छत्तीसगढ़: बस्तर में कमजोर हुआ नक्सलवाद, इलाके में पर्यटन स्थलों के विकास का बन रहा प्लान

बस्तर (Bastar) से नक्सलवाद (Naxalism) धीरे-धीरे खत्म होने के कागार पर है। आज यहां को सुदूर इलाकों में लगातार विकास हो रहा है। नक्सलवाद के कमजोर होने के साथ ही सरकार और प्रशासन यहां के पर्यटन स्थलों के विकास में भी जुट गया है।

Bastar Tourist Places

File Photo

बस्तर (Bastar) में हवाई सेवा की शुरूआत होने के बाद जगदलपुर को पर्यटन के केंद्र (Bastar Tourist Places) के तौर पर विकसित किया जा रहा है।

छत्तीसगढ़ (Chhattisgarh) में लाल आतंक का गढ़ कहे जानेवाले बस्तर (Bastar) से नक्सलवाद (Naxalism) धीरे-धीरे खत्म होने के कागार पर है। आज यहां के सुदूर इलाकों में लगातार विकास हो रहा है। नक्सलवाद के कमजोर पड़ने के साथ ही सरकार और प्रशासन यहां के पर्यटन स्थलों के विकास में भी जुट गया है।

बस्तर में हवाई सेवा की शुरूआत होने के बाद जगदलपुर को पर्यटन के केंद्र (Bastar Tourist Places) के तौर पर विकसित किया जा रहा है। साथ ही बीते कुछ सालें में फोर्स की पहुंच जंगल में ऐसे इलाकों तक हुई है जो पहले नक्सलियों (Naxalites) के गढ़ माने जाते थे। जंगल में फोर्स पहुंची तो सड़क, बिजली, पानी जैसी बुनियादी सुविधाएं पहुंच गईं।

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इलाका सुरक्षित हो गया तो स्थानीय लोग जंगल में मौजूद पर्यटन केंद्रों तक जाने लगे। अब प्रशासन पर्यटन केंद्रों को बाहर से आने वाले पर्यटकों के लिहाज से विकसित कर रहा है। बता दें कि बस्तर के कई इलाके अपने प्रकृतिक सौंदर्य के लिए मशहूर हैं। लेकिन नक्सलियों की हिंसा की वजह से यहां का विकास नहीं हो पाया है।

संभाग के मुख्यालय जगदलपुर के आसपास मौजूद चित्रकोट और तीरथगढ़ जलप्रपात, कोटमसर की प्राकृतिक गुफाएं, एतिहासिक मंदिर आदि पर्यटन स्थलों (Bastar Tourist Places) की ख्याति देशभर में है। सरकार अब इन जगहों पर पर्यटन स्थलों का विकास कर रही है। शहर में पर्यटकों के अनुरूप सुविधाएं और दर्शनीय स्थलों का विकास किया जा रहा है।

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बता दें कि यहां पर्यटक चित्रकोट, तीरथगढ़ तो जाते थे। अब वे बीजापुर, दंतेवाड़ा, कोंडागांव जैसे नक्सल प्रभावित जिलों के पर्यटन स्थलों तक भी पहुंच पाएंगे। अभी बस्तर आने वाले पर्यटक जगदलपुर के आसपास के दर्शनीय स्थलों (Bastar Tourist Places) को देखने के अलावा दंतेवाड़ा में माई दंतेश्वरी के मंदिर, बैलाडीला के पहाड़ और बारसूर के पुरातात्विक वैभव का ही दर्शन कर पाते हैं।

अब कोंडगांव जिले के केशकाल की वादियों से लेकर बीजापुर के महाराष्ट्र से सटे इलाकों के जंगलों में मौजूद अति विशाल प्राकृतिक जलप्रपातों, सुकमा के भगवान राम से जुड़े धार्मिक स्थलों तक हर जगह पहुंच पाएंगे। दंतेवाड़ा में इंद्रावती नदी के उस पार अबूझमाड़ के जंगल में हांदावाड़ा जलप्रपात मौजूद है।

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यहां तक पहुंचने के लिए नदी पार कर करीब 25 किमी दुर्गम रास्तों पर पैदल चलना पड़ता है। इंद्रावती पर छिंदनार में पुल बन चुका है। हांदावाड़ा तक सड़क जल्द ही बन जाएगी। बता दें कि हांदावाड़ा में नक्सल प्रभावित इलाका है। सड़क बनने के साथ फोर्स वहां पहुंच जाएगी तो यह इलाका सुरक्षित हो जाएगा और जलप्रपात आम पर्यटकों के लिए खुल जाएगा।

बीजापुर जिले के उसूर ब्लॉक में स्थित तीन सौ फीट ऊंचा नीलमसरई जलप्रपात को बहुत कम लोगों ने देखा है। नक्सलियों से लोहा लेते हुए सुरक्षाबलों ने उसूर तक सड़क बनवा दी है। नीलमसरई के विकास के लिए प्रशासन ने कैंपिंग टेंट, गाइड, ट्रेकिंग उपकरण आदि इंतजाम किए हैं।

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स्थानीय युवाओं को जोड़कर पर्यटन विकास समितियों का गठन किया जा रहा है। उसूर के पास गलगम में फोर्स का कैंप खुलने से यह इलाका सुरक्षित हो गया है। बीजापुर में नीलमसरई के अलावा नंबीधारा, मट्टीकरका, लंकापल्ली भी दर्शनीय जलप्रपात हैं। दंतेवाड़ा के फूलपाड़ जलप्रपात तक सड़क बन रही है।

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