंड पुलिस में कार्यरत है। वे झारखण्ड के नेतरहाट में पदस्थापित है।

बेहतरीन फुटबॉल खिलाड़ी थे

साल 2005 में उन्होंने झारखंड पुलिस की नौकरी प्राप्त की। लगभग 10 सालों तक दुमका में आरक्षी के पद पर कार्यरत रहने के बाद उन्हें एएसआई के तौर पर पदोन्नति मिली। जिसके बाद वह सरायकेला खरसावां के तिरूल्डीह खरसावां के तिरूल्डीह थाना में पदस्थापित थे। पढ़ाई के अलावा खेल में भी मनोधन की काफी रुचि रही। मनोधर फुटबॉल के एक बेहतर खिलाड़ी थे। वो आसपास में होने वाले फुटबॉल मैच में जरूर हिस्सा लेते थे।

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