Indian Army के ‘स्पेशल 7’, 1971 भारत-पाकिस्तान युद्ध में दी थी देश के लिए कुर्बानी

पूरा देश और भारतीय सेना (Indian Army) इस साल 1971 के युद्ध में पाकिस्तान पर जीत की 50वीं वर्षगांठ मना रही है। 1971 युद्ध में देश के सबसे बड़ी जीत मिली थी। एक नया देश बांग्लादेश बना।

War of 1971

1971 War (File Photo)

साल 1971 में हुए भारत-पाकिस्तान युद्ध में भारतीय सेना (Indian Army) के ‘स्पेशल 7’ ने देश के लिए अपने जान की बाजी लगा दी थी।

पूरा देश और भारतीय सेना (Indian Army) इस साल 1971 के युद्ध में पाकिस्तान पर जीत की 50वीं वर्षगांठ मना रही है। 1971 युद्ध में देश के सबसे बड़ी जीत मिली थी। एक नया देश बांग्लादेश बना। इस युद्ध में तकरीबन 3 लाख लोगों ने अपनी जान गंवाई थी।

साल 1971 में हुए भारत-पाकिस्तान युद्ध में Indian Army के एक ही बैच के 7 अधिकारियों ने देश के लिए अपने जान की बाजी लगा दी थी। ये वो अधिकारी थे जिन्हें ऑफिसर्स ट्रेनिंग स्कूल से निकले कुछ वक्त ही हुआ था।

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पासिंग आउट परेड के बाद 9 महीने से भी कम वक्त में ये सात अधिकारी देश के लिए शहीद हो गए। 50 साल पहले 14 मार्च, 1971 को मद्रास के ऑफिसर्स ट्रेनिंग स्कूल से कई अधिकारी पास होकर निकले। ऑफिसर्स ट्रेनिंग स्कूल के 1971 बैच में 222 सैनिकों को स्थायी कमीशन मिला। इनमें से जल्द ही अधिकांश अधिकारियों की तैनाती अलग-अलग सीमाओं पर हो गई।

इनमें से 6 मेजर जनरल तक पहुंचे, 18 ब्रिगेडियर और 60 कर्नल बनें। इस बैच के सेकेंड लेफ्टिनेंट भारत सिंह कसाना , सेकेंड लेफ्टिनेंट धर्मपाल यादव , सेकेंड लेफ्टिनेंट एस एम सभरवाल, सेकेंड लेफ्टिनेंट विक्रम बर्न अप्पलास्वामी, सेकेंड लेफ्टिनेंट विनी कौल, सेकेंड लेफ्टिनेंट गिरिजा शंकर नायर, सेकेंड लेफ्टिनेंट के एम मदाना। ये सभी 71 की लड़ाई में देश के लिए लड़ते हुए शहीद हो गए।

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इनमें से एक सेकेंड लेफ्टिनेंट सभरवाल ने 1971 के युद्ध के दौरान कारगिल सेक्टर में तीन पाकिस्तानी चौकियों पर कब्जा कर लिया। लेफ्टिनेंट सभरवाल के भाई विनोद बताते हैं, “कुछ अधिकारी उनके रेडियो ऑपरेटर और उनकी बटालियन के कुछ हमला करने के वक्त लापता हो गए थे। मेरे बड़े भाई ने रात में करगिल में एक प्वाइंट पर कब्जा कर लिया था। लेकिन अगली सुबह पाकिस्तान की ओर से हमला किया गया। कहा जाता कि सभरवाल की बंदूक जाम हो गई और उनको मार दिया गया या बंदी बना लिया गया पता नहीं चला। पाकिस्तान की जेल में उनके बारे में कुछ विदेशी खबरें थी। आज तक हम निश्चित रूप से कुछ भी नहीं जानते।”

वहीं, सेकेंड लेफ्टिनेंट धर्मपाल ने पूर्वी मोर्चे पर कई दुश्मनों के बंकरों को नष्ट कर दिया। दुश्मन के बंकर पर हमला करते वक्त उन्हें सिर में गोली लगी थी। शहीद धर्मपाल के बेटे देवेंद्र कुमार अपने पिता को याद करते हुए कहते हैं, “जब मेरे पिता धर्मपाल जी शहीद हुए उस वक्त मैं चार साल का था और मेरी बहन दो साल की। हमें सौभाग्य महसूस होता है कि सरकार अभी मेरे पिता और उनके सहयोगियों को बलिदान को याद करती है।”

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इसके अलावा, भारत सिंह कसाना ने भी अदम्य साहस का परिचय दिया था। उन्होंने दुश्मन के इलाके पर कब्जा जमा लिया था।उन्हें मरणोपरांत वीर चक्र से नवाजा गया था। 

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