सामने आई चीन की एक और करतूत, बेरहमी से की थी 4 भारतीय सैनिकों की हत्या, जानें पूरा मामला

बीते कुछ महीनों से चीन (China) LAC पर चालबाजी दिखा रहा है। 15 जून को गलवान घाटी में हुई हिंसक झड़प की खबर सबको है। उसके बाद भी कई बार LAC पर फायरिंग की घटनाएं हुईं।

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china फाइल फोटो

बीते कुछ महीनों से चीन (China) LAC पर चालबाजी दिखा रहा है। 15 जून को गलवान घाटी में हुई हिंसक झड़प की खबर सबको है। उसके बाद भी कई बार LAC पर फायरिंग की घटनाएं हुईं। लेकिन अपको बता दें कि लद्दाख की गलवान घाटी में भारत (India) और चीन (China) के सैनिकों के बीच हुई हिंसक झड़प से 45 साल पहले अरुणाचल के तुलुंग ला में आखिरी बार दोनों देशों की सेनाओं के बीच गोलीबारी की घटना हुई थी।

उस समय चीन (China) का अमानवीय चेहरा सामने आया था। यह सितंबर-अक्टूबर साल 1975 की बात है। 4 भारतीय सैनिकों को चीनी सेना ने पकड़ लिया था और उन्हें यातनाएं देते कर मार डाला था। 45 साल पहले हुई इस घटना को याद कर 84 साल के रिटायर्ड कर्नल बीआर शाह आज भी नहीं भूल पाए हैं।

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हाल ही में गलवान घाटी में भारत-चीन के बीच झड़प हुई झड़प के बाद उनके जेहन में 45 साल पहले हुई उस घटना की याद भी जाता हो गई। रिटायर्ड कर्नल शाह बताते हैं कि तब वह लेफ्टिनेंट कर्नल थे और 3/1 गोरखा राइफ्सल में कमांडिंग ऑफिसर के तौर पर सेला टॉप पर तैनात थे। द हिंदू से अपनी बातचीत में शाह ने बताया कि भारत-चीन युद्ध की ठीक सालगिरह वाले दिन 20 अक्टूबर को असम राइफल्स के 4 जवान लापता हो गए थे। वे लोग उनके शव को लेने के लिए गए थे।

उस दिन उन्होंने वहां जो कुछ भी देखा वह बेहद ही डरावना था। शाह ने बताया कि 20 अक्टूबर को जब वह सेला टॉप पर अपने बंकर में थे, तभी उन्हें तेजपुर से एक मेसेज मिला था। दो गश्ती दल यह कहते हुए वापस आए थे कि चीनी सेना वहां घात लगाकर बैठी हैं और वे किसी तरह जान बचाकर आए हैं।

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उन्होंने बताया कि स्थिति गंभीर थी और मैं खुद अपने आदमियों के साथ यह पता लगाने के लिए निकल गया कि वहां क्या हुआ था? उन्होंने कहा कि उन्हें चीनी सैनिकों से संपर्क करने के लिए आगे नहीं जाने दिया गया। शाह ने बताया कि तुलुंग ला एक बंजर रिज लाइन था, जो सेला से तीन दिन की दूरी पर था।

23 अक्टूबर को जब शाह वहां पहुंचे तो असम राइफल्स के जवान काफी डरे हुए थे और उनका मनोबल भी काफी गिर गया था। शाह ने बताया कि 7 दिनों तक हम क्लियरेंस का इंतजार करते रहे। आखिरकार 28 अक्टूबर की रात को तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी का मेसेज आया कि हम आगे बढ़ सकते हैं। 28 अक्टूबर को सुबह साढ़े 11 बजे 19 सैनिकों के साथ हमे चीनी सैनिकों से मिलना था।

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शाह ने बताया कि इसके बाद एक समस्या और सामने आई। हमें कहा गया था कि हम तिरंगा नहीं ले जा सकते हैं लेकिन एक नीला झंडा अपने पास रख सकते हैं। इसके अलावा उन्हें पूरी तरह से निहत्था वहां जाने को कहा गया था। 20 अक्टूबर की घटना के बाद इस आदेश को मानने में सैनिकों को थोड़ी परेशानी हुई। हमारे पास वक्त बहुत कम था और हम इतने में नीला झंडा का इंतजाम कहां से करते?

शाह ने बताया कि उनके पास एक सफेद चादर थी। उन्होंने उसे लिया और सभी सैनिकों से कहा कि वे अपने पेन की स्याही निकालें। इस तरह से उन्होंने सफेद चादर को नीले रंग में रंगकर झंडा तैयार किया। तुलुंग ला 17,200 फीट की ऊंचाई पर था। लंगर बेस से यह चार घंटे की चढ़ाई थी। हम लोगों ने 28 की सुबह ही चढ़ाई शुरू कर दी। वहां चीनी हमारा इंतजार कर रहे थे।

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शाह ने कहा कि वहां पहुंचने के बाद उन्होंने जो पहली चीज देखी वह यह थी कि उन्होंने विस्फोटकों की मदद से पूरे रिज लाइन को चपटा कर दिया था और अपनी बंदूकों के लिए बंकर बना रखे थे। शाह ने कहा कि मैं हैरान था कि चीनियों को यह पता करने में 7 दिन क्यों लग गए कि क्या हुआ था। जब हमने सैनिकों के शव देखे तो सब मामला समझ आ गया।

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शाह ने बताया कि शहीद सैनिकों के शरीर को सिगरेट से जगह-जगह दागा गया था। उन्हें कई जगहों पर संगीनों से मारा गया था। यह चीन (China) की ओर से केवल संकेत था कि अगर गोलीबारी के दौरान कोई भी सैनिक जिंदा पकड़ा गया तो वे उसके साथ क्या कर सकते हैं। उन्होंने सैनिकों से कुछ उगलवाने के लिए हर संभव कोशिश की थी लेकिन वे क्या इन्फॉर्मेशन दे सकते थे। आखिर, वे बस सैनिक थे।

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