छत्तीसगढ़: सरकार के विकास कार्यों ने तोड़ी नक्सलवाद की कमर, इस तरह कमजोर पड़ रहे नक्सली संगठन

मौजूदा समय में नक्सली (Naxali) घटनाओं में आई भारी कमी पुलिस-प्रशासन के प्रयास का नतीजा है। बहरहाल छुट-पुट नक्सली घटनाओं को छोड़ दें तो बड़े नक्सली हमलों का रुकना, उसमें जवानों का हताहत ना होना और आम आदमी को डर के साए में ना जीना एक बड़ा पड़ाव है।

Naxali

नक्सलियों (Naxali) को जड़ से उखाड़ फेंकने के लिए छत्तीसगढ़ के धुर नक्सल प्रभावित जिला दंतेवाड़ा की पुलिस ने नई मुहिम शुरू की है।

भारत के सबसे ज्यादा नक्सल प्रभावित राज्य छत्तीसगढ़ में मौजूद माओवादी संगठनों को अपने ऊपर खतरा नजर आ रहा है। राज्य के 13 जिलों में नक्सलियों (Naxali) की हालत बद से बदतर हो चुकी है। केंद्र और राज्य सरकार के फैसलों का असर है कि सदियों तक विकास को तरसते आदिवासियों के लिए तमाम सरकारी योजनायें धरातल पर काम कर रही हैं। नक्सलवाड़ी के खूंखार नक्सली कमांडरों के लगातार हो रहे एनकाउंटर, सुरक्षाबलों की जागरूकता अभियान से भारी संख्या में नक्सलियों के सरेंडर और शासन-प्रशासन के प्रयास से तेजी से हो रहे विकास कार्यों का परिणाम ही है कि अब नक्सली बंदूक छोड़कर जीवन की सामाजिक-पारिवारिक धारा में लौट रहे हैं।

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घोर नक्सल प्रभावित छत्तीसगढ़ के बस्तर, राजनांदगांव, दंतेवाड़ा, सुकमा और बीजापुर जिलों में कोरोना के कारण नक्सली लड़ाके  समूह में आकर समर्पण कर रहे हैं। पिछले चार-पांच सालों में शासन-प्रशासन ने इलाके के अधिकतर बड़े नक्सलियों को मौत की नींद सुला दी है तो कुछ एनकाउंटर के डर से आत्मसमर्पण करके मुख्यधारा से जुड़ चुके हैं और ये सिलसिला लगातार जारी है। आलम ये है कि लोगों के बीच नक्सलियों (Naxali) की घटती लोकप्रियता और नौजवानों में बढ़ती उदासीनता के कारण नक्सली लड़ाकों की संख्या को पिछले 5-7 सालों में एक चौथाई रह गई है। 

राज्य में नक्सली संगठनों के लिए सबसे बड़ी चुनौती नये लड़ाकों की भर्ती है। स्थानीय अधिकारियों के अनुसार राज्य में आदिवासियों के भीतर पुलिस और प्रशासन के कार्यों पर भरोसा बढ़ा है। यहां सुरक्षाबल लगातार लोगों की सुविधाओं के लिए अस्पताल, स्कूल, सड़कें, बिजली, रोजगार और सुरक्षा जैसी मूलभूत जरूरतों का ध्यान रख रहे हैं। यही कारण है कि अब लोगों में नक्सलियों का खौफ खत्म होता जा रहा है। पुलिस, कानून और सरकार की नीतियों पर राज्य के लोगों का भरोसा दोबारा वापस लौटा है। अब गांव वाले खुद आगे आकर नक्सलियों का विरोध कर रहे हैं और अपने बच्चों को आतंक के रास्ते से हटाकर स्कूल-कॉलेज और नौकरियों पर जा रहे हैं।

प्रशासनीय प्रयासों के कारण घर की ओर लौट रहे हैं नक्सली (Naxali)

राज्य में नक्सलियों (Naxali) के पतन का सबसे बड़ा श्रेय पुलिस-प्रशासन को जाता है, जो लगातार जंगलों और रिमोट एरिया के गांवों जाकर लोगों को जागरूक कर रहे हैं और उन्हें सरकारी योजनाओं का लाभ पहुंचा रहे हैं। सुरक्षाबल पिछले दो-तीन सालों से ‘घर वापस आईए’ अभियान चला रहे हैं। इसका सकारात्मक परिणाम ये हुआ है कि आज नक्सली हथियार गिराकर समाज की मुख्य धारा में वापस लौट रहे हैं। इसके तहत नक्सली बन गए नौजवानों के परिवारवालों को ढूंढकर उन्हें जागरूक किया जाता है और उन्हें सामाजिक और कानूनी सुरक्षा देने का आश्वासन दिया जाता है। इसके बाद नक्सली लड़ाकों को उनके परिवार की मदद से हिंसा का रास्ता छोड़ने का संदेश भिजवाया जाता है। साथ ही नक्सलियों को यह विश्वास दिलाया जाता है कि उसके आत्मसमर्पण करने के बाद उसके साथ नियम और कानून के तहत ही व्यवहार होगा और उसे मुख्यधारा में लौटने के लिए सरकारी लाभ भी दिया जायेगा। तब जाकर बड़ी संख्या में नक्सलियों का आत्मसमर्पण संभव हो सका है।

मौजूदा समय में नक्सली (Naxali) घटनाओं में आई भारी कमी पुलिस-प्रशासन के इसी प्रयास का नतीजा है। बहरहाल छुट-पुट नक्सली घटनाओं को छोड़ दें तो बड़े नक्सली हमलों का रूकना, उसमें जवानों का हताहत ना होना और आम आदमी को डर के साए में ना जीना एक बड़ा पड़ाव है। नक्सली दल लगातार हतोत्साहित हो रहे हैं क्योंकि उन्हें संगठन चलाने के लिए नौजवान नही मिल रहे। छत्तीसगढ़ के नौजवानों को अब समझ में आ गया है कि शांति और सम्मान का जीवन ही सबके हित में है। वे शिक्षित होकर देशसेवा के साथ ही रोजगार करके अपने परिवार का पालन-पोषण कर सकते हैं।

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