…जब युद्ध में शामिल होने से पहले अरुण खेत्रपाल ने कहा- पाक को हरा लाहौर में गोल्फ खेलूंगा

भारत और पाकिस्तान के बीच 1971 में भीषण युद्ध लड़ा गया था। युद्ध में पाकिस्तान को बुरी तरह से हार का सामना करना पड़ा था। इस युद्ध में यूं तो हमारे कई सैनिकों ने शौर्य का परिचय दिया लेकिन एक जवान ऐसे थे, जिनकी बहादुरी की मिसाल आज भी पेश की जाती है।

Arun Khetarpal

फाइल फोटो।

War of 1971: अरुण खेत्रपाल (Arun Khetarpal) के सीनियर ने उन्हें जंग में शामिल होने से मना कर दिया था। पर उन्होंने यह कहकर अपने सीनियर को मना लिया था कि उन्हें फिर कभी जीवन में युद्ध में लड़ने का मौका नहीं मिलेगा।

भारत और पाकिस्तान के बीच 1971 में भीषण युद्ध लड़ा गया था। युद्ध में पाकिस्तान को बुरी तरह से हार का सामना करना पड़ा था। इस युद्ध में यूं तो हमारे कई सैनिकों ने शौर्य का परिचय दिया लेकिन एक जवान ऐसे थे, जिनकी बहादुरी की मिसाल आज भी पेश की जाती है।

हम बात कर रहे हैं 17 पूना हॉर्स के सेकंड लेफ्टिनेंट अरुण खेत्रपाल (Arun Khetarpal) की। युद्ध में महज 21 साल की उम्र में दुश्मनों के टैंक को धवस्त कर शहीद होने वाले इस जवान की बहादुरी की कहानी अपने आप में ही एक मिसाल है। युद्ध से पहले उनके सीनियर ने उन्हें जंग में शामिल होने से मना कर दिया था। उनका कहना था कि अभी उनकी उम्र नहीं।

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लेकिन अरुण खेत्रपाल (Arun Khetarpal) ने यह कहकर अपने सीनियर को मना लिया था कि उन्हें फिर कभी जीवन में युद्ध में लड़ने का मौका नहीं मिलेगा। उनकी इस गहरी बात को सुनकर उनके सीनियर ने हामी भर दी थी। हालांकि, उन्होंने अरुण के साथ एक सीनियर अधिकारी को भी उन्हें गाइड करने की जिम्मेदारी दी थी।

अरुण जब युद्ध में शामिल होने से पहले एक बार अपने दिल्ली स्थित घर पहुंचे तो उनके बैग में पड़ी गोल्फ स्टीक और नीले रंग के सूट पर पिताजी की नजर पड़ गई थी। इस दौरान पिता ने अरुण खेत्रपाल से पूछा कि तुम युद्ध गोल्फ स्टीक और ये नीले रंग का सूट क्यों ले ज रहे हो? इसपर उन्होंने जवाब दिया, “जीत के बाद लाहौर में गोल्फ खेलने का मन है और उसके बाद डिनर पार्टी भी तो होगी न। उसके लिए ये सूट ले जा रहा हूं।”

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बता दें  सेकंड लेफ्टिनेंट अरुण खेत्रपाल (Arun Khetarpal) ने युद्ध में पाकिस्तान के चार टैंक ध्वस्त कर दिए थे। उन्होंने अपने टैंक से बाहर न निकलकर बेहद विपरीत परिस्थिति में दुश्मनों के टैंक ध्वस्त किए थे। इस दौरान वह दुश्मन के हमले में गंभीर रूप से घायल हो गए थे, जिसके बाद वह शहीद हो गए। अरुण खेत्रपाल को युद्ध में अदम्य साहस का परिचय देने के लिए मरणोपरांत ‘परमवीर चक्र’ से नावाजा गया था।

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