3 बड़े नक्सलियों के लिए सुरक्षित ठिकाना बने झारखंड के ये जंगल, पुलिस के लिए बड़ी चुनौती

यह तीनों नक्सली (Naxalites) इतने खूंखार हैं कि तीनों का काम केवल खूनी खेल रचाना है। ये पुलिस को चकमा देने में बहुत माहिर हैं।

Naxalites

सांकेतिक तस्वीर।

नक्सलियों (Naxalites) के कई बड़े सरदार सारंडा जंगल में मौजूद हैं। यह एक ऐसा जंगल है, जहां दिन में भी जाने से डर लगता है। इस जंगल का क्षेत्र मात्र झारखंड में ही सीमित नहीं है बल्कि पश्चिम बंगाल, छत्तीसगढ़ और उड़ीसा के कुछ हिस्सों तक इस जंगल का फैलाव है। 

झारखंड (Jharkhand) के दक्षिणी छोटानागपुर प्रमंडल के अंदर आने वाले सराय केला, खूंटी और रांची के बीहड़ जंगल 3 बड़े नक्सलियों की शरण स्थली बन गए हैं। बीहड़ जंगल ही इन नक्सलियों (Naxalites) के लिए सुरक्षा कवच का काम कर रहे हैं।

इसमें मुख्य तौर पर 10 लाख का इनामी नक्सली महाराजा प्रमाणित, 5 लाख का इनामी बोधा पाहन और 15 लाख का इनामी नक्सली अमित मुंडा का नाम है। पुलिस और सुरक्षाबलों के रडार पर ये तीनों नक्सलियों का नाम सबसे पहले है।

यह तीनों नक्सली (Naxalites) इतने खूंखार हैं कि तीनों का काम केवल खूनी खेल रचाना है। वह चाहें आम पब्लिक हो या पुलिस। ये लोग पुलिस को भी चकमा देने में बहुत माहिर हैं।

पुलिस द्वारा लगातार इन नक्सलियों (Naxalites) की खोज करने के लिए सर्च अभियान चलाया जा रहा है। लेकिन ये पुलिस के हत्थे चढ़ नहीं पाते और चकमा देकर भाग जाते हैं।

बता दें कि झारखंड के दक्षिणी छोटानागपुर प्रमंडल के सराय केला, खूंटी और रांची में बीहड़ जंगल है। ये जंगल छोटी छोटी नदी नालों के साथ बड़े पेड़ों से घिरा हुआ है। इसमें सराय केला के कुचाई के साथ ही दलभंगा जंगल, खूंटी जिले के अड़की और रांची जिले के तमाड़ थाना क्षेत्र से सटे रायसिंदरी और जम्ब्रॉ पहाड़ी में नक्सलियों ने पनाह ले रखी है।

इस इलाके में बड़े-बड़े नक्सलियों के कई दस्ते सक्रिय हैं और अगर घनघोर जंगल की बात की जाए तो चाईबासा भी नक्सलियों के लिए सेफ जोन है। यहां सारंडा का जंगल मौजूद है।

बता दें कि नक्सलियों के कई बड़े सरदार सारंडा जंगल में मौजूद हैं। यह एक ऐसा जंगल है, जहां दिन में भी जाने से डर लगता है।

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इस जंगल का क्षेत्र मात्र झारखंड में ही सीमित नहीं है बल्कि पश्चिम बंगाल, छत्तीसगढ़ और उड़ीसा के कुछ हिस्सों तक इस जंगल का फैलाव है। जिसके कारण अगर नक्सली सारंडा के जंगल में घुस गया तो झारखंड पुलिस के लिए और उसे खोजना मुसीबत बन जाता है। क्योंकि जंगल के रास्ते ये नक्सली या तो पश्चिम बंगाल या तो अन्य राज्यों की सीमा क्षेत्र में चले जाते हैं।

नक्सलियों के ग्रुप आपसी समझौते के साथ सुरक्षाबलों को निशाने बनाने की फिराक में रहते हैं। नक्सलियों के कई छोटे-बड़े ग्रुपों ने सरायकेला, खूंटी एवं रांची को ट्राइंगल जोन का नाम दिया है जिसमें सुरक्षाबलों को नुकसान पहुंचाने के मकसद से इन छोटे बड़े नक्सली ग्रुपों के कई दस्ते हमेशा तैयार रहते हैं।

बता दें कि कुछ दिन पहले ही झारखंड की खूंटी पुलिस को बड़ी सफलता मिली थी। पांच लाख के इनामी नक्सली जीतराय मुंडा समेत सात नक्सलियों को गिरफ्तार किया गया था। इसमें नक्सलियों द्वारा जंगल में छिपे अन्य नक्सलियों और उनकी भविष्य की योजनाओं के बारे में भी पता लगा था।

नक्सलियों ने बताया था कि रांची, सराय केला, चाईबासा और खूंटी जिले में कई नक्सली घटनाओं की प्लानिंग की गई थी, जिसके बाद झारखंड पुलिस महानिरीक्षक के निर्देशानुसार जिले के एसपी ने सराय केला के राय सिंदरी, चाईबासा के चीते पाल, रांची के पिया कुल्ली में अभियान चलाकर भारी मात्रा में आईडी एवं गोला बारूद बरामद किया था।

जानकार सूत्रों की मानें तो रांची खूंटी, सराय केला का क्षेत्र एक दूसरे से सटा हुआ है। इसके कारण इन नक्सलियों ने इस क्षेत्र को त्रिकोणीय जोन का नाम दिया है।

इन तीनों क्षेत्र से नक्सलियों का समूह आर पार हो सकता है लेकिन पुलिस और सुरक्षाबलों के आगे इनकी अब एक भी नहीं चल रही है, इस वजह से इनके मंसूबों पर पानी फिर गया है।

बता दें कि 2019 के मुकाबले 2020 में इस क्षेत्र में कम नक्सली घटनाएं हुई हैं। इसका श्रेय झारखंड पुलिस और सीआरपीएफ के संयुक्त प्रयास को जाता है।

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