Pulwama Attack

विजय के बड़े बेटे को पिता को खोने का दुख है। पर अब वह भी सेना में जाकर देश की सेवा करना चाहता है। 14 फरवरी को उसका जन्मदिन था और उसी दिन पिता शहीद हो गये। शहीद होने से पहले विजय ने बेटे को जन्मदिन की शुभकामना दी थी।

रिलायंस फाउंडेशन ने भी पुलवामा में शहीद हुए सीआरपीएफ के जवानों के प्रति अपनी कृतज्ञता प्रकट करते हुए उनके बच्चों की पढ़ाई और नौकरी की पूरी जिम्मेदारी लेने की घोषणा की है।  

शहीद रमेश यादव के बेटे आयुष का पैर जन्म से ही टेढ़ा है, जिसका इलाज कराना है। पर डेढ़ साल के बेटे को क्या पता था कि पापा की जगह उनके शहादत की ख़बर आएगी। बेटे का इलाज कराने का वादा करके निकले रमेश को नहीं पता था कि वह अब कभी वापस नहीं आयेंगे।

शहीद तिलक राज के 22 दिन के बेटे ने तो अबतक अपने पिता को ठीक से पहचाना भी नहीं है। उनके जाने के तीन दिन बाद ही उसकी पत्नी को यह मनहूस खबर मिली कि उसका सुहाग उजड़ गया है। तिलक को लोकगायकी का भी शौक था। ड्यूटी के दौरान सीमा पर देश की रक्षा करने वाले तिलक घर पहुंचने पर गाने रिकॉर्ड करते थे। उन्होंने कई पहाड़ी गाने गाए हैं।

तक़दीर का फैसला देखिए कि नसीर ख़ुद बचपन में अनाथ हो गए थे और आज इनके दोनों बच्चे भी अनाथ हो गए।

नितिन शिवाजी राठौर परिवार में कमाने वाले एकमात्र सदस्य थे। किसान परिवार से आने वाले राठौर 2006 में सेना में भर्ती हुए थे। शहादत की खबर सुनकर बूढ़े माता-पिता और परिवार टूट गया है। वहीं संजय राजपूत ने कश्मीर, छत्तीसगढ़ और पूर्वोत्तर में अपनी सेवाएं दी थीं। उन्होंने सीआरपीएफ में अपनी सेवा और पांच साल के लिए बढ़वा ली थी।

मोहनलाल हमेशा देश की रक्षा को लेकर बच्चों से बातें करते थे। छत्तीसगढ़ में नक्सली क्षेत्र हो या फिर जम्मू के आतंकी क्षेत्र वहां के कई किस्से उन्होंने बच्चों को सुनाए थे। दिसंबर में जब वे घर गए थे तो परिजनों ने उन्हें वीआरएस लेने का सुझाव दिया था। पर उन्होंने कहा कि देश को हमारी जरूरत है। देश की सेवा पूरी करने के बाद ही सेवानिवृत्त होंगे।

अवधेश की शादी तीन साल पहले चंदौली के पूरवा गांव की रहने वाली शिल्पी से साथ हुई थी। इनका एक 2 साल का बेटा निखिल है। अभी बीते मंगलवार को शहीद अवधेश यादव घर से लौटकर ड्यूटी जॉइन किए थे। पर क्या पता था कि ये उनका आख़िरी सफ़र होगा।

एक साल पहले ही उनकी शादी हुई थी। उनकी सिर्फ दो माह की एक बच्ची है। वह चार दिन पहले ही छुट्टी बिताकर वापस जम्मू-कश्मीर ड्यूटी पर लौटे थे। रोहिताश अपने पीछे पत्नी और 2 माह की बच्ची छोड़ गए हैं।

आतंकवादियों के हमले में सिर्फ़ राम वकील शहीद नहीं हुए बल्कि एक पूरा परिवार उजड़ गया। कई सपने दफ़्न हो गए, कई उम्मीदें खत्म हो गईं।

पिछले कुछ हफ्तों से देश भर में ‘हाऊ इज़ द जोश’ तकिया कलाम बन गया है। कहना ये है कि परीक्षा की ऐसी मुश्किल घड़ी में हमें जोश से अधिक होश की दरकार है!

तरफ अपने बेटे की शहादत पर गर्व है, तो दूसरी ओर सरकार पर गुस्सा भी है कि सरकार ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए कोई सख्त कदम क्यों नहीं उठा रही है।

For the past few weeks how’s the josh had become a new form of greeting amongst many in the country. In testing times like these we need to retain that Josh but with more than a fair sprinkling of Hosh!

पुलवामा आतंकी हमला: शहादत पर सीना चौड़ा करने का वक्त गुजर चुका है। वक्त है निर्णायक हल का।

नए साल के पहले दिन जब पूरा देश जश्न मना रहा था, तो घाटी में आतंकी खूनी खेल की तैयारी कर रहे थे। आतंकियों के खूनी मंसूबे का शिकार बने जम्मू कश्मीर के पुलवामा में स्पेशल पुलिस अधिकारी समीर अहमद।

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