War of 1971: सूबेदार मेजर अमर सिंह की बहादुरी की कहानी, दुश्मन को सामने देखते ही उतार देते थे मौत के घाट

युद्ध में हिस्सा लेने वाले जवान गांव नाहड़ निवासी सूबेदार मेजर अमर सिंह भी शामिल हुए थे। उन्होंने बताया है कि वे कैसे जंग के मैदान में लड़े थे।

Subedar Major Amar Singh

कई दिनों तक भूखे दुश्‍मनों से लड़े थे सूबेदार मेजर अमर सिंह।

War of 1971: युद्ध में हिस्सा लेने वाले जवान गांव नाहड़ निवासी सूबेदार मेजर अमर सिंह (Subedar Major Amar Singh) भी शामिल हुए थे। 

भारत और पाकिस्तान के बीच 1971 में लड़े गए युद्ध (War of 1971) में इंडियन आर्मी (Indian Army) ने बहादुरी और बलिदान के जरिए देश सेवा का परिचय दिया था। युद्ध में भारत को एकतरफ जीत मिली। युद्ध बांग्लादेश की आजादी और पाकिस्तान की मानवता पर प्रताड़ना के खिलाफ लड़ा गया था।

साल 1971 के आखिरी महीनों में लड़े गए इस युद्ध में भारतीय सेना ने ऐसा पराक्रम दिखाया था जिसे यादकर दुश्मन देश की सेना आज भी थर-थर कांप उठती होगी।

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इस युद्ध में हिस्सा लेने वाले जवान गांव नाहड़ निवासी सूबेदार मेजर अमर सिंह (Subedar Major Amar Singh) भी शामिल हुए थे। उन्होंने युद्ध के दौरान अपने अनुभव साझा करते हुए बताया है कि वे कैसे जंग के मैदान में कई दिनों तक भूखे ही दुश्मनों के खिलाफ लड़े थे। और किस तरह दुश्मनों को मौत के घाटा उतारा गया था।

वे बताते हैं कि युद्ध के दौरान असम से सिलीगुड़ी होते हुए कूच विहार और बांग्लादेश तक दुश्मनों से लड़ने के लिए गए थे। कई मौकों पर तो भूखे प्यासे दुश्मनों से लड़ा गया था। हेलीकॉप्टर से लगातार दुश्मन हम पर नजर बनाए हुए थे लेकिन हम घने जंगलों के बीच पेड़ों की टहनियों से छिपते हुए दुश्मनों के कैम्प तक पहुंच जाते थे।

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सूबेदार मेजर अमर सिंह आगे बताते हैं, “हमें जैसे ही पाकिस्तानी सैनिक दिखते हम उन्हें मौके पर ही ढेर कर देते थे। हम एक साथ धावा बोलते थे जिससे दुश्मनों को संभलने का मौका ही नहीं मिल पाता था। हालांकि इस दौरान हमारे भी जवान जवाबी फायरिंग में घायल हो गए थे। 1971 की लड़ाई का समय 28 साल के मेरे सेवाकाल का सबसे जोखिम भरा वक्त  रहा।’

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