Corona की रफ्तार धीमी हुई है, पर धार वही है

अपनी विनाशलीला से पूरी दुनिया को नज़रबंद कर देने वाले कोरोनावायरस Covid-19 के फैलाव की रफ़्तार धीमी पड़ने लगी है। चीन में पिछले दस दिनों से किसी की Covid-19 से मृत्यु नहीं हुई है।

CoronaVirus

CoronaVirus (Covid-19): भारत ने वायरस के घने फैलाव वाले इलाकों को छोड़ कर बाकी इलाकों में पाबंदियां ढीली कर दी हैं।

अपनी विनाशलीला से पूरी दुनिया को नज़रबंद कर देने वाले कोरोनावायरस Covid-19 के फैलाव की रफ़्तार धीमी पड़ने लगी है। चीन में पिछले दस दिनों से किसी की Covid-19 से मृत्यु नहीं हुई है। अमेरिका हो, इटली हो, स्पेन हो, फ़्रांस, ब्रिटेन और बेल्जियम हों या फिर ईरान, सभी देशों में Covid-19 से बीमार पड़ने वाले और मरने वाले लोगों की दैनिक संख्या पिछले सप्ताह भर से कम होती जा रही है। इसलिए कुछ अपवादों को छोड़ कर सभी देश लोगों की आवाजाही, कारोबार और बाज़ारों पर लगी कड़ी पाबंदियों को धीरे-धीरे खोल रहे हैं। भारत ने भी वायरस के घने फैलाव वाले इलाकों को छोड़ कर बाकी इलाकों में पाबंदियां ढीली कर दी हैं और ऐसा लगने लगा है कि अगले महीने तक कारोबार और यातायात काफ़ी हद तक बहाल हो जाएगा।

इस स्थिति तक पहुंचने के लिए दुनिया को बहुत बड़ी सामाजिक और आर्थिक क़ीमत चुकानी पड़ी है। दुनिया में लगभग 30 लाख लोग बीमार पड़ चुके हैं। दो लाख से अधिक मारे जा चुके हैं और लाखों की हालत गंभीर है। संख्या के हिसाब से दुनिया में सबसे बुरी हालत अमेरिका की हुई है और प्रति व्यक्ति के हिसाब से यूरोप के छोटे से देश बेल्जियम की, जिसे हीरों के कारोबार के लिए और यूरोपीय संघ की राजधानी के रूप में जाना जाता है। Covid-19 से बीमार पड़ने वाले हर तीन लोगों में एक और उससे मरने वाले हर चार लोगों में से एक अमेरिका का है। इसलिए अब दो बातों को लेकर कड़ी बहस हो रही है। पहली यह कि अमेरिका और यूरोप के देशों की सरकारों ने महामारी की रोकथाम के काम में कहां और क्या भूलें की हैं। दूसरी यह कि जब तक टीका बनकर बाज़ार में नहीं आ जाता, तब तक कैसे सुनिश्चित किया जाए कि महामारी फिर से न फैले।

अमेरिका और चीन में यह सोचा जा रहा था कि शहरों और गांवों में बड़े पैमाने पर रैंडम पद्धति से एंटीबॉडी टेस्ट कराए जाएं। जिन लोगों के शरीरों में Covid-19 वायरस को मारने वाले एंटीबॉडी मौजूद हों उन्हें और उनके आस-पास के लोगों को एंटीबॉडी प्रमाणपत्र देकर काम पर जाने की अनुमति दे दी जाए। इस सोच के पीछे यह धारणा है कि जिनके शरीर में Covid-19 को मारने वाले एंटीबॉडी मौजूद हों वे Covid-19 से बीमार नहीं हो सकते क्योंकि वायरस से बचाव करने वाले एंटीबॉडी वायरस के प्रवेश करते ही उसे मार देते हैं। टीका भी यही काम करता है। वह वायरस के एक छोटे से अंश या जीन को शरीर में डाल कर हमारे इम्यून सिस्टम या रोगरक्षा प्रणाली को जगाता है। रोगरक्षा प्रणाली एंटीबॉडी बनाती है, जो वायरस को और उससे प्रभावित हुई कोशिकाओं को मार देते हैं। इसलिए जिनके शरीरों में एंटीबॉडी मौजूद हैं उनपर वायरस का असर नहीं होना चाहिए। यानी कि वे निश्चिंत होकर कारोबारों पर लौट सकते हैं। लातीनी अमेरिकी देश चिली ने ऐसे ही टेस्टों के बाद बहुत से लोगों को प्रमाणपत्र दे कर काम पर लौटने की अनुमति दे दी है।

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लेकिन विश्व स्वास्थ्य संगठन ने चेतावनी दी यह कि यह धारणा भ्रामक है। अभी तक इस बात के कोई ठोस प्रमाण नहीं हैं कि जिन लोगों के शरीरों में Covid-19 को मारने वाले एंटीबॉडी हों उन पर वायरस दोबारा हमला नहीं कर सकता। चीन में किए गए कुछ अध्ययनों में पाया गया है कि Covid-19 वायरस उन लोगों को भी लग सकता है जो Covid-19 से बीमार होकर ठीक हो गए हों। जब Covid-19 से बीमार होकर ठीक हुए कुछ लोगों का टेस्ट किया गया तो उनमें से कुछ लोग एक बार फिर Covid-19 पॉज़िटिव पाए गए। यानी उनके शरीरों में वायरस मौजूद था। इससे दो बातें साबित होती हैं। पहली यह कि शरीर में Covid-19 को मारने वाले एंटीबॉडी का मौजूद होना इस बात की गारंटी नहीं है कि वह व्यक्ति Covid-19 से बचा रहेगा और फिर से बीमार नहीं होगा। दूसरी यह कि Covid-19 लगने और ठीक हो जाने की वजह से पैदा होने वाली इम्यूनिटी इस वायरस से कितने समय तक बचा सकती है, इसकी अभी तक कोई ठोस जानकारी नहीं है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन की चेतावनी कई समस्याएं खड़ी करती है। मसलन तालाबंदी और पाबंदियां खुल जाने पर भी हम पहले की तरह निश्चिंत होकर कारोबार, यातायात और सामाजिक मेलजोल नहीं कर पाएंगे। जो बीमार होकर ठीक हो गए हैं उन्हें दोबारा बीमार पड़ने का डर रहेगा और जो तालाबंदी की वजह से अब तक बचे रहे हैं उन्हें Covid-19 का नया शिकार बनने का डर रहेगा। सरकारें तालाबंदी लगाए रखेंगी तो कारोबार चौपट हो जाएंगे और पूरी छूट दे देंगी तो Covid-19 के पहले से भी तेज़ रफ़्तार से फैलने का ख़तरा रहेगा। लोगों को सामजिक दूरियां बनाए रखते हुए, Covid-19 से बचाव की सावधानियां बरतते हुए और जागरूक रहते हुए काम करना होगा। ऐसे में कुछ वैज्ञानिक बचाव की इस पूरी रणनीति पर ही सवाल उठा रहे हैं।

तेल की धार पर कोरोना की मार

ऑक्सफ़र्ड विश्वविद्यालय में महामारी विज्ञान की प्रोफ़ेसर सुनेत्र गुप्ता कहती हैं कि हमें अभी तक Covid-19 के स्वभाव और फैलाव के बारे में बहुत सी बुनियादी बातों का ही पता नहीं है। मसलन, हम यही नहीं जानते कि क्या यह वायरस सभी पर एक जैसा असर करता है? क्या यह हर किसी को लग सकता है या फिर कुछ को लगता है और कुछ को नहीं लगता? जब तक हम यह नहीं जान जाते कि Covid-19 से आबादी के कितने प्रतिशत और कैसे लोगों को ख़तरा है तब तक हम उससे बचाव के लिए सही रणनीति कैसे बना सकते हैं? हमें तो अभी तक यही पता नहीं है कि दुनिया भर में बीमार पड़ने वाले 30 लाख लोगों के अलावा दुनिया में और ऐसे कितने लोग हैं जिनको Covid-19 लग चुका है लेकिन उसका न उनको पता है और न दूसरों को क्योंकि उनके शरीर में अलबत्ता तो बीमारी के लक्षण हैं नहीं, और यदि हैं तो इतने मामूली हैं कि लोग उन्हें ज़ुकाम ही समझ रहे हैं और मामूली तकलीफ़ के बाद ठीक हो जा रहे हैं।

कुछ वैज्ञानिकों का कहना यह भी है कि बीमारी की गंभीरता या हल्कापन वायरस की उस मात्रा पर निर्भर करता है जो हमारे शरीर में प्रवेश करती है। इतना तो हम सभी जानते हैं कि Covid-19, लोगों की खांसी, छींक और सांस के ज़रिए या फिर हाथ मिलाने या उन चीज़ों और सतहों को छूने से फैल सकता है जिन्हें रोगी ने छुआ हो या फिर खांसी, छींक या सांस से दूषित किया हो। वैज्ञानिकों का कहना है कि खांसी, छींक, सांस की भाप और हाथ मिलाने से लगने वाले वायरस की मात्रा रोगियों द्वारा छुई गई सतहों और चीज़ों को छूने से लगे वायरस की मात्रा की तुलना में ज़्यादा होती है। क्योंकि यह वायरस एकदम नया है इसलिए हमें इसकी पक्की जानकारी नहीं है कि वायरस की कितनी मात्रा के शरीर में प्रवेश करने पर शरीर की रोगरक्षा प्रणाली की प्रतिक्रिया कैसी होती है। यह संभव है कि अधिक मात्रा में वायरस लगने से शरीर की रोगरक्षा प्रणाली बेकाबू हो जाती हो और बहुत ज़्यादा एंटीबॉडी बनाने लगती हो!

डोनाल्ड ट्रंप को किस चीज से चाहिए आजादी?

इम्यून सिस्टम या रोगरक्षा प्रणाली की प्रतिक्रिया की बात अस्पतालों से मिल रहे रोगियों और मरने वालों के आंकड़ों के आधार पर हो रही है। आंकड़े बताते हैं कि बहुत से रोगियों के गंभीर हालत में पहुंचने या मर जाने की मुख्य वजह वायरस नहीं बल्कि उनकी रोगरक्षा प्रणाली की अतिसक्रियता है। इसे आप इस तरह से समझ सकते हैं कि वायरस की भारी मात्रा को रोकने के लिए ज़रूरत से ज़्यादा सक्रिय हुई रोगरक्षा प्रणाली गोली से मारे जा सकने वाले शिकार पर परमाणु बम दागने लगती है। रोगियों के फेफड़े इस वायरस को मारने के लिए भेजी गई मारक कोशिकाओं की पीप से ऐसे भर जाते हैं कि ऑक्सीजन बंद हो जाती है जिसके कारण बाकी अंग नाकाम होने लगते हैं। कुछ कम उम्र के रोगियो को स्ट्रोक या पक्षाघात भी हो रहे हैं। इसलिए Covid-19 के रोगियों के इलाज के लिए यूरोप और भारत के संस्थानों के डॉक्टर वायरस मारने वाली दवाओं के साथ-साथ रोगरक्षा प्रणाली को काबू में रखने वाली दवाएं भी दे रहे हैं। चंडीगढ़ के PGI चिकित्सा शोध संस्थान में Covid-19 के रोगियों पर कुष्ठ रोग का इलाज करने वाले टीके MW का भी प्रयोग करके देखा जा रहा है।

कहने का मतलब यह है कि Covid-19 डॉक्टरों के सामने एक मुश्किल दुविधा खड़ी कर देता है। मरीज़ की बेकाबू हुई रोगरक्षा प्रणाली को शांत करने वाली दवाएं दें तो वायरस को और तेज़ी से फैलने का मौक़ा मिल जाता है और वह हावी हो जाता है। यदि रोगरक्षा प्रणाली को न रोकें तो रोगी अपनी ही रोगरक्षा प्रणाली की मार से मर जाता है। अभी तक वैज्ञानिकों को यह पता नहीं है कि Covid-19 के हमले के बाद कुछ लोगों की रोगरक्षा प्रणाली इतनी बेकाबू क्यों होने लगती है। इसकी वजह Covid-19 के फ़ैलने की रफ़्तार भी हो सकती है, Covid-19 की अधिक मात्रा भी हो सकती है और रोगरक्षा प्रणाली का देर से सक्रिय होना भी। टीका तैयार करते समय वैज्ञानिकों को यह गुत्थी भी सुलझानी होगी और यह सुनिश्चित करना होगा कि टीका हमारी रोग रक्षा प्रणाली को इस तरह जगाए कि वह सही समय पर सही मात्रा में अचूक किस्म के एंटीबॉडी बना कर इस रोग से लंबे समय तक हमारी रक्षा कर सके।

चीन की इस हरकत के चलते दुनिया भर में फैला Corona

विश्व स्वास्थ्य संगठन का कहना है कि इस समय चीन, अमेरिका, ब्रिटेन और जर्मनी समेत यूरोप और एशिया भर में फैले संस्थानों और कंपनियों की लगभग सौ टीमें Covid-19 का टीका तैयार करने में जुटी हैं। अमेरीका, ब्रिटेन और जर्मनी की टीमों ने रोगियों पर टीकों का परीक्षण भी शुरू कर दिया है। लेकिन यह वायरस इतना पेचीदा और नया है कि उससे लंबे समय तक रक्षा करने वाले टीके का विकास कर पाना आसान नहीं होगा। Covid-19 से पहले भी कोरोनावायरस की दो बीमारियां फैल चुकी हैं, SARS और MERS. लेकिन अभी तक इन दोनों के लिए किसी टीके का विकास नहीं हो सका है। लेकिन इस बार लगता है पूरी दुनिया के वैज्ञानिक एक नए संकल्प और सहयोग भावना के साथ काम कर रहे हैं। इसलिए टीके का विकास होने की संभावना पहले से ज़्यादा है। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने Covid-19 के टेस्ट और टीके का बड़े पैमाने पर उत्पादन करने और उसे पूरी दुनिया में सुलभ कराने के लिए एक महामारी तत्परता अभियान की शुरुआत भी कर दी है।

अफ़सोस की बात है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन में सबसे अधिक आर्थिक योगदान करने वाले और नतीजतन सबसे अधिक प्रभाव रखने वाले देश अमेरिका ने जलवायु परिवर्तन संधि की तरह इस अभियान से भी दूर रहने का फ़ैसला किया है। आपको याद होगा पिछले ही सप्ताह राष्ट्रपति ट्रंप ने Covid-19 के प्रकोप से हुई अपने देश की दुर्गति का ठीकरा विश्व स्वास्थ्य संगठन और चीन के सिर फोड़ते हुए विश्व स्वास्थ्य संगठन को दिया जाने वाला अनुदान बंद करने का ऐलान किया था। उन्होंने कहा कि विश्व स्वास्थ्य संगठन ने दुनिया को इस वायरस के ख़तरों के बारे में समय रहते सही सलाह न देकर भारी भूलें की हैं जिनकी क़ीमत अमेरिका समेत पूरी दुनिया को चुकानी पड़ रही है। उन्होंने कहा कि विश्व स्वास्थ्य संगठन की भूमिका की और चीन के साथ उसकी सांठ-गांठ की पूरी समीक्षा कराई जाएगी।

Corona के ताप से बच गए तो मंदी मार देगी!

यह सही है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन ने दुनिया को यह बताने में दो-तीन हफ़्तों की देर की कि Covid-19 इंसान से इंसान में फैलने लगा है। हवाई यातायात बंद करने से Covid-19 की रोकथाम में कोई मदद नहीं मिलेगी यह बयान देकर उसने चीन और बाकी दुनिया के देशों को हवाई यातायात जारी रखने की भूल की तरफ़ धकेला जो वायरस के फैलाव का मुख्य कारण साबित हुई। फिर भी, सारा दोष विश्व स्वास्थ्य संगठन और चीन के सिर मंढ़ कर ट्रंप साहब अपनी ग़लतियों से पल्ला नहीं झाड़ सकते। चीन के पड़ोसी वियतनाम ने वूहान के लॉकडाऊन से सबक लेते हुए अपने यहां चीन और मलेशिया से आने वाले Covid-19 रोगियों के टेस्ट और संपर्क टोहने की नीति अपनाते हुए उन्हें क्वारंटीन में रखकर सामाजिक दूरियों को इतने प्रभावी तरीके से लागू किया कि बीमारों की संख्या 270 से आगे नहीं जा पाई और एक भी व्यक्ति की मौत नहीं हुई। आबादी में भले ही अमेरिका का एक चौथाई सही लेकिन अमेरिका की 55 हज़ार Covid-19 मौतों के मुकाबले एक भी व्यक्ति को Covid-19 का शिकार न बनने देकर वियतनाम ने अमेरिका को एक बार और मात दी है।

वियतनाम के पास दक्षिण कोरिया की तरह झटपट टेस्ट तैयार करने और बड़े पैमाने पर टेस्ट और ट्रेस की नीति अपनाने के लिए पर्याप्त साधन और क्षमता नहीं थी। उसकी कमी उसने जनवरी से ही चीन और दूसरे देशों से आने वाले यात्रियों पर कड़ी नज़र रखने, Covid-19 के रोगियों का पता चलते ही उनके संपर्क में आए लोगों की टोह लगाने और सभी को सख़्ती से क्वारंटीन करने और लोगों को Covid-19 के ख़तरों के बारे में सजग रखने के लिए जनसंचार के सारे माध्यमों का मुस्तैदी से इस्तेमाल करने की नीति अपनाई जो सस्ती भी साबित हुई और प्रभावशाली भी। भारत भी वियतनाम से बहुत कुछ सीख सकता था और सीख सकता है। भारत की तरह चीन का पड़ोसी होते हुए वियतनाम ने न केवल अपने लोगों को Covid-19 से सुरक्षित रखा है बल्कि चीन से भागती कंपनियों और कारोबारों को अपनी तरफ़ खींच कर तेज़ आर्थिक विकास भी किया है।

एक दीप खुद के लिए भी जला ही लीजिए!

वियतनाम, दक्षिण कोरिया, ताईवान और जर्मनी के Covid-19 से होने वाली मौतों की संख्या कम रखने के अनुभवों को विश्व स्वास्थ्य संगठन के मंच के ज़रिए पूरी दुनिया में साझा किया जा सकता है ताकि अफ़्रीका और लातीनी अमेरिका के देश अपने सीमित साधनों की चादर में रहते हुए Covid-19 के फैलाव की रोकथाम कर सकें। टीके का जल्दी से जल्दी विकास करने के लिए दुनिया भर में फैली वैज्ञानिकों की सौ टीमों के बीच आपसी सहयोग और तालमेल रखने और टीका बन जाने पर उसे पूरी दुनिया के लिए वाजिब दामों पर सुलभ कराने में विश्व स्वास्थ्य संगठन एक अहम भूमिका निभा सकता है। इसके अलावा जब तक टीके का विकास नहीं हो जाता तब तक सारे देशों में मास्क और दस्ताने जैसी आम आदमी के बचाव की चीज़ें कैसे सुलभ हों और कैसे स्वास्थ्य कर्मियों को हज़मत गाऊन, रेस्पिटरेटरी मास्क, फ़ेस गार्ड और वेंटिलेटर जैसी आवश्यक चीज़ों की कमी न हो इसका प्रबंध भी विश्व स्वास्थ्य संगठन कर सकता है, बशर्ते कि सभी सदस्य देश उसे आवश्यक संसाधन और अधिकार देने का संकल्प लें।

अमेरिका और चीन के आपसी झगड़े में न पड़ते हुए संयुक्त राष्ट्र ने एक वीडियो सम्मेलन के ज़रिए यही करने की पहल की है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के महामारी तत्परता अभियान में ब्रिटन, फ़्रांस और जर्मनी के अलावा माइक्रोसोफ़्ट के संस्थापक बिल गेट्स भी प्रमुख भूमिका अदा कर रहे हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन को अमेरिका के बाद सबसे बड़ा अनुदान बिल गेट्स के फ़ाउन्डेशन से ही मिलता रहा है। ब्रितानी प्रधानमंत्री बोरिस जॉन्सन Covid-19 की चपेट से मुक्त होकर लगभग एक महीने की बीमारी के बाद आज काम पर लौटे हैं और वे इस महामारी के ख़िलाफ़ अंतर्राष्ट्रीय सहयोग जुटाने के लिए कटिबद्ध जान पड़ते हैं। चार मई को ब्रिटेन के सह नेतृत्व में एक शिखर बैठक होगी जिसमें महामारी तत्पपरता अभियान के लिए पैसा जुटाने की कोशिश की जाएगी। डोनाल्ड ट्रंप ने भले ही ठेंगा दिखा दिया हो परंतु महामारी तत्परता अभियान के लिए 25 करोड़ पाऊंड देकर ब्रिटेन Covid-19 के टीके के विकास के लिए अंतर्राष्ट्रीय सहयोग जुटाने की पहल कर चुका है। इसलिए संयुक्त राष्ट्र को अब भी उम्मीद है कि अमेरिका और चीन भी देर-सवेर इस पहल में शामिल हो ही जाएंगे। मख़मूर सईदी का शेर है:

रास्ते शहर के सब बंद हुए हैं तुम पर,

घर से निकलोगे तो मख़मूर किधर जाओगे?

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