गिलगित-बाल्टिस्तान को पाकिस्तान बनाना चाहता है 5वां प्रांत, भारत ने दिया दो टूक जवाब; ये है विवाद की वजह

रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने साफ शब्दों में कहा है कि गिलगित-बाल्टिस्तान (Gilgit-Baltistan) सहित पूरा पीओके (PoK) भारत का अभिन्न अंग है। दरअसल, गिलगित बाल्टिस्तान कूटनीति काफी महत्वपूर्ण हिस्सा है।

Gilgit-Baltistan

फाइल फोटो।

भारत ने साफ साफ कह दिया है कि इमरान खान ने गिलगित-बाल्टिस्तान (Gilgit-Baltistan) को प्रांत बनाने और उसका दर्जा बदलने की जो कोशिश की है वो भारत को मंजूर नहीं है।

रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने साफ शब्दों में कहा है कि गिलगित-बाल्टिस्तान (Gilgit-Baltistan) सहित पूरा पीओके (PoK) भारत का अभिन्न अंग है। दरअसल, गिलगित बाल्टिस्तान कूटनीति काफी महत्वपूर्ण हिस्सा है। पाकिस्तान, गिलगित बाल्टिस्तान को अपना प्रांत बनाकर वहां कूटनीतिक रूप से बढ़त बनाना चाहता है। लेकिन भारत, पाकिस्तान की इस नीति को कामयाब नहीं होने देगा।

भारत ने साफ साफ कह दिया है कि इमरान खान ने गिलगित बाल्टिस्तान को प्रांत बनाने और उसका दर्जा बदलने की जो कोशिश की है वो भारत को मंजूर नहीं है। पाकिस्तान में इमरान खान इस वक्त हर तरफ से घिरे हुए हैं। गिलगित-बाल्टिस्तान को अंतरिम सूबा बनाने के ऐलान से इमरान खान को खुद को बचाने का रास्ता दिख रहा है।

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बता दें कि गिलगित-बाल्टिस्तान को अपना पांचवां प्रांत बनाने का पाकिस्तान का पुराना प्लान रहा है। लेकिन पाकिस्तान चाहकर भी ये कभी नहीं कर पाया, क्योंकि वैश्विक मंच पर वह कश्मीर के पूरे इलाके को विवादित बताता है और भारत के इस अभिन्न हिस्से को भारत से अलग मानता है।

इसलिए कश्मीर पर कुछ बोलने से पहले अब उसे गिलगित-बाल्टिस्तान (Gilgit-Baltistan) पर जवाब देना होगा। वहीं, भारत ने भी दो टूक कह दिया है कि गिलगित भारत का अभिन्न हिस्सा है और इसमें कोई बदलाव मंजूर नहीं। इसके साथ ही भारत ने कहा है कि पाकिस्तान पीओके तुरंत खाली करे।

रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण

दरअसल, गिलगित-बाल्टिस्तान कश्मीर प्रांत के तहत आता है, इसलिए ये पूर्ण रुप से भारत का हिस्सा है। इस इलाके को उत्तरी क्षेत्र यानी नार्दन एरियाज कहा जाता था। जम्मू-कश्मीर का पूरा इलाका 2 लाख 22 हजार 236 वर्ग किलोमीटर का है। जिसमें से 1 लाख 21 हजार वर्ग किलोमीटर पाकिस्तान और चीन के कब्जे में है। गिलगित-बाल्टिस्तान पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर का हिस्सा है।

73 हजार वर्ग किलोमीटर के इस इलाके में करीब 20 लाख लोग रहते हैं। इसके उत्तर में चीन और अफगानिस्तान, पश्चिम में पाकिस्तान का खैबर पख्तूनख्वा प्रांत और पूरब में भारत है, इसकी सीमाएं उत्तर-पूर्व में चीन के शिन्जियांग प्रांत से जुड़ती हैं।

इसी वजह से यह इलाका भारत, चीन और पाकिस्तान, तीनों के लिए सामरिक दृष्टि से बेहद महत्वपूर्ण है। अफगानिस्तान और चीन का बॉर्डर होने से ये इलाका रणनीतिक रूप से अहम है। इस इलाके से ही होकर पाकिस्तान के अंदर चीन का आर्थिक कॉरिडोर जाता है।

इलाके को लेकर साफ नहीं है पाकिस्तान का रुख 

पाकिस्तान ने गिलगित-बाल्टिस्तान (Gilgit-Baltistan) पर अवैध कब्जा किया था। साल 1947 में अवैध कब्जे के करीब 23 साल बाद गिलगित-बाल्टिस्तान के लिए पाकिस्तान ने अलग प्रशासन बनाया और 62 साल बाद 2009 में इसे सीमित स्वायत्ता दी।

गिलगित-बाल्टिस्तान दो बार स्वतंत्रता दिवस मनाता है। एक 14 अगस्त को, जब पाकिस्तान अपना स्वतंत्रता दिवस मनाता है और दूसरा एक नवंबर को, जब यह इलाका 1947 में हासिल की गई अपनी आजादी को याद करता है। ये आजादी महज 21 दिन तक ही टिक पाई थी। तब से आज तक पाकिस्तान का रुख इस इलाके की संप्रभुता और संवैधानिक स्थिति को लेकर स्पष्ट नहीं है।

ये है चीन की प्लानिंग

पाकिस्तान ने बाद में गिलगित-बाल्टिस्तान (Gilgit-Baltistan) के उत्तर में मौजूद एक इलाके को कारकोरम राजमार्ग के निर्माण के लिए चीन को दे दिया। चीन ने इस इलाके के खनिजों और संसाधनों के दोहन के लिए बड़े पैमाने पर निवेश किए हुए हैं। इस क्षेत्र में चीन की पहुंच और पाकिस्तान के अवैध शासन ने वहां पर अलगाववादी आंदोलन को भी जन्म दिया।

इस क्षेत्र के लोग तीन हजार किलोमीटर लंबे चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे यानी सीपेक का विरोध कर रहे हैं। इस परियोजना में चीन ने 46 अरब डॉलर का निवेश किया है। चीन का प्लान यह है कि दक्षिण पाकिस्तान को सड़क, रेलवे और पाइपलाइन के एक जाल के जरिए पश्चिमी चीन से जोड़ दिया जाए। चीन अपनी इस नीति के जरिए पूरे क्षेत्र पर कंट्रोल कर लेना चाहता है।

पाकिस्तान का संविधान नहीं देता इजाजत

बता दें कि पाकिस्तान का संविधान गिलगित-बाल्टिस्तान (Gilgit-Baltistan) या पीओके (PoK) को पाकिस्तान में मिलाने की इजाजत नहीं देता। गिलगित-बाल्टिस्तान में कहने के लिए अलग विधानसभा है, अलग मुख्यमंत्री होता है, लेकिन सबकुछ इस्लामाबाद से संचालित होता है। कहा जा रहा है कि गिलगित-बाल्टिस्तान पर फैसले की एक बड़ी वजह चीन भी हो सकता है।

चीन ने इस इलाके में अरबों डॉलर लगाए हैं। लेकिन भारत के कड़े रवैये की वजह से चीन अपने इस निवेश को लेकर परेशान है। इसीलिए वह पाकिस्तान से गिलगित-बाल्टिस्तान का स्टेटस क्लियर करने को कह रहा है। हो सकता है कि चीन के दबाव में ही इमरान और बाजवा ने गिलगित-बालिस्तान को अपना अंतरिम सूबा बनाने का ऐलान किया हो।

विवाद का इतिहास

दरअसल, 1947 में भारत विभाजन के समय यह क्षेत्र, जम्मू-कश्मीर की तरह न भारत का हिस्सा रहा और न ही पाकिस्तान का। डोगरा शासकों ने अंग्रेजों के साथ लीज डीड को 1 अगस्त, 1947 को रद्द करते हुए क्षेत्र पर अपना नियंत्रण कायम कर लिया लेकिन, महाराजा हरि सिंह को गिलिगित स्काउट के स्थानीय कमांडर कर्नल मिर्जा हसन खान के विद्रोह का सामना करना पड़ा।

खान ने 2 नवंबर, 1947 को गिलगित-बाल्टिस्तान (Gilgit-Baltistan) की आजादी का ऐलान किया। इससे पहले हरि सिंह इस रियासत के भारत में विलय को मंजूरी दे चुके थे। 21 दिन बाद पाकिस्तान इस क्षेत्र में दाखिल हुआ और सैन्य बल का प्रयोग करके इस क्षेत्र पर कब्जा कर लिया। 27 अप्रैल, 1949 तक गिलगित-बाल्टिस्तान को पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर का हिस्सा माना जाता था।

लेकिन 28 अप्रैल, 1949 को पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर की सरकार के साथ एक समझौता हुआ, जिसके तहत गिलगित के मामलों को सीधे पाकिस्तान की केंद्र सरकार के अधीन कर दिया गया। इसे कराची समझौते के नाम से जाना जाता है। लेकिन गौर करने वाली बात ये है कि क्षेत्र का कोई भी नेता इस समझौते में शामिल नहीं था। यह एक तरह की राजनीतिक जबरदस्ती थी। इस तरह 28 अप्रैल, 1949 से गिलगित-बाल्टिस्तान पर पाकिस्तान सरकार का सीधा नियंत्रण है।

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