1962 War: भारतीय सेना के ‘संकटमोचन’ थे दिवान सिंह गरभ्याल, जानें कैसे

भारत और चीन के बीच 1962 में लड़े गए युद्ध में भारतीय सेना (Indian Army) ने हर मोर्चे पर बेहतरीन प्रदर्शन करने की कोशिश की थी। युद्ध में चीनी सेना हमारे वीर सपूतों पर भारी पड़ी थी। चीनी सेना पूरी तैयारी के साथ भारतीय सेना के खिलाफ उतरी थी, जबकि हम आधी-अधूरी तैयारी के साथ लड़े थे।

Diwan Singh Garbhyal

दिवान सिंह गरभ्याल।

1962 War: चीन सीमा के पास गरभ्यांग गांव के रहने वाले 80 साल के बुजुर्ग दिवान सिंह गरभ्याल (Diwan Singh Garbhyal) सेना को खाना और हथियार पहुंचाते थे।

भारत और चीन के बीच 1962 में लड़े गए युद्ध में भारतीय सेना (Indian Army) ने हर मोर्चे पर बेहतरीन प्रदर्शन करने की कोशिश की थी। युद्ध में चीनी सेना हमारे वीर सपूतों पर भारी पड़ी थी। चीनी सेना पूरी तैयारी के साथ भारतीय सेना के खिलाफ उतरी थी, जबकि हम आधी-अधूरी तैयारी के साथ लड़े थे।

युद्ध के दौरान एक वक्त ऐसा आया था जब धारचूला से लिपूलेख तक पहुंचकर सेना को हथियारों की सप्लाई करने की जरूरत पड़ी थी। लिपूलेख पर भारत की सीमा चीन से लगती है।

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हथियार पहुंचाना बेहद जरूरी था, लेकिन धारचूला से लिपूलेख तक सड़क नहीं थी। इसके साथ ही पहाड़ी इलाका होने की वजह से यहां कभी भी पत्थर खिसक जाते हैं। ऐसे में चीन सीमा के पास गरभ्यांग गांव के रहने वाले 80 साल के बुजुर्ग दिवान सिंह गरभ्याल (Diwan Singh Garbhyal) सेना को खाना और हथियार पहुंचाते थे।

उन्होंने बेहद ही बहादुरी के साथ इस काम को अंजाम दिया था। दरअसल, उस समय धारचूला में आर्मी की सेना ब्रिगेड रहती थी। ऐसे में सेना को खाने का जरूरी सामान और हथियार पहुंचाना जरूरी होता था। ऐसा न करने पर सेना मोर्चे पर कमजोर साबित होती। ऐसे में प्रशासन की तरफ से दिवान सिंह गरभ्याल (Diwan Singh Garbhyal) को आदेश मिला कि उन्हें सेना की मदद करनी है।

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वे उन दिनों को याद कर बताते हैं, “जैसे ही हम आदेश हुआ कि सेना की मदद करनी है तो मैं और मेरे आस-पास के लोगों ने मदद करना शुरू कर दिया है। हम हथियार और खाना लेकर सेना तक पहुंचाते थे। कोई भी हथियार 30 पाउंड से कम नहीं होता था। यहां तक कि हमने सैनिकों तक जूते और टोपी भी पहुंचाए थे।”

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