War of 1965: शकरपारे और बिस्कुट खाकर पाकिस्तान को हराया, दुश्मन को नेस्तनाबूद कर ही लिया दम

पाकिस्तान और भारत के बीच 1965 में भीषण युद्ध (War of 1965) लड़ गया था। चीन से 1962 में हार के बाद पाकिस्तान भारत को कमजोर समझ रहा था। पाकिस्तान ने सोचा था कि चीन से मिली करारी हार के बाद भारत कमजोर है।

India Pakistan War 1965

File Photo

War of 1965: 27 अगस्त के दिन हाजीपीर पर अपना कब्जा जमाने के लिए हमारे जवान घाटी पर पहुंचे थे। जब वे पहुंचे ही थे कि दुश्मनों ने फायरिंग खोल दी।

पाकिस्तान और भारत के बीच 1965 में भीषण युद्ध (War of 1965) लड़ गया था। चीन से 1962 में हार के बाद पाकिस्तान भारत को कमजोर समझ रहा था। पाकिस्तान ने सोचा था कि चीन से मिली हार के बाद भारत कमजोर है। हमले की योजना बनाई गई और कश्मीर हड़पने की ख्वाहिश लिए पाकिस्तानी सेना भारतीय सेना (Indian Army) से मुकाबले के लिए जंग के मैदान में थी।

पाकिस्तान पूरी प्लानिंग के साथ आया था लेकिन भारतीय सेना के पास भी उन्हें बुरी तरह खदेड़ना का प्लान तैयार था। हाजीपीर की पोस्ट दोनों देशों की सेनाओं के लिए बहुत जरूरी थी। हाजी पीर पोस्ट का महत्व यही था कि अगर इस दर्रे पर किसी का कब्जा हो तो उसकी श्रीनगर और पुंछ की दूरी मात्र 50-55 किलोमीर रह जाती है।

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ऐसा न हो तो पुंछ से श्रीनगर जाने के लिए पहले जम्मू जाना पड़ता है फिर श्रीनगर। ये रास्ता करीब 600 किलोमीटर का हो जाता है। पहाड़ों पर लड़ाई हमेशा चोटियों पर होती है। पाकिस्तान ऊंचाई पर था लिहाजा उसके पास ज्यादा मौके और फायदे थे।

बावजूद इसके सेना ने तय प्लान के मुताबिक हर कदम फूंक-फूंक कर रखा और क्षेत्र पर कब्जा पाया। 27 अगस्त के दिन हाजीपीर पर अपना कब्जा जमाने के लिए हमारे जवान घाटी पर पहुंचे थे। वे पहुंचे ही थे कि दुश्मनों ने फायरिंग खोल दी। जिसके जवाब में सेना ने भी हमला बोल दिया था।

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दो दिन चली फायरिंग के बाद हाजीपीर पास की शुरुआत तक पहुंचने पर सेना ने सीधे रास्ते की बजाय खड़ी चढ़ाई के रास्ते जाना तय किया। सुबह साढ़े चार बजे टुकड़ी उरी-पुंछ हाईवे पर पहुंच गई। 6 बजते-बजते वे दुश्मन के सामने थे। पाक सेना के जवानों ने जैसे ही भारतीय सेना की टुकड़ी को देखा सब इधर-उधर भागने लगे। इसके बाद सेना ने भी हमला बोल दिया और हाजीपीर पर कब्जा जमा लिया गया।

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