कारगिल युद्ध: … जब गांव के युवाओं ने की सेना की मदद, 20 किलोमीटर पैदल चलकर पहुंचाते थे सामान

Kargil War 1999: लद्दाख के लोअर लेह गांव के मोहम्मद अख्तर ने 1999 में भारतीय सेना के लिए स्वेच्छा से कई हफ्तों तक युद्ध के मैदान में मदद की थी।

Kargil War 1999: लद्दाख के लोअर लेह गांव के मोहम्मद अख्तर ने 1999 में भारतीय सेना के लिए स्वेच्छा से कई हफ्तों तक युद्ध के मैदान में मदद की थी। इसी तरह गांव के लोग 20-20 किलोमीटर पैदल चलकर सेना तक जरूरी सामान पहुंचाते थे।

भारत और पाकिस्तान के बीच 1999 में लड़े गए कारगिल युद्ध में भारतीय सेना की जीत हुई थी। सामरिक रूप से महत्वपूर्ण कारगिल के क्षेत्रों पर पाकिस्तानी सेना ने धोखे से कब्जा किया था। पाकिस्तानी सेना को हराने के लिए हमारे जवानों की मदद लद्दाख के युवाओं ने भी की थी। ये लोग भारतीय सेना के पीछे चट्टान की तरह खड़े थे।

लद्दाख के लोअर लेह गांव के मोहम्मद अख्तर ने 1999 में भारतीय सेना के लिए स्वेच्छा से कई हफ्तों तक युद्ध के मैदान में मदद की थी। इसी तरह गांव के लोग 20-20 किलोमीटर पैदल चलकर सेना तक जरूरी सामान पहुंचाते थे। गांव के युवा कड़ाके की ठंड में भी बिना रुके कई किलोमीटर चलते और सेना तक सामान पहुंचाते थे।

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सेना को खाने का सामान पहुंचाना हो या फिर रास्ता दिखाना हो। लद्दाख के युवाओं ने अपनी तरफ से हर संभव मदद की थी। सेना को मिली इस मदद की बदौलत ही जंग के मैदान में दुश्मनों को पटखनी देने में सेना को कामयाबी मिल सकी थी।

वहीं कारगिल के गरकौन गांव में रहने वाला ताशी नामग्‍याल ने भी सेना की मदद की थी। पेशे से चरवाहा ताशी नामग्‍यालताशी ने कुछ दिनों पहले ही 12 हजार रुपए में एक यार्क खरीदा था, जब वह इसे चराने के लिए गए तो वह खो गया। इसी दौरान उन्होंने दुश्मनों को सबसे पहले देखा और सेना तक इसकी जानकारी पहुंचाई। इन्हीं की सूचना के आधार पर सेना पहले से तैयार हो सकी थी।

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