जम्मू कश्मीर: घाटी में पाकिस्तान की नई साजिश, पढ़े-लिखे युवाओं को इस तरह कर रहा बर्बाद

सीमा पार से आतंकी घुसपैठ में सफल नहीं हो पा रहे हैं इसलिए स्थानीय पढ़े-लिखे बेरोजगार कश्मीरी नौजवानों को गुमराह करके आतंकवाद (Terrorism) के नरक में धकेला जा रहा है।

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सांकेतिक तस्वीर।

जम्मू-कश्मीर में सुरक्षाबलों को आतंकवाद (Terrorism) के खिलाफ लगातार कामयाबी मिल रही है, लेकिन उनके सामने उस कड़ी को तोड़ पाना एक बड़ी चुनौती बना हुआ है, जो घाटी के पढ़े-लिखे नौजवानों को आतंकवाद की अंधी गली में धकेलने में लगी है। सुरक्षाबलों का मानना है कि घाटी में जिस प्रकार पढ़े-लिखे नौजवान आतंकवाद की ओर बढ़ रहे हैं, वह कश्मीर के लिए बेहद घातक है। कम उम्र के ये नवयुवक जब किसी मुठभेड़ में मारे जाते हैं तो तकलीफ भी होती है।

जुलाई 2016 में जब हिज्बुल मुजाहिदीन के पोस्टर बॉय कहे जाने वाले बुरहान वानी का सोशल मीडिया पर 8-10 हथियारबंद नौजवान आतंकियों के साथ फोटो वायरल हुआ था, वो घाटी में सुरक्षाबलों के लिए एक बड़ी चिंता का विषय बन गया था। हालांकि बुरहान वानी उसी दौरान दक्षिण कश्मीर के कोकरनाग में मुठभेड़ में मारा गया।

आतंकवाद (Terrorism) के राह पर जा रहे कश्मीरी नौजवानों के पीछे की कहानी

यह पाकिस्तानी की खुफिया एजेंसी आईएसआई (ISI) की सोची समझी साजिश है कि कश्मीर के नौजवानों को आतंकवाद (Terrorism) के लिए गुमराह करने के लिए सोशल मीडिया पर उनको जमकर महिमा मंडित किया जाए। यह अलग बात है कि अब यह माहौल कतई दिखाई नहीं देता, लेकिन पाकिस्तान की कोशिश लगातार जारी है। हालांकि सीमा पार से आतंकी घुसपैठ में सफल नहीं हो पा रहे हैं इसलिए स्थानीय पढ़े-लिखे बेरोजगार कश्मीरी नौजवानों को गुमराह करके आतंकवाद (Terrorism) के नरक में धकेला जा रहा है।

जब घाटी में आतंकवाद (Terrorism) ने पांव पसारने शुरू किए तब स्थानीय अनपढ़ लोग ही आतंकवाद (Terrorism) की ओर बढ़ते थे, लेकिन अब माजरा पूरी तरह से बदल चुका है। एमबीए, इंजीनियर, यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर, पीएचडी होल्डर आदि डिग्री-धारक नौजवान अब अपने सुंदर भविष्य को बनाने की बजाए आतंकी बन रहे हैं। पढ़े-लिखे नौजवान पहले घर से लापता हो जाते हैं और फिर बाद में सुरक्षा एजेंसियों को पता चलता है कि वह आतंकी बन गया है। हालांकि उनमें से अधिकतर नौजवान सेना अथवा पुलिस की वर्दी पहने और बंदूक उठाए सोशल मीडिया पर अपने फोटो को वायरल करते हैं।

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सूत्रों के मुताबिक, बुरहान वानी की मौत के बाद 2017 में घाटी से 126, 2018 में 130 और 2019 में भी काफी बड़ी तादाद में नौजवान अपने-अपने घरों से लापता हुए और बाद में हिज्बुल मुजाहिदीन, लश्कर-ए-तैयबा, जैश-ए-मोहम्मद व अल बदर जैसी आतंकी संगठनों में शामिल हो गए।

कश्मीरी नौजवानों के आतंकी बनने के पीछे की कहानियां कुछ भी हों, हालांकि आतंकी संगठनों से जुड़े ओवर ग्राउंड वर्कर ऐसे पढ़े-लिखे नवयुवकों को गुमराह करने का एक बड़ा साधन बनते हैं। आरोप ये भी हैं कि पुलिस की प्रताड़ना अथवा अपने भविष्य की चिंता को लेकर भी पढ़े-लिखे नौजवान गुमराह होकर बंदूक उठा लेते हैं।

इन सबका एक दुखद पक्ष ये भी है कि जो नौजवान अपने घरों से लापता हो जाते हैं, उनके परिवार वाले पुलिस व सेना की मदद से वीडियो वायरल करके उनसे घर वापसी की अपील करते हैं। नतीजन कुछ नौजवान तो अपने माता-पिता अथवा परिजनों की अपील पर लौट आते हैं, लेकिन अधिकांश आतंकी बने रहने की जिद में मुठभेड़ों में मारे जा रहे हैं।

जुलाई महीने में भी कई नौजवान दक्षिण-कश्मीर और उत्तरी कश्मीर से लापता हो चुके हैं। उनके माता-पिता सोशल मीडिया पर लगातार घर वापसी की अपील कर रहे हैं। इनमें एक अपवाद ये भी है कि तहरीक-ए-हुर्रियत कांफ्रेंस के प्रमुख मोहम्मद अशरफ सेहरई का बेटा जुनेद अहमद सहरई, जो कि काफी पढ़ा-लिखा था, घर से लापता हो गया, लेकिन उसके पिता मोहम्मद अशरफ सेहरई ने उसके आतंकवाद (Terrorism) के रास्ते को सही ठहराया था। अलबत्ता इस प्रकार घाटी में पाकिस्तान की ओर से घाटी के पढ़े-लिखे युवाओं को मनोवैज्ञानिक ऑपरेशन के जरिए गुमराह करके आतंकी बनाने की साजिशें लगातार जारी रखे हुए है।

इन सबसे आखिरकार नुकसान उन परिवारों का, जिनके बच्चे आतंकी बनकर मारे जाते है, जिसे लेकर सुरक्षाबल चिंतित दिखाई देते हैं। सेना की 15वीं कोर के प्रमुख लेफ्टिनेंट जनरल बीएस राजू ने भी इस पूरे मुद्दे पर चिंता जताते हुए कहा थी कि घाटी में पढ़े-लिखे नौजवान जो आतंकी बन रहे हैं, उन पर अभी तक कोई रोक न लग पाना एक बड़ी चिंता का सबब बना हुआ है।

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