क्या चीन के दबाव में आकर गिलगित-बाल्टिस्तान में यह कदम उठाने पर मजबूर है पाकिस्तानी सेना? जानें पूरा मामला

पाकिस्तान के कश्मीर और गिलगित-बाल्टिस्तान (Gilgit-Baltistan) मामलों के केंद्रीय मंत्री अली आमिन गंदापुर ने कश्मीर के विवादित इलाके गिलगित-बाल्टिस्तान को पाकिस्तान का पांचवां प्रांत बनाने का ऐलान किया है।

Gilgit-Baltistan

कुछ समय पहले तक चीन गिलगित-बाल्टिस्तान (Gilgit-Baltistan) में सिर्फ खदानों और यातायात के ढांचे का विकास में निवेश तक सीमित था। लेकिन अब चीन के कदम तेजी से आगे बढ़ रहे हैं।

पाकिस्तान के कश्मीर और गिलगित-बाल्टिस्तान (Gilgit-Baltistan) मामलों के केंद्रीय मंत्री अली आमिन गंदापुर ने कश्मीर के विवादित इलाके गिलगित-बाल्टिस्तान को पाकिस्तान का पांचवां प्रांत बनाने का ऐलान किया है। केंद्रीय मंत्री अली आमिन ने कहा है कि इमरान खान जल्द ही कश्मीर इलाके का दौरा करेंगे और इस संबंध में औपचारिक ऐलान करेंगे।

पाकिस्तान सरकार के इस कदम को लेकर हलचल तेज हो गई है और इस कदम के तमाम मायने निकाले जा रहे हैं। गिलगित-बाल्टिस्तान (Gilgit-Baltistan) के पत्रकारों के एक प्रतिनिधि दल से बातचीत में केंद्रीय मंत्री ने कहा, सभी संबंधित पक्षों से बातचीत करने के बाद केंद्र सरकार ने गिलगित-बाल्टिस्तान के लोगों को संवैधानिक अधिकार देने का फैसला किया है। हमारी सरकार ने यहां के लोगों से जो वादा किया है, वो उसे पूरा कर रही है।

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भले ही पाकिस्तान की सरकार इस प्रक्रिया को पूरा करते नजर आ रही है लेकिन पर्दे के पीछे पाकिस्तानी सेना इस बदलाव के लिए दबाव डाल रही है और ये बात तब खुलकर और जाहिर हो गई जब पाकिस्तानी मीडिया में रिपोर्ट छपी कि पाकिस्तानी सेना प्रमुख जनरल कमर जावेद बाजवा ने विपक्ष के अन्य नेताओं के साथ डिनर पर मुलाकात की।

इस मुलाकात का मकसद गिलगित-बाल्टिस्तान (Gilgit-Baltistan) में आगामी चुनाव और बदलाव की प्रक्रिया को लेकर चर्चा करना था। हालांकि, कुछ पाकिस्तानी नेता ही इस मुलाकात को लेकर विरोध कर रहे हैं। विपक्षी दल के कुछ नेता इसे देश की राजनीति में सैन्य हस्तक्षेप बता रहे हैं। विपक्षी दल की नेता और पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ की बेटी मरयम नवाज ने सेना और राजनेताओं के बीच हुई इस मुलाकात की वैधता को लेकर सवाल खड़े किए हैं।

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उन्होंने कहा, “मुझे डिनर के बारे में नहीं पता है लेकिन मुझे ये जरूर पता है कि ये सिर्फ डिनर नहीं था बल्कि बैठक थी। जहां तक मैं समझ रही हूं ये बैठक गिलगित-बाल्टिस्तान पर चर्चा के लिए बुलाई गई थी जोकि पूरी तरह से एक राजनीतिक मुद्दा है। ऐसे फैसले तो संसद में लिए जाने चाहिए, ना कि सेना के हेडक्वॉर्टर में।”

मरियम ने कहा, “राजनीतिक दलों के नेताओं को ना तो इस तरह की बैठकों के लिए बुलाया जाना चाहिए और ना ही उन्हें जाना चाहिए। जो भी उन मुद्दों पर चर्चा करना चाहता है, उसे संसद आना चाहिए।” मरियम की आलोचना के बाद पाकिस्तान में राजनीतिक तूफान खड़ा हो गया है।

बता दें कि गिलगित-बाल्टिस्तान (Gilgit-Baltistan) को पाकिस्तान में लंबे समय से नजरअंदाज किया जाता रहा है। गिलगित-बाल्टिस्तान के दर्जे को लेकर उहापोह की वजह से स्थानीय अपने मूल अधिकारों से भी वंचित रहे हैं। जब 1947 में कश्मीर विवाद शुरू हुआ तो गिलगित-बाल्टिस्तान को कश्मीर का ही हिस्सा माना जाता था।

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लेकिन साल 1970 में पाकिस्तान की सरकार ने इसे कश्मीर इलाके से अलग करके एक अलग प्रशासनिक इकाई बनाने का फैसला किया। इस प्रशासनिक इकाई पर पाकिस्तान की सरकार का सीधा नियंत्रण था। लेकिन उसी वक्त से क्षेत्र के लोग हाशिए पर आना शुरू हो गए। पाकिस्तान की सरकार हमेशा से गिलगित-बाल्टिस्तान (Gilgit-Baltistan) पर अपना नियंत्रण मजबूत करना चाहती थी।

हालांकि, पाकिस्तान की पहले सेना इस बात से राजी नहीं थी। अब बात आती है कि चीन का इससे क्या लेना देना है? बता दें कि चीन ने इस इलाके में भारी-भरकम निवेश किया है। कुछ समय पहले तक चीन गिलगित-बाल्टिस्तान (Gilgit-Baltistan) में सिर्फ खदानों और यातायात के ढांचे का विकास में निवेश तक सीमित था। लेकिन अब चीन के कदम तेजी से आगे बढ़ रहे हैं।

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चाइना-पाकिस्तान इकनॉमिक कॉरिडोर (सीपीईसी) जिसे कई विश्लेषक पाकिस्तान के लिए कर्ज का जाल मान रहे हैं, उसका अधिकतर हिस्सा गिलगित-बाल्टिस्तान (Gilgit-Baltistan) से ही होकर गुजरता है। इसीलिए कई लोगों का मानना है कि चीन अपने निवेश की सुरक्षा के लिए क्षेत्र को स्थिर करना चाहता है और इसके लिए वह पाकिस्तान के साथ काम कर रहा है।

पाकिस्तानी स्कॉलर डॉ. आयशा सिद्दीकी कहती हैं, सीपीईसी का पश्चिमी हिस्सा गिलगित-बाल्टिस्तान से होकर गुजरता है और चीन पाकिस्तान को सलाह दे रहा है कि वह यहां मजबूती से कदम आगे बढ़ाएं और कश्मीर संघर्ष की यथास्थिति को स्वीकार कर ले। चीन सीपीईसी के तहत आने वाले सभी इलाकों को सुरक्षित करना चाहता है ताकि उसके किसी भी प्रोजेक्ट में कोई बाधा ना आए।

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डॉ. सिद्दीकी का मानना है कि पाकिस्तानी सेना अब कश्मीर मुद्दे का सैन्य तरीके से समाधान नहीं करने में सक्षम नहीं है जिसमें गिलगित-बाल्टिस्तान भी शामिल है। वह कहती हैं, अगर पाकिस्तान गिलगित-बाल्टिस्तान (Gilgit-Baltistan) को प्रांत बना लेता है तो फिर वो भारत के कश्मीर को अपने नियंत्रण में लेने और उसका दर्जा बदलने को लेकर विरोध करने की स्थिति में भी नहीं रह जाएगा।

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यही वजह रही है कि पाकिस्तान की सेना गिलगित-बाल्टिस्तान (Gilgit-Baltistan) को पूरी तरह से पाकिस्तान के सरकार में नियंत्रण में लाने का विरोध करती रही। हालांकि, अब सीपीईसी की बागडोर चीन ने पाकिस्तान की सेना को ही सौंपी है और कश्मीर पर भारत के कदम के बाद उसके पास बहुत विकल्प नहीं बचे हैं।

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