कैलाश बुधवार: वह बरगद जिसकी छांव में पत्रकारिता के कितने ही कोंपल पौध बने

कैलाश बुधवार पहले ग़ैर-यूरोपीय प्रसारक थे जिन्हें बीबीसी ने अपनी दो भाषाओं हिंदी और तमिल का प्रमुख बनाया। इसके बाद वे पहले ऐसे भाषा प्रमुख बने जिन्हें बीबीसी के निदेशक मंडल और ब्रिटन के वरिष्ठ नेताओं को बीबीसी विश्वसेवा की पहुंच और प्रभावक्षेत्र परिचित कराने के लिए चुना गया।

Kailash Budhwar BBC

नहीं रहे वरिष्ठ पत्रकार कैलाश बुधवार।

बीबीसी हिंदी को प्रसारण की दुनिया का सबसे बड़ा और ऊँचा नाम बनाने वाले कैलाश बुधवार जिन्हें हम सब कैलाश भाई कहकर बुलाते थे, एक बेजोड़, प्रसारक, पत्रकार, अभिनेता और लेखक होने के साथ-साथ अपने-आप में एक संस्था थे। वे अपनी बुलंद आवाज़ में हमेशा हर विषय पर साधिकार बात करने और सब को प्रेरित करने को उत्सुक रहते थे। एक संपादक के रूप में मैंने उन्हें कभी किसी के साथ ऊँची आवाज़ में बात करते नहीं सुना। अपने हर छोटे-बड़े साथी से वे बड़ी ही आत्मीयता के साथ मिलते थे। उनका व्यक्तित्व बरगद के पेड़ की तरह था जिसकी छत्रछाया में हमारी पीढ़ी के बहुत से प्रसारकों-पत्रकारों को फलने-फूलने का मौक़ा मिला।

कैलाश बुधवार पहले ग़ैर-यूरोपीय प्रसारक थे जिन्हें बीबीसी ने अपनी दो भाषाओं हिंदी और तमिल का प्रमुख बनाया। इसके बाद वे पहले ऐसे भाषा प्रमुख बने जिन्हें बीबीसी के निदेशक मंडल और ब्रिटन के वरिष्ठ नेताओं को बीबीसी विश्वसेवा की पहुंच और प्रभावक्षेत्र परिचित कराने के लिए चुना गया। यानी दक्षिण एशिया में बीबीसी की धाक जमाने के साथ-साथ स्वयं बीबीसी के भीतर भी हिंदी और तमिल सेवाओं की धाक जमाने का श्रेय कैलाश जी को ही जाता है। उनके साथ काम करना अपने आप में एक शिक्षा थी।

Kailash Budhwar BBC

कैलाश जी ने बीबीसी हिंदी और तमिल सेवाओं को लोकप्रियता और साख के शिखर पर पहुँचाया। हिंदी की प्रिंट पत्रकारिता में उन दिनों जनसत्ता, दिनमान और रविवार का दौर था। लेकिन प्रसारण की दुनिया में केवल एक नाम था, बीबीसी हिंदी, जिसके सूत्रधार कैलाश बुधवार थे। बीबीसी के श्रोताओं की संख्या चार करोड़ तक जा पहुंची थी। देश के बड़े से बड़े संपादक बीबीसी हिंदी और तमिल के लिए समाचार समीक्षाएं किया करते थे। दक्षिण एशिया से आने वाले हर बड़े नेता, राजीव गांधी हों या अटल बिहारी वाजपेई, अज्ञेय हों, हरिवंशराय बच्चन हों या निर्मल वर्मा, अमिताभ हों या राजकपूर, हेमा मालिनी हों या लता मंगेशकर, बीबीसी बुश हाउस ज़रूर आते थे।

कैलाश जी ने अपने कैरियर की शुरुआत पृथ्वीराज कपूर के पृथ्वी थियेटर से की थी जहां वे अभिनेता बनने गए थे। लेकिन मुंबई की आपाधापी से घबरा कर वापस लौटे और आकाशवाणी में समाचार प्रसारक बने। कुछ समय तक सैनिक स्कूल में अध्यापन भी किया और उसके बाद उन्हें बीबीसी ने चुन लिया और फिर सेवानिवृत्त होने तक यहीं रहे। कैलाश जी का यूँ अकस्मात चले जाना प्रसारण की दुनिया में एक ऐसा खालीपन छोड़ गया है जिसे भर पाना शायद कभी संभव न हो। हिंदी के अलावा कैलाश जी को संस्कृत और उर्दू दोनों से लगाव था। इसलिए पहले संस्कृत की एक सूक्ति जो उनपर खरी उतरती है –

परिवर्तिनि संसारे मृतः को वा न जायते,
स जातो येन जातेन याति वंशः समुन्नतिम्।

इस परिवर्तनशील संसार में आते-जाते तो सभी हैं। लेकिन असली आना उसी का है जिसके आने से परिवार का नाम रोशन हो। कैलाश जी हिंदी सेवा को परिवार कहा करते थे और अपने दौर में उन्होंने इस परिवार को साख के शिखर पर पहुँचाया।

और उन के यूं अकस्मात चले जाने पर ख़ालिद शरीफ़ का एक शेर याद आता है –

बिछड़ा कुछ इस अदा से कि रुत ही बदल गई,
इक शख़्स सारे शहर को वीरान कर गया…

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