
Martyr lance naik Nazir Ahmad Wani
नजीर (Nazir Ahmad Wani) भी कभी घाटी के अन्य युवाओं की तरह भटका हुआ था और आतंकी गतिविधियों में शामिल था। बाद में उसका मन बदला और वह सेना (Indian Army) में शामिल हो गया।
कश्मीर घाटी का जिक्र आते ही पत्थरबाजी करते, हाथों में बंदूक उठाए और भारत के खिलाफ जेहादी मानसिकता वाले युवकों की तस्वीर जेहन में आने लगती है। जिस राज्य की फिजा में बारुद की गंध और गोलियों की तड़तड़ाहट की आवाज गूंज रही हो, वहां का कोई युवक आतंक का रास्ता छोड़कर सैनिक बन जाए और देश के लिए आतंकियों (Terrorists) से लोहा लेते हुए हंसते-हंसते अपनी जान दे दे तो वह अपने आप में नज़ीर है।
ऐसे व्यक्ति के सम्मान में हर शब्द छोटा लगता है। कुछ ऐसी ही कहानी है कश्मीर घाटी के एक युवा नजीर अहमद वानी (Nazir Ahmad Wani) की। जिसने बुरी तरह से घायल होने के बावजूद अपनी जान की परवाह किए बिना अपने साथियों को बचाने में अपनी जान गवां दी। वह आतंकवाद छोड़कर सैनिक बना और आतंकियों के खिलाफ एक एनकाउंटर में शहीद हुआ।
नजीर (Nazir Ahmad Wani) भी कभी घाटी के अन्य युवाओं की तरह भटका हुआ था और आतंकी गतिविधियों में शामिल था। बाद में उसका मन बदला और वह सेना में शामिल हो गया। जिसके बाद उसने कई आतंकियों को सबक सिखाया। यह कहानी एक आतंकवादी के देशभक्त बनने और सेना में शामिल होकर आतंकियों के खिलाफ अभियान में अपना सर्वोच्च बलिदान देने की है।

यह वानी भारतीय सेना (Indian Army) के लांस नायक नजीर अहमद वानी हैं। जिन्हें आतंकवाद रोधी अभियान में सर्वोच्च बलिदान देने के लिए अशोक चक्र (मरणोपरांत) से नवाजा जाएगा। यह शांति काल में अदम्य साहस का प्रदर्शन करने के लिए मिलने वाला सबसे बड़ा गैलेंट्री अवॉर्ड है। यह पहला मौका है जब आतंक की नापाक राह से लौटे किसी जवान को देश के इतने बड़े सम्मान से नवाजा जा रहा हो।
नवंबर, 2018 की बात है। लांस नायक वानी (Nazir Ahmad Wani) 34 राष्ट्रीय राइफल्स के साथियों के साथ ड्यूटी पर तैनात थे। खुफिया एजेंसी से शोपियां के एक गांव में 6 आतंकवादियों के छिपे होने की खबर मिली। सूचना थी कि आतंकियों के पास भारी मात्रा में हथियार और गोला-बारूद है। वानी और उनकी टीम को आतंकियों को पकड़ने की जिम्मेदारी मिली।
जवानों ने उस घर को चारों तरफ से घेर लिया जिसमें आतंकी छिपे हुए थे। दोनों ओर से भयंकर गोलीबारी होने लगी। हालात भांपते हुए वानी जमीन पर लेट गए और दहशतगर्दों के पास तक पहुंच गए। उन्होंने एक आतंकी को बहुत करीब से मार गिराया। जवाबी फायरिंग में वह खुद भी घायल हो गए।
उनके सिर पर काफी चोटें आई थीं। आतंकियों की गोली से जख्मी होने के बावजूद नजीर वानी ने आतंकियों को भागने नहीं दिया। वह आतंकियों के भाग निकलने के रास्ते पर डटे रहे। खतरे को देखते हुए आतंकियों ने सेना की अंदरूनी घेराबंदी को तोड़ने की कोशिश की। आतंकियों ने तेज गोलीबारी शुरू कर दी और ग्रेनेड भी फेंकने लगे।
वह घायल थे लेकिन दहशतगर्दों पर हमला करते रहे। उन्होंने दूसरे आतंकी को भी ढेर कर दिया। इस एनकाउंटर में वानी और उनके साथियों ने कुल 6 आतंकियों को मार गिराया था। इनमें से दो को वानी ने खुद मारा था। गंभीर रूप से घायल वानी को प्राथमिक उपचार देकर 92 बेस हॉस्पिटल पहुंचाया गया। जहां इलाज के दौरान उन्होंने दम तोड़ दिया।

राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद गणतंत्र दिवस परेड से पहले राजपथ पर बने सलामी मंच पर वानी (Nazir Ahmad Wani) की पत्नी महजबीं को ‘अशोक चक्र’ प्रदान किया। जम्मू-कश्मीर की कुलगाम तहसील के अश्मूजी गांव के रहने वाले नज़ीर एक समय खुद आतंकवादी थे। दक्षिण कश्मीर में स्थित कुलगाम जिला आतंकवादियों का गढ़ माना जाता है।
वानी जैसों के लिए कश्मीर में ‘इख्वान’ शब्द इस्तेमाल किया जाता है। बंदूक थामकर वह बदला लेने निकले थे। पर कुछ वक्त बाद ही उन्हें गलती का अहसास हो गया और वह आतंकवाद छोड़कर सेना में भर्ती हो गए। वह 2004 में आर्मी के 162 इन्फेंट्री बटालियन में शामिल हुए थे। वे जोखिम भरे अभियानों से कभी पीछे नहीं हटे और आगे बढ़कर इन अभियानों में देश के दुश्मनों से लोहा लिया।
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यह पहला मौका था जब जम्मू-कश्मीर के किसी व्यक्ति को ‘अशोक चक्र’ से सम्मानित किया गया। लांस नायक वानी (Nazir Ahmad Wani) के परिवार में उनकी पत्नी के अलावा दो बेटे अथर (20 वर्ष) और शाहिद (18 वर्ष) हैं। उनकी पत्नी महजबीन टीचर हैं। महजबीन कहती हैं वानी का प्यार और उनका निडर होना, मुझे हर पल हिम्मत देता है कि मैं अपने दोनों बच्चों को अच्छा नागरिक बनाऊं।
महजबीन ने कहा, ”जब मुझे बताया गया कि वह नहीं रहे, मैं रोई नहीं थी। मेरे भीतर एक ताकत थी जिसने मुझे आंसू बहाने नहीं दिया। शिक्षक होने के नाते, मैं राज्य के लिए अच्छे नागरिक विकसित करने के लिए प्रतिबद्ध हूं। युवाओं को सही दिशा दिखाना मेरा लक्ष्य है। मैं इसकी प्रेरणा अपने पति से लेती हूं।”
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नजीर अहमद वानी (Nazir Ahmad Wani) एक बेहतरीन सिपाही थे। वे चाहते थे कि उनके जम्मू कश्मीर में सामान्य और शांतिपूर्ण स्थिति बनी रहे। उनकी निडरता और शौर्य का सुबूत इस बात से मिलता है कि उन्हें 2007 और 2018 में वीरता के लिए सेना पदक से सम्मानित किया गया था।
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वानी (Nazir Ahmad Wani) अपने गांव और समाज के वंचित वर्ग के लोगों की भलाई के कामों से भी पीछे नहीं हटते थे। वे हमेशा गांव की समस्याओं के समाधान के लिए काम करते थे। नज़ीर वानी इसलिए याद रखे जाने चाहिए क्योंकि वह कश्मीर में एक उम्मीद जगाते हैं। आपकी शहादत को सलाम वानी साहब।
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