धन सिंह थापा ने 15 चीनी जवानों को बिना हथियार ही उतार दिया था मौत के घाट, पढ़ें इनकी वीरता की कहानी

13 अक्टूबर, 1962 के दिन चीनी सेना पैंगोंग झील के पास स्थित शिरजाप और यूला पर कब्जा करने की फिराक में थी। भारत ने भी इस पैंगोंग झील के पश्चिम में अपनी पोस्ट पहले से बनाई हुई थी। इसमें फर्स्ट बटालियन और 8 गोरखा रायफल को कमान सौंपी गई थी।

Dhan Singh Thapa

परमवीर चक्र विजेता लेफ्टिनेंट कर्नल धन सिंह थापा।

चीन की सेना ने लेफ्टिनेंट कर्नल धन सिंह थापा (Dhan Singh Thapa) को अपनी कैद में रखकर जबरदस्त टॉर्चर किया। बाद में नियमों के मुताबिक चीन को उन्हें वापस को सौंपना पड़ा।

भारत ने चीन के खिलाफ साल 1962 में युद्ध लड़ा था। युद्ध की वजह से सीमा विवाद थी। चीन हमेशा से भारत की जमीन पर अपना कब्जा जमाने की फिराक में रहता है। बॉर्डर पर चीन के साथ भारत का सीमा विवाद सालों से चला आ रहा है। इस युद्ध में रक्षा और सियासी बलों के कारण भारत को हार का सामना करना पड़ा था। इसमें भारत के कई सैनिक शहीद हुए थे।

इस युद्ध में भारत ने दुश्मनों को मुंहतोड़ जवाब देने की कोशिश की थी। युद्ध में एक जवान ऐसे भी थे, जिनके पराक्रम के आगे दुश्मन थर्र-थर्र कांपने लगे थे। इस योद्धा का नाम लेफ्टिनेंट कर्नल धन सिंह थापा (Dhan Singh Thapa) था। गोरखा रेजीमेंट के थापा ने दुश्मन पर ऐसा कहर बरपाया कि उन्हें इसके लिए सेना के सर्वोच्च सम्मान ‘परमवीर चक्र’ से सम्मामित किया गया।

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दरअसल, 13 अक्टूबर, 1962 के दिन चीनी सेना पैंगोंग झील के पास स्थित शिरजाप और यूला पर कब्जा करने की फिराक में थी। भारत ने भी पैंगोंग झील के पश्चिम में अपनी पोस्ट पहले से बनाई हुई थी। इसमें फर्स्ट बटालियन और 8 गोरखा रायफल को कमान सौंपी गई थी। ये पोस्ट रणनीतिक रूप से बेहद ही अहम थी क्योंकि अगर चीनी सेना इसपर कब्जा जमा लेती तो वह आसपास के इलाकों में भी कब्जा जमा लेती।

सबसे बड़ी बात, अगर ऐसा होता तो चुशुल एयरफील्ड से सप्लाई बंद हो जाती क्योंकि रास्ता ब्लॉक हो जाता। लेफ्टिनेंट कर्नल धन सिंह थापा (Dhan Singh Thapa) इस पोस्ट की अहमियत को जानते थे, इसलिए उन्होंने साहस का परिचय दिया और अपने साथियों को भी इसके लिए प्रोत्साहित किया। उन्होंने कहा था कि शहीद होने से पहले एक-एक भारतीय जवान 10-10 चीनी सैनिकों को मार गिराएगा।

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करीब 48 किलोमीटर एरिया में थापा की टुकड़ी में कुल 28 जवान थे, जबकि 600 चीनी सैनिकों ने उनपर हमला बोल दिया था। 20 अक्टूबर को सुबह साढ़े चार बजे चीनी सैनिकों ने हमला कर दिया, जिसके जवाब में थापा और उनकी टुकड़ी ने मुंहतोड़ जवाब दिया। जब पहला हमला हुआ तो चीनी जवान 146 मीटर दूर थे लेकिन अटैक के बाद यह दूरी 46 मीटर ही रह गई थी। चीनी सेना 100 मीटर आगे बढ़ गई थी।

इसके बाद दूसरा अटैक हुआ तो चीनी सेना और आगे आ गई। इसके बाद भारतीय सेना के सिर्फ तीन ही जवान जिंदा थे जिनमें से एक थापा भी थे। तीसरे अटैक से पहले वह समझ गए कि अब अगला हमला होने वाला है। इसी दौरान कर्नल धन सिंह थापा (Dhan Singh Thapa) ने खूकरी और बंदूक थाम ली और चीनी सेना पर अपना कहर बरपाते गए। उन्होंने हैंड टू हैंड फाइट किया। इस दौरान खूकरी से ही वह चीनी जवानों को ढेर करते गए।

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उन्होंने कुल 10 से 15 चीनी सैनिकों को सिर्फ खूकरी से ही ढेर कर दिया था। हालांकि, तबतक चीनी सेना शिरजाप पर कब्जा कर चुकी होती है। इस दौरान चीन की सेना ने लेफ्टिनेंट कर्नल धन सिंह थापा (Dhan Singh Thapa) को अपनी कैद में रखकर जबरदस्त टॉर्चर किया। बाद में नियमों के मुताबिक चीन को उन्हें वापस को सौंपना पड़ा। उन्हें इस अदम्य साहस के लिए ‘परमवीर चक्र’ से सम्मानित किया गया। 5 सितंबर, 2005 को उनका देहांत हो गया था।

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