गांव में मंदिर बनवाकर लगवाई इकलौते शहीद बेटे की मूर्ति, ऐसी होती है मां की ममता

भारत और पाकिस्तान के बीच 1999 में कारगिल युद्ध (Kargil War) लड़ा गया था। इस युद्ध में भारतीय सेना ने पाकिस्तान को बुरी तरह से हराया था। पाकिस्तान को ऐसा सबक सिखाया गया था जिसे वो आज तक याद रखता है।

कारगिल युद्ध (Kargil War) में बेटे की शहादत के बाद मां ने सहायता के तौर पर प्राप्त पैसों से गांव में एक मंदिर बनवाया। इस मंदिर में उन्होंने अपने लाल की मूर्ति लगवाई है।

भारत और पाकिस्तान के बीच 1999 में कारगिल युद्ध (Kargil War) लड़ा गया था। इस युद्ध में भारतीय सेना ने पाकिस्तान को बुरी तरह से हराया था। पाकिस्तान को ऐसा सबक सिखाया गया था जिसे वो आज तक याद रखता है।

युद्ध में जीत के लिए हमारे 527 सैनिकों ने शहादत दी थी। कई जवान घायल हुए थे। जीत आसानी से नहीं बल्कि सेना के तप से मिली थी। युद्ध में यूं तो सभी जवानों की भूमिक अहम होती है लेकिन कुछ जवान ऐसे होते हैं जो अपनी बहादुरी की मिसाल पेश कर शहादत देते हैं।

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इस युद्ध में उत्तराखंड के अल्मोड़ा में स्थित खड़ाऊं गांव के वीर सैनिक मोहन सिंह बिष्ट ने भी शहादत दी थी। उनकी वीरता को तो लोग याद करते ही हैं, साथ ही साथ उनकी दिवंगत मां देबुली देवी को भी नहीं भूलते।

बेटे की शहादत के बाद मां ने सहायता के तौर पर मिले पैसों से गांव में एक मंदिर बनवाया। इस मंदिर में उन्होंने अपने लाल की मूर्ति लगवाई है। गांव के लोग खास अवसरों पर मंदिर परिसर में जाकर शहीद मोहन सिंह और उनकी मां देबुली को याद करते हैं।

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बेटे की याद में मां ने गांव में महादेवेश्वर मंदिर के पास राधा-कृष्ण का मंदिर बनवाकर उसमें बेटे की मूर्ति भी लगवाई है। कारगिल युद्ध (Kargil war) के दौरान मोहम 4 जुलाई, 1999 को शहीद हुए थे। बता दें कि इस युद्ध में अल्मोड़ा जिले से नौ जवान शहीद हुए थे। इन सभी जवानों की याद में नगर के शिखर तिराहे पर स्थित शहीद चौक के समीप शहीद पार्क भी बनाया गया है।

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