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जिस वक्त अमेरिका में 9/11 के हमले (9/11 Attacks) हुए थे, उस वक्त राष्ट्रपति जॉर्ज बुश फ्लोरिडा में थे, लेकिन शाम 7 बजे तक व्हाइट हाउस को सुरक्षित कर दिया गया।
आज से 20 साल पहले अमेरिका, आतंकी हमलों से दहल उठा था। आज ही के दिन साल 2001 में अमेरिका के वर्ल्ड ट्रेंड सेंटर (World Trade Centre) पर आतंकी हमला हुआ था। 11 सितंबर, 2001 को हुए दुनिया के सबसे बड़े आतंकी हमला (9/11 Attacks) हुआ था। इसमें 2,996 लोगों की जान चली गई थी। तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति जॉर्ज बुश ने इस घटना को अमेरिकी इतिहास का सबसे काला दिन बताया था।
11 सितंबर, 2001 की सुबह रोज की तरह दुनिया की सबसे ऊंची इमारतों में एक वर्ल्ड ट्रेंड सेंटर में करीब 18 हजार कर्मचारी रोज का काम निपटाने में लगे थे। लेकिन सुबह 8:46 मिनट पर आतंकियों ने 2 विमान वर्ल्ड ट्रेड सेंटर के ट्विन टावर्स में टकरा दिया। दरअसल, उस दिन अल कायदा को 19 आतंकियों ने 4 पैसेंजर विमान हाईजैक किए थे। इनमें से दो विमानों को वर्ल्ड ट्रेड सेंटर में घुसा दिया था।
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इस हमले में इन विमानों पर सवार लोगों के साथ-साथ बिल्डिंग के अंदर काम करने वाले हजारों लोग मारे गए। इस खौफनाक आतंकी हमले में 2996 लोगों की जान चली गई थीं, जिनमें 400 पुलिस अफसर और फायरफाइटर्स भी शामिल थे। मरने वालों में 57 देशों के लोग शामिल थे। पूरी इमारत करीब 2 घंटे में मलबे में तब्दील हो गई थी। मारे गए लोगों में केवल 291 शव ही ऐसे थे जिनकी ठीक से पहचान की जा सके।
यह हमला कितना बड़ा था इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि इस हमले में लगी आग को बुझाने में लगभग 100 दिन का समय लगा था। इस हमले में ट्विन टावर में 70 से ज्यादा देशों के नागरिक मारे गए थे। अपहरणकर्ताओं ने तीसरे विमान को वाशिंगटन डीसी के बाहर आर्लिंगटन, वर्जीनिया में पेंटागन से टकरा दिया था।
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अमेरिकी अधिकारियों के मुताबिक विमान पेंटागन के पहले और दूसरी मंजिल के बीच गिरा, जिसमें 184 लोग मारे गए थे। हाईजैक हुआ चौथा विमान एक खाली जगह पर क्रैश हो गया था। इस हमले के बाद अमेरिका ने आतंकवाद को उखाड़ फेंकने के लिए कमर कस ली।
जिस वक्त अमेरिका में 9/11 के हमले (9/11 Attacks) हुए थे, उस वक्त राष्ट्रपति जॉर्ज बुश फ्लोरिडा में थे, लेकिन शाम 7 बजे तक व्हाइट हाउस को सुरक्षित कर दिया गया और रात 9 बजे उन्होंने राष्ट्रपति भवन के ओवल ऑफिस से राष्ट्र के नाम संबोधन दिया।
इसके बाद से अमेरिका ने लेबनान से लेकर इराक तक से आतंकी हमलों के बारे में जानकारी इकट्ठी की। इस हमले का कनेक्शन आतंकी संगठन अल-कायदा से निकला। अमेरिका को पता चला कि हमलों की साजिश अफगानिस्तान में रची गई और इसका मास्टर माइंड अल-कायदा का सरगना ओसामा बिन-लादेन था। ओसामा बिन-लादेन को अफगानिस्तान की तत्कालीन तालिबान सरकार का समर्थन मिला हुआ था। इसके बाद अमेरिका की ओर से की गई कार्रवाई का पूरा घटनाक्रम कुछ इस तरह है-
7 अक्टूबर, 2001
इसके बाद अमेरिका ने तालिबान को अल-कायदा के संरक्षण का जिम्मेदार बताया और 7 अक्टूबर, 2001 को ‘ऑपरेशन एंड्यूरिंग फ्रीडम’ (Operation Enduring Freedom) शुरू कर अफगानिस्तान पर धावा बोल दिया। अमेरिका का मकसद अल-कायदा को जड़ से खत्म करना था। इस दौरान उसका टकराव तालिबान से भी हुआ। इस ऑपरेशन में ब्रिटेन के साथ नाटो से जुड़े देशों ने भी अमेरिका की मदद की।
27 नवंबर, 2002
अमेरिकी सरकार ने राष्ट्रीय आयोग का गठन किया। इस आयोग का मकसद 11 सितंबर, 2001 को हुए घटनाक्रमों की जांच करना और इसे अंजाम देने वाले लोगों को पकड़ना था। आयोग की जांच 27 नवंबर 2002 से शुरू हुई
22 जुलाई, 2004
जांच शुरू होने के दो साल बाद 22 जुलाई, 2004 को हमले के मास्टरमाइंड खालिद शेख मोहम्मद की गिरफ्तारी हुई। आयोग की रिपोर्ट में खालिद शेख मोहम्मद को 9/11 हमलों का मास्टरमाइंड करार दिया गया। अमेरिकी जांच एजेंसियों ने उसे पकड़ने के बाद अपनी सबसे खतरनाक जेल ग्वानतनामो बे डिटेंशन कैंप भेज दिया गया।
2 मई, 2011
2 मई, 2011 को 9/11 हमलों के मुख्य साजिशकर्ता और अल-कायदा के सरगना ओसामा बिन-लादेन की लोकेशन पता कर अमेरिका ने पाकिस्तान के ऐबटाबाद में अपनी नेवी सील्स टीम को खुफिया मिशन पर भेजा। इस टीम ने ओसामा बिन-लादेन को मार गिराया और उसका शव किसी अज्ञात जगह पर दफना दिया। तब अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति बराक ओबामा ने इसे दुनियाभर के आतंकी संगठनों के लिए चेतावनी करार दिया था।
28 दिसंबर, 2014
इसके बाद 28 दिसंबर, 2014 को नाटो ने अफगानिस्तान में अपना मिशन आधिकारिक तौर पर खत्म कर दिया और देश की सुरक्षा की जिम्मेदारी अफगान सरकार को हस्तांतरित कर दी। इसके बाद नाटो ने अफगान सरकार को स्थापित करने और तालिबान के खिलाफ उसकी मदद के लिए ऑपरेशन रिसॉल्यूट सपोर्ट लॉन्च किया। इस मिशन का मकसद तालिबानी आतंकियों को खत्म करना और अफगानिस्तान को सुरक्षित करना था।
29 फरवरी, 2020
29 फरवरी, 2020 को अमेरिकी सेना का अफगानिस्तान मिशन खत्म करने के लिए तालिबान से समझौता हुआ। अमेरिका और तालिबान ने कतर के दोहा में शांति समझौते पर हस्ताक्षर किए। दोहा में समझौते के तहत अमेरिकी सेनाओं को 14 महीने के अंदर अफगानिस्तान से लौटना था। बदले में तालिबान ने वादा किया कि वह अफगानिस्तान की जमीन का इस्तेमाल आतंकी संगठनों को पनपने में नहीं होने देगा। इसके बाद अगले 18 महीनों में अमेरिका ने धीरे-धीरे अपने सैनिक अफगानिस्तान से निकाल लिए।
15 अगस्त, 2021
अमेरिकी सेना के जाने के बाद तालिबान ने अफगानिस्तान के कई प्रांतों पर कब्जा कर लिया और 15 अगस्त, 2021 को काबुल पर धावा बोलकर जीत का एलान कर दिया। अफगान नागरिक देश छोड़कर भागने लगे। इस बीच आतंकी संगठन आईएस के हमले के इनपुट के बाद अमेरिका को एक बार फिर छह हजार सैनिकों को काबुल एयरपोर्ट की सुरक्षा के लिए भेजना पड़ा।
30 अगस्त, 2021
30 अगस्त, 2021 को अमेरिका का आखिरी सैन्य विमान अफगानिस्तान से निकल गया। 20 सालों तक यहां चले सैन्य ऑपरेशन का मकसद अल-कायदा को खत्म करना था। पर अमेरिकी सेना के अफगानिस्तान से निकलने के बाद इस संगठन के फिर सिर उठाने की खबरें सामने आने लगी हैं। वहीं, अल-कायदा ने सरकार बनाने के बाद तालिबान को बधाई भी दी थी।
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