World View with Shivkant: नॉन वेजिटेरियन लोगों में क्यों जल्दी फैलता है कोरोना वायरस?

कोविड-19 जैसी महामारियों की रोकथाम करनी है तो हमें अपनी मांस खाने और उसके लिए जानवरों को पालने की प्रक्रिया में आमूलचूल बदलाव लाना होगा। मछली बाज़ारों में काम करने वाले और फ़ैक्टरी फ़ार्म चलाने वाले लोग इसके लिए तैयार नहीं हैं।

COVID-19

Commuters wearing protective masks walk through Hong Kong Station, operated by MTR Corp., in Hong Kong, China, on Wednesday, Jan. 29, 2020. Governments tightened international travel and border crossings with China as they ramped up efforts to stop the spread of the disease. Photographer: Paul Yeung/Bloomberg via Getty Images

नेतृत्व की सच्ची परख संकट के दिनों में ही होती है। कोविड-19 की महामारी नेतृत्व की सच्ची परख बनकर आई है। क्योंकि इस महामारी जैसा संकट दुनिया ने दूसरे विश्वयुद्ध के बाद से नहीं देखा। लेकिन Is the American Century Over? और Do Morals matter जैसी प्रसिद्ध पुस्तकों के लेखक और हॉरवर्ड के प्रोफ़ेसर जोसेफ़ नाई जुनियर का कहना है कि अभूतपूर्व संकट की इस घड़ी में दुनिया का नेतृत्व निहायत बुरे तरीक़े से नाकाम रहा है। यहां तक कि वर्तमान अमेरिकी राष्ट्रपति के ऊल-जलूल आक्षेपों-कटाक्षों की बौछार के बावजूद मौन रहने वाले पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा को भी मुंह खोल कर कहना पड़ा है कि महामारी से निपटने का इस सरकार का तरीक़ा एकदम अराजकता भरी तबाही था।

अंतर्राष्ट्रीय मामलों के टीकाकार साइमन टिस्डल ने गार्डियन में छपे अपने लेख में ब्रिटेन की शर्मनाक हालत के लिए बोरिस जॉन्सन की कंज़र्वेटिव सरकार की तीख़ी आलोचना की है। छह हफ़्तों से चल रही तालाबंदी के बावजूद ब्रिटेन में लगभग दो लाख सोलह हज़ार लोग बीमार हो चुके हैं और 32 हज़ार की मौत हो चुकी है। यूरोप में महामारी से सबसे बाद में प्रभावित होने वाला देश होने के बावजूद ब्रिटेन की हालत यूरोप में सबसे बुरी हो गई है। इटली, स्पेन, जर्मनी और फ़्रांस जैसे दूसरे यूरोपीय देशों में बीमार होने वालों और मरने वालों की संख्या में तेज़ी से कमी आ रही है और सरकारें पाबंदियां खोलती जा रही हैं। लेकिन ब्रिटेन में बीमार होने वालों और मरने वालों की संख्या अभी भी इतनी धीमी नहीं पड़ी है कि स्कूलों और कारोबारों को खोला जा सके। ब्रिटेन को एक बार फिर Sick Man of Europe या यूरोप का बीमार सदस्य कहा जाने लगा है।

नेतृत्व की सच्ची परख संकट के दिनों में ही होती है। कोविड-19 की महामारी नेतृत्व की सच्ची परख बनकर आई है। क्योंकि इस महामारी जैसा संकट दुनिया ने दूसरे विश्वयुद्ध के बाद से नहीं देखा। लेकिन Is the American Century Over? और Do Morals matter जैसी प्रसिद्ध पुस्तकों के लेखक और हॉरवर्ड के प्रोफ़ेसर जोसेफ़ नाई जुनियर का कहना है कि अभूतपूर्व संकट की इस घड़ी में दुनिया का नेतृत्व निहायत बुरे तरीक़े से नाकाम रहा है। यहां तक कि वर्तमान अमेरिकी राष्ट्रपति के ऊल-जलूल आक्षेपों-कटाक्षों की बौछार के बावजूद मौन रहने वाले पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा को भी मुंह खोल कर कहना पड़ा है कि महामारी से निपटने का इस सरकार का तरीक़ा एकदम अराजकता भरी तबाही था।

अंतर्राष्ट्रीय मामलों के टीकाकार साइमन टिस्डल ने गार्डियन में छपे अपने लेख में ब्रिटेन की शर्मनाक हालत के लिए बोरिस जॉन्सन की कंज़र्वेटिव सरकार की तीख़ी आलोचना की है। छह हफ़्तों से चल रही तालाबंदी के बावजूद ब्रिटेन में लगभग दो लाख सोलह हज़ार लोग बीमार हो चुके हैं और 32 हज़ार की मौत हो चुकी है। यूरोप में महामारी से सबसे बाद में प्रभावित होने वाला देश होने के बावजूद ब्रिटेन की हालत यूरोप में सबसे बुरी हो गई है। इटली, स्पेन, जर्मनी और फ़्रांस जैसे दूसरे यूरोपीय देशों में बीमार होने वालों और मरने वालों की संख्या में तेज़ी से कमी आ रही है और सरकारें पाबंदियां खोलती जा रही हैं। लेकिन ब्रिटेन में बीमार होने वालों और मरने वालों की संख्या अभी भी इतनी धीमी नहीं पड़ी है कि स्कूलों और कारोबारों को खोला जा सके। ब्रिटेन को एक बार फिर Sick Man of Europe या यूरोप का बीमार सदस्य कहा जाने लगा है।

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