
15 साल की उम्र में उठा ले गए थे नक्सली।
‘पिता मर गए…यह बात तब पता चली जब मैं दो साल बाद घर आई…मां के मरने की खबर मिली थी लेकिन उस वक्त नक्सली आकाओं ने मुझे जाने नहीं दिया।’ मरने के बाद अपने माता-पिता का चेहरा तक नहीं देख सकी कोर्राम सुंदरी उर्फ ललिता की ये बातें नक्सलियों के जुल्म-ओ-सितम की कहानी बयां करने के लिए काफी हैं। यकीन मानिए छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा की रहने वाली सुंदरी की दर्दनाक कहानी को जानकर आपको नक्सलियों पर गुस्सा भी आएगा और बेबस सुंदरी पर दया भी।

साल 2005 में सुंदरी की उम्र महज 15 साल थी। मासूम सी लड़की को दूसरे बच्चों की तरह खेलना-कूदना काफी पसंद था। खास बात यह भी है कि सुंदरी को गाने का शौक भी था। सुंदरी अक्सर अपने मवेशियों को लेकर पास के जंगल में जाती थी। लेकिन एक दिन खूंखार नक्सलियों की नजर उसपर पड़ गई और वो उसे जंगल से उठा कर अपने साथ ले गए। मासूम बच्ची के घरवाले कतई नहीं चाहते थे कि उनकी बेटी नक्सली बने। बच्ची के परजिन अपनी बेटी का पीछा करते हुए जंगल तक पहुंचे… लेकिन नक्सलियों ने उसे किसी और इलाके में शिफ्ट कर दिया।
करीब दो सालों तक सुंदरी का अपने घरवालों से मिलना-जुलना ही नहीं हो पाया। इस बीच सुंदरी की मां का निधन हो गया। सुंदरी ने जब नक्सलियों से कहा कि उसे अपनी मां को अंतिम बार देखने जाना है तो नक्सलियों ने उसे ऐसा करने की इजाजत नहीं दी। सुंदरी ने जब मां से मिलने की जिद की तब नक्सलियों ने उसके बाल तक काट दिए।
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सुंदरी का दिल अपने घर जाने के हमेशा मचलता रहता था। लेकिन डर ये था कि कहीं नक्सलियों को इसकी भनक लग गई तो उसे जान से हाथ धोना पड़ेगा। करीब 7 साल तक जंगल में भटकने के बाद आखिरकार सुंदरी को वो मौका मिल ही गया। सुंदरी ने पुलिस के सामने सरेंडर कर दिया। सरेंडर करने के बाद सुंदरी ने बताया कि नक्सल संगठन में उसे काफी तकलीफ झेलनी पड़ी। दो जोड़ी कपड़े के साथ उन्हें रात में चलना, भटकना, सामान ढोना समेत कई मुश्किल काम करने पड़ते थे।
सुंदरी के माता-पिता अब इस दुनिया में नहीं हैं। परिजनों को खोने और उनकी जिंदगी के आखिरी पलों में उनके साथ ना होने का गम सुंदरी को जरुर है लेकिन सरेंडर के बाद उसे मिली एक आजाद और बेहतर जिंदगी ने उसे सुकून के कुछ पल जरूर दिए हैं। बचपन से गाने की शौकीन सुंदरी अब देश के वीर जवानों के लिए गाने लिखती है और उन्हें गाती भी है।
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