कैलाश बुधवार: वह बरगद जिसकी छांव में पत्रकारिता के कितने ही कोंपल पौध बने
कैलाश बुधवार पहले ग़ैर-यूरोपीय प्रसारक थे जिन्हें बीबीसी ने अपनी दो भाषाओं हिंदी और तमिल का प्रमुख बनाया। इसके बाद वे पहले ऐसे भाषा प्रमुख बने जिन्हें बीबीसी के निदेशक मंडल और ब्रिटन के वरिष्ठ नेताओं को बीबीसी विश्वसेवा की पहुंच और प्रभावक्षेत्र परिचित कराने के लिए चुना गया।
आखिर भारत से झगड़ा क्यों मोल ले रहा चीन?
चीनी विशेषज्ञों की राय तो यही है कि चीन, भारत को लेकर यह धारणा पहले ही बना चुका है कि भारत अब अमेरिका के गुट में है। भारत के निर्गुट रहने से चीन के व्यवहार में कोई अंतर नहीं आने वाला।
United Nations के 75 साल, ट्रंप की हेकड़ी और चीन की चाल
संयुक्त राष्ट्र की संस्थाओं की बदौलत पिछले 75 वर्षों में कोई विश्वयुद्ध नहीं हुआ है। लेकिन बढ़ते शहरीकरण, वैश्वीकरण और सामाजिक विषमताओं के चलते और कई विश्वव्यापी संकट खड़े हो गए हैं जिन के समाधान के लिए संयुक्त राष्ट्र और उसकी संस्थाएं अक्षम नज़र आने लगी हैं।
पूरी दुनिया से दुश्मनी मोल ले रहा चीन, मकसद क्या है?
अब चीन सीमा विवाद को सुलझाने की बजाय धीरे-धीरे सीमा के अधिक से अधिक हिस्से को अपने कब्ज़े में लेना चाहता है। लद्दाख की सीमा की बात करें तो चीन 1959 की सीमा को सही सीमा मानता है और भारत 1962 की लड़ाई के बाद की सीमा को सही सीमा मानता है।
Black Lives Matter आंदोलन को किसने हाईजैक किया?
दुनिया में शायद ही कोई ऐसा सुधार हो जो किसी विरोध या आंदोलन के बिना हुआ हो। अफ़्रीकावंशी काले नागरिकों के साथ होने वाले भेदभाव के विरोध में हो रहे Black Lives Matter या BLM आंदोलन को लेकर जब राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप भन्ना रहे थे, तब पूर्व राष्ट्रपति ओबामा ने एक छात्रसभा में कहा था, अमेरिकी लोकतंत्र भी विरोध आंदोलनों की ही देन है।
Black Lives Matter आंदोलन और डोनाल्ड ट्रंप की बदनीयती
Black Lives Matter आंदोलन से किसी नाटकीय बदलाव की उम्मीद करने से पहले हमें पश्चिमी एशिया के अरब देशों में चले उस अरब स्प्रिंग या वसंत आंदोलन को याद कर लेना चाहिए जिसके बाद लोकतंत्र के नए वसंत आने की बजाय तानाशाही के पतझड़ों की वापसी हुई थी।
अमेरिका में काले-गोरे का भेद और 51 साल का नाकाम सफर!
अमेरिका का राष्ट्रपति अपने नागरिकों का रोष ठंडा करने के लिए शांति और सहानुभूति की बातें करने की बजाय गोलियों से उड़ाने की ऐसी धमकियां दे जिनमें नस्लवादी ज़माने के भड़काऊ नारों की गूंज सुनाई देती हो, तो वह संयोग की बात नहीं हो सकती।
अमेरिका की अकड़, चीन की चालबाजी और कोरोना से जूझती दुनिया
पिछले हफ़्ते की घटनाओं पर नज़र डालें तो दुनिया में कुछ-कुछ वैसा ही होता नज़र आ रहा है। अमेरिका की ट्रंप सरकार ने ऐसी हवा बांधने की कोशिशें शुरू कर दी हैं कि जैसे कोविड-19 के वायरस को चीन ने अपनी किसी प्रयोगशाला में एक हथियार की तरह तैयार करके दुनिया पर छोड़ दिया हो।
200 लाख करोड़ की अर्थव्यवस्था और 2 करोड़ मजदूरों के बोझ से चरमरा गई!
एक से दो करोड़ प्रवासी मज़दूरों की बात भी कर लें तो 10 से 20 हज़ार करोड़ रुपए महीने के ख़र्च पर इन्हें सड़कों पर ठोकरें खाने और अपने साथ वायरस को फैलाने से बचाया जा सकता था। 200 लाख करोड़ की अर्थव्यवस्था में क्या एक-दो महीने एक-दो करोड़ बदहाल लोगों का गुज़र चलाने के लिए अर्थव्यवस्था के एक हज़ारवें हिस्से की गुंजाइश भी नहीं थी?
World View with Shivkant: नॉन वेजिटेरियन लोगों में क्यों जल्दी फैलता है कोरोना वायरस?
कोविड-19 जैसी महामारियों की रोकथाम करनी है तो हमें अपनी मांस खाने और उसके लिए जानवरों को पालने की प्रक्रिया में आमूलचूल बदलाव लाना होगा। मछली बाज़ारों में काम करने वाले और फ़ैक्टरी फ़ार्म चलाने वाले लोग इसके लिए तैयार नहीं हैं।
कोरोनावायरस पाबंदियों के ख़िलाफ़ फैलती बग़ावत
वायरस वैज्ञानिकों को इस बात की भी चिंता है कि कोविड-19 (Covid19) फैलाने वाले इस वायरस के ख़िलाफ़ शरीरों में पैदा होने वाली इम्यूनिटी कितने समय तक रह सकती है। यह उसी प्रजाति का वायरस है जिनसे फ़्लू फैलता है। फ़्लू के वायरसों के लिए बनने वाली इम्यूनिटी लंबे समय तक नहीं रहती। इसलिए हर साल टीके लगवाने पड़ते हैं। इन वायरसों के रूप भी बदलते रहते हैं जिसकी वजह से टीकों में भी बदलाव करना पड़ता है। ये सारी बातें कोविड-19 (Covid19) के ख़िलाफ़ जारी जंग को और पेचीदा बनाती हैं
कोविड-19 के बदलते रूप और ब्रिटेन की गहराती दुविधा
अमेरिका और यूरोप के वैज्ञानिकों का कहना है कि वायरसों का संक्रमण के दौरान रूप बदल लेना एक आम बात है। लेकिन इतने सारे रूप बदलने के पीछे वायरस की क्या ख़ास चाल हो सकती है और इनमें से कौन सा रूप सर्वाधिक घातक और संक्रामक साबित होता है इसका पता और गहन अध्ययनों से चलेगा। फ़िलहाल तो यही कहा जा सकता है कि वायरस के अनेक रूप धर लेने के कारण उसकी कोई एक अचूक दवा तैयार करने का काम और भी चुनौतीपूर्ण हो गया है।
…तो पल भर में हवा हो जाएगा तालाबंदी का सारा फायदा
स्वीडन को छोड़ कर दुनिया के लगभग सभी देशों ने लॉकडाउन या तालाबंदी का सहारा लिया जो सात सौ साल पहले प्लेग की रोकथाम के लिए अपनाई गई थी। लेकिन लोगों और उनके कारोबारों को अनिश्चित काल तक तालेबंदी में नहीं रखा जा सकता।
World View with Shivkant: इन फैसलों से तालाबंदी का सारा फायदा नुकसान में बदल जाएगा
स्वीडन को छोड़ कर दुनिया के लगभग सभी देशों ने लॉकडाउन या तालाबंदी का सहारा लिया जो सात सौ साल पहले प्लेग की रोकथाम के लिए अपनाई गई थी। लेकिन लोगों और उनके कारोबारों को अनिश्चित काल तक तालेबंदी में नहीं रखा जा सकता।
Corona की रफ्तार धीमी हुई है, पर धार वही है
अपनी विनाशलीला से पूरी दुनिया को नज़रबंद कर देने वाले कोरोनावायरस Covid-19 के फैलाव की रफ़्तार धीमी पड़ने लगी है। चीन में पिछले दस दिनों से किसी की Covid-19 से मृत्यु नहीं हुई है।
तेल की धार पर कोरोना की मार
पिछले दो दिनों से अमेरिका के तेल आढ़त बाज़ारों में तेल मुफ़्त से भी सस्ता बिक रहा है। मतलब यह कि यदि आप मई में तेल की सप्लाई लेने को तैयार हों तो बेचने वाले दलाल तेल मुफ़्त में देने के साथ-साथ ग्राहक को दो-तीन डॉलर प्रति बैरल का कमीशन भी देने को तैयार हैं।
डोनाल्ड ट्रंप को किस चीज से चाहिए आजादी? चुनाव जीतने के लिए कुछ भी…
डोनाल्ड ट्रंप ने पिछले शुक्रवार को तीन ट्वीट किए। मिनिसोटा की आज़ादी! मिशिगन की आज़ादी और वर्जीनिया की आज़ादी! आपको क्या लगता है केवल कन्हैया कुमार और शाहीन बाग़ के लोग ही आज़ादी के नारे लगाना जानते हैं? ट्रंप भी किसी से पीछे नहीं हैं।