Pulwama Attack: पुलवामा हमले के शहीदों में उत्तराखंड के दो जवान भी शामिल

मोहनलाल हमेशा देश की रक्षा को लेकर बच्चों से बातें करते थे। छत्तीसगढ़ में नक्सली क्षेत्र हो या फिर जम्मू के आतंकी क्षेत्र वहां के कई किस्से उन्होंने बच्चों को सुनाए थे। दिसंबर में जब वे घर गए थे तो परिजनों ने उन्हें वीआरएस लेने का सुझाव दिया था। पर उन्होंने कहा कि देश को हमारी जरूरत है। देश की सेवा पूरी करने के बाद ही सेवानिवृत्त होंगे।

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Pulwama Attack: शहीद मोहनलाल और शहीद वीरेंद्र सिंह

Pulwama Attack: पुलवामा में 14 फरवरी को सीआरपीएफ के 78 वाहनों का काफिला लगभग 2500 सुरक्षाकर्मियों को लेकर जा रहा था। तभी विस्फोटकों से भरी एक गाड़ी ने काफिले की एक बस में टक्कर मार दी। इस हमले में उत्तराखंड के दो जवान शहीद हो गए। शहीदों में उधम सिंह नगर के मोहम्मदपुर भूरिया के वीरेंद्र सिंह, और उत्तरकाशी के मोहनलाल शामिल हैं।शहीद वीरेंद्र सिंह उधमसिंह नगर जिले के खटीमा के मोहम्मदपुर भुढ़िया गांव के रहने वाले थे। उनके शहादत की जानकारी मिलने के बाद से घर में कोहराम मचा हुआ है। शहीद वीरेंद्र सिंह राणा के पिता का नाम दीवान सिंह है। उनके दो बड़े भाई जय राम सिंह और राजेश राणा हैं। जयराम सिंह बीएसएफ के रिटायर्ड सूबेदार हैं। राजेश राणा घर में खेती-बाड़ी का काम देखते हैं। वीरेंद्र के दो बच्चे, 5 साल की बेटी जबकि ढाई साल का बेटा है। वे दो दिन पहले ही 20 दिन की छुट्टी बिताने के बाद जम्मू वापस गए थे।

दूसरे शहीद मोहनलाल उत्‍तरकाशी के चिन्यालीसौड के बनकोट के रहने वाले थे। जम्मू-श्रीनगर हाईवे की सुरक्षा गश्त में तैनात मोहनलाल आतंकियों के निशाने पर आ गए। मोहनलाल के परिवार में उनकी पत्नी सरिता देवी, बेटा शंकर और श्रीराम, बेटी अनुसूइया, वैष्णवी और गंगा हैं। रोते हुए उनकी पत्नी ने बताया कि 27 दिसंबर को मोहनलाल एक माह की छुट्टी के बाद ड्यूटी पर गए थे। वहां से फोन कर उन्होंने फिर जल्दी ही घर आने की बात कही थी।

मोहनलाल 1988 में सीआरपीएफ में भर्ती हुए थे। इसके बाद उन्होंने श्रीनगर, छत्तीसगढ़, पंजाब, जालंधर, जम्मू-कश्मीर जैसे आतंकी और नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में ड्यूटी की। एक साल पहले ही मोहनलाल की पोस्टिंग झारखंड से पुलवामा हुई थी। मोहनलाल के बड़े बेटे शंकर ने बताया कि पापा हमेशा देश की रक्षा को लेकर उनसे बातें करते थे। छत्तीसगढ़ में नक्सली क्षेत्र हो या फिर जम्मू के आतंकी क्षेत्र वहां के कई किस्से मोहनलाल ने बच्चों को सुनाए थे। दिसंबर में जब मोहनलाल गए थे तो परिजनों ने उन्हें वीआरएस लेने का सुझाव दिया था। पर उन्होंने कहा कि देश को हमारी जरूरत है। देश की सेवा पूरी करने के बाद ही सेवानिवृत्त होंगे।

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