Kargil War: सीने हो गए छलनी, मगर पीछे नहीं हटे कदम; पढ़ें राजपूताना राइफल्स-टू के पराक्रम की कहानी

कारगिल युद्ध (Kargil War) में राजपूताना राइफल्स-टू ने अहम भूमिका अदा की थी। इस बटालियन के जवानों ने दुश्मनों से हर मोर्चे पर लोहा लिया और ज्यादा से ज्यादा नुकसान पहुंचाने की कोशिश की।

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Kargil War: राजपूताना राइफल्स-टू की वीरता और बलिदान में नायक ऋषिपाल सिंह का देशप्रेम अमिट है। उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर के किसान मनसुख के घर में जन्में इस जवान के बलिदान के आज भी चर्चे होते हैं।

भारत और पाकिस्तान के बीच 1999 में लड़े गए कारगिल युद्ध (Kargil War) में राजपूताना राइफल्स-टू ने अहम भूमिका अदा की थी। इस बटालियन के जवानों ने दुश्मनों से हर मोर्चे पर लोहा लिया और ज्यादा से ज्यादा नुकसान पहुंचाने की कोशिश की। हालांकि, अन्य बटालियन का भी इस युद्ध में अहम योगदान रहा था।

राजपूताना राइफल्स-टू की वीरता और बलिदान में नायक ऋषिपाल सिंह का देशप्रेम अमिट है। उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर स्थित शाहपुर क्षेत्र के गांव कुटबी निवासी किसान मनसुख के घर में जन्में इस जवान के बलिदान के आज भी चर्चे होते हैं।

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ऋषिपाल सिंह बचपन से ही आर्मी में अपनी सेवाएं देना चाहते थे। उन्होंने बड़े होने पर ऐसा ही किया और कम उम्र में ही सेना में शामिल हो गए। कारगिल युद्ध के दौरान उन्होंने इस युद्ध से जुड़े अपने अनुभव को साझा किया है। वे बताते हैं, “18 हजार फीट की ऊंचाई पर पहाड़ के दुर्गम रास्तों से चोटी पर बनी दुश्मन की बंकर तक पहुंचना कठिनाइयों भरा था। दुश्मन घात लगाकर बैठे हुए थे।”

वे आगे बताते हैं, “हमारी एक भूल पूरी बटालियन पर भारी पड़ जाती थी। दुश्मन फायरिंग कर हमें वापस ढकेल देते थे लेकिन हम फिर से सीना तान कर उनतक पहुंचते थे। कई किलोमीटर चलने के बाद दुश्मनों के अड्डों पर पहुंचकर ताबड़तोड़ फायरिंग की जाती थी। हमारे कई जवानों के सीने छलनी हो गए थे मगर कदम पीछे नहीं हटे।”

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ऋषिपाल सिंह आगे बताते हैं, “सूखे खाद्य पदार्थों से जंग में भूख मिटाई जाती थी। मैंने अपने बेटों डिंपल और चंचल को सेना में भेजकर देशभक्ति का समर्पण दिखाया है। मैं 2000 में रिटायर होकर कुटबी लौट आया था। इस दौरान मैं बैंक में सुरक्षाकर्मी के तौर पर भी अपनी सेवाएं देता रहा हूं।”

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