बीजापुर के नक्सल प्रभावित इलाके में बह रही विकास की बयार।
नक्सलवाद (Naxalism) को उखाड़ फेंकने के लिए सरकार और प्रशासन हर संभव कोशिश कर रहा है। सख्ती के साथ-साथ सरेंडर की नीतियां भी रंग ला रही हैं। इससे नक्सली (Naxals) मुख्यधारा से लगातार जुड़ रहे हैं। पर, नक्सलवाद के खात्मे के इस मिशन में उन इलाकों का विकास बेहद जरूरी है, जो लाल आतंक का दंश झेल रहे हैं। यही वजह है की सरकार और प्रशासन ऐसे इलाकों के विकास पर खास ध्यान दे रही है।
छत्तीसगढ़ के बीजापुर जिले का पंचायत पदेड़ा भी धुर नक्सल प्रभावित रहा है। लेकिन प्रशासन की कोशिशों से यहां के हालात बेहतर हो रहे हैं। ग्राम पंचायत पदेड़ा की तस्वीर 13 जुलाई को बदली-बदली नजर आ रही थी। यहां के साप्ताहिक बाजार में 17 साल बाद एक बार फिर से रौनक लौटी थी। जिन व्यापारियों ने सालों पहले लाल आतंक के डर से यहां दुकानें लगानी बंद कर दी थीं, उन्होंने फिर से यहां दुकानें लगाई थीं। आस-पास के कई गांवों से लोग यहां सामान खरीदने पहुंचे थे।
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बता दें कि गंगालूर के बाद पदेड़ा साप्ताहिक बाजार इलाके का सबसे बड़ा बाजार है। करीब 50 से भी अधिक गांवों के लोग रोज की जरूरतों का सामान खरीदने के लिए सीधे तौर पर इस बाजार पर निर्भर थे। लेकिन सलवा जुडूम के दौरान यह बाजार बंद हो गया था। जिसके बाद से गांव के लोगों को नदी पार चेरपाल या 14 किलोमीटर दूर जिला मुख्यालय बीजापुर जाना पड़ता था।
इस बाजार के दोबारा शुरू हो जाने से इलाके के लोगों को काफी आसानी होगी। उन्हें जरूरत के सामान के लिए इतनी दूरी तय नहीं करनी पड़ेगी। पदेड़ा के बाजार में ही आसपास के गांवों के लोगों को जरूरत के सभी सामान मिल जाएंगे।
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पदेड़ा के सरपंच गुड्डू कोरसा बताते हैं कि सलवा जुडूम के दौरान हिंसा के चलते साप्ताहिक बाजार बंद हो चुका था। जिसके कारण लोगों को जरूरत की सामग्री उपलब्ध नहीं हो पाती थी। पिछले तीन-चार सालों से बाजार को नए सिरे से शुरू करने की कोशिश की जा रही थी। पर नक्सलियों (Naxals) के डर से व्यापारी आने से कतरा रहे थे। जिसके बाद पंचायत प्रतिनिधियों और ग्रामीणों की सहमति से व्यापारियों को बीजापुर जाकर साप्ताहिक बाजार में दुकान लगाने के लिए आमंत्रित किया गया, जिसे उन्होंने स्वीकार कर लिया।
बता दें कि सत्रह साल पहले नक्सलियों के खिलाफ चलाए गए सलवा जुडूम अभियान के दौरान वीरान हो चुका यह गांव सरकार और प्रशासन के प्रयासों से इन दिनों विकास की राह पर है। संचार और सड़क सुविधाओं के साथ ही गांव में अब शिक्षा और कृषि के क्षेत्र में भी विकास होने लगा है। सलवा जुडूम के दौरान गांव से पलायन कर चुके लोग भी वापस आने लगे हैं। अब वह दिन दूर नहीं जब इस इलाके से नक्सलवाद (Naxalism) पूरी तरह खत्म हो जाएगा।
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