Bastar: लाल आतंक के गढ़ में बह रही विकास की बयार, बदल रही लोगों की जिंदगी

लाल आतंक (Red Terror) का गढ़ कहे जाने वाले बस्तर (Bastar) के नक्सल प्रभावित इलाकों (Naxal Area) में एक ऐसा दौर था जब यहां तक पहुंच पाना ही मुश्किल था। न सड़कें थीं, न कोई वाहन और ऊपर से नक्सलियों (Naxalites) का खौफ।

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बस्तर (Bastar) में नक्सलवाद (Naxalism) पर अंकुश लगाने और विकास को गति के लिए सुरक्षाबलों की ओर से नक्सल प्रभावित इलाकों में कैंप स्थापित किए जाने की जो रणनीति अपनाई गई है, उसने अब नक्सली (Naxalites) सिमट कर रह गए हैं।

लाल आतंक (Red Terror) का गढ़ कहे जाने वाले बस्तर (Bastar) के नक्सल प्रभावित इलाकों (Naxal Area) में एक ऐसा दौर था जब यहां तक पहुंच पाना ही मुश्किल था। न सड़कें थीं, न कोई वाहन और ऊपर से नक्सलियों (Naxalites) का खौफ। लोग शिक्षा, स्वास्थ्य और बिजली जैसी मूलभूत सुविधाओं से वंचित थे।

नक्सली (Naxali) भी इन इलाकों का विकास नहीं होने देते थे। जब भी कोई विकास कार्य शुरू किया जाता, नक्सली खून-खराबा कर उसमें अडंगा डाल देते। पर अब वक्त बदल रहा है। इन इलाकों के हालात बदल रहे हैं। कुछ साल पहले तक यह सब बुनियादी सुविधाएं यहां के लोगों के लिए सपना था।

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लेकिन इस सपने को हकीकत में बदलने का प्रयास किया है प्रशासन ने। अब वहां सड़क है, बिजली है, शिक्षा और स्वास्थ्य की सुविधाएं हैं। विकास कार्यों को गति देने के लिए बस्तर के नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में पिछले दो सालों में 28 सुरक्षा बलों के कैंप स्थापित किए गए हैं। इन कैंपों की स्थापना से नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में विकास कार्यों में तेजी आई है।

दिसंबर, 2018 से अब तक नक्सल प्रभावित संवेदनशील क्षेत्रों (Naxal Area)  में 21 सड़कें बनाई गई हैं। बीजापुर-आवापल्ली-जगरगुंडा रोड, नारायणपुर-पल्ली-बारसूर रोड, अंतागढ़- बेड़मा रोड, चिन्तानपल्ली-नयापारा रोड, चिंतल नार-मड़ाई गुड़ा रोड, कोंटा-गोल्ला पल्ली रोड आदि पर लगभग 700 किमी सड़कों का जाल बिछा कर दूरस्थ इलाकों को जोड़ा जा रहा है।

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कोरोना काल के लॉकडाउन के दौरान बस्तर के धुर नक्सल इलाकों (Naxal Area) में 450 किमी सड़कों का काम पूरा किया गया है। साथ ही 132 पुल-पुलिया का भी निर्माण कराया गया है। ये सड़कें ऐसे इलाकों में बनी हैं जो नक्सलियों के कब्जे में रहे थे। छोटे पुलों के साथ ही इंद्रावती नदी पर निर्माणाधीन चार बड़े पुलों में से एक छिंदनार के पुल का काम लगभग पूरा हो चुका है।

यह पुल जून के आखिरी सप्ताह तक आम जनता के लिए खुल जाएगा। इसके बनने से दंतेवाड़ा की ओर से अबूझमाड़ के जंगलों का रास्ता खुल जाएगा। नदी के उस पार सड़क का काम चल रहा है। इस सड़क के बनने से करका, हांदावाड़ा समेत एक दर्जन गांव जुड़ जाएंगे।

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आईजी सुंदरराज के अनुसार, नए कैंपों की स्थापना से आदिवासियों के जीवन में बदलाव आया है। इंद्रावती नदी पर चार पुल बनाए जा रहे हैं। आजादी के बाद से अब तक इंद्रावती नदी पर 200 किमी में सिर्फ 3 पुल थे, जो कि अगले साल तक सात हो जाएंगे। इसी तरह पिछले 30 सालों से बंद पड़ी पल्ली-बारसूर रोड, बासागुड़ा-जगरगुंडा रोड, उसूर-पामेड़ रोड सरकार ने सुरक्षा बलों के कैंप लगा कर खुलवाए हैं।

बस्तर (Bastar) में नक्सलवाद (Naxalism) पर अंकुश लगाने और विकास को गति के लिए सुरक्षाबलों द्वारा प्रभावित क्षेत्रों में कैंप स्थापित किए जाने की जो रणनीति अपनाई गई है, उसने अब नक्सली सिमट कर रह गए हैं।

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इनमें से ज्यादातर कैंप ऐसे दुर्गम इलाकों में स्थापित किए गए हैं, जहां नक्सलियों के खौफ के कारण विकास नहीं पहुंच पा रहा था। अब इन क्षेत्रों में भी सड़कों का निर्माण तेजी से हो रहा है, यातायात सुगम हो रहा है, शासन की योजनाएं प्रभावी तरीके से ग्रामीणों तक पहुंच रही हैं, अंदरुनी इलाकों का परिदृश्य भी अब बदल रहा है।

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