गांव की भोली-भाली मेसी कैसे बन गई कुख्यात नक्सली कमांडर?

मेसी रूसी बेड़दा गांव की भोली-भाली लड़की थी, फिर ऐसा क्या हुआ कि वो बन गई खूंखार नक्सली कमांडर?

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गांव की एक सीधी-सादी लड़की आगे चलकर कुख्यात नक्सली सीमा मंडावी बन गई

बचपन में माता-पिता का साया सिर से उठने के बाद 12 साल की मेसी घर छोड़कर जंगल चली गई। नक्सलियों से मुलाकात होने के बाद उसने बंदूक थाम ली। इस तरह गांव की एक सीधी-सादी लड़की आगे चलकर कुख्यात नक्सली सीमा मंडावी बन गई। घर-परिवार से दूर रहकर लगातार नक्सली संगठन के लिए काम करते हुए अपराध की दुनिया में जाने के बाद वह किसी से कभी दोबारा नहीं मिली। मौत के बाद भी उसकी लाश परिजन नहीं देख पाए। जब तक रिश्तेदार धमतरी पहुंचे, उससे पहले ही लाश का अंतिम संस्कार हो चुका था। 18 जून को बोराई थाना क्षेत्र के कट्टीगांव-सिंघनपुर में नक्सलियों के बीच हुई मुठभेड़ में सीतानदी एरिया कमेटी की सचिव नक्सली सीमा मंडावी ढेर हो गई थी।

शव के पोस्टमार्टम के बाद अंतिम संस्कार के लिए शव ले जाने पुलिस उसके रिश्तेदारों का इंतजार कर रही थी। तीन दिनों के इंतजार के बाद भी जब कोई नहीं आया, तो जिला पुलिस ने शव का अंतिम संस्कार स्वर्गधाम सेवा समिति के माध्यम से करवा दिया। अंतिम संस्कार होने के दो दिन बाद नक्सली सीमा मंडावी के रिश्तेदार पहुंचे। वे महाराष्ट्र के गढ़चिरौली जिला के आलेवारा थाना क्षेत्र के बुरगी गांव से आए थे। मृत नक्सली सीमा मंडावी के भतीजे संजय नरोटी, दशरू टुक्का, माधव बेड़दा, मधुकर बेड़दा, बसु लेकामी जब शव लेने धमतरी पहुंचे, तो पुलिस ने नक्सली सीमा मंडावी के अंतिम संस्कार होने की जानकारी दी। मुठभेड़ में ढेर नक्सली सीमा मंडावी के भतीजे संजय नरोटी के मुताबिक, रिश्ते में सीमा मंडावी उनकी मौसी लगती थी।

वह गढ़चिरौली क्षेत्र के बुरगी गांव में अपने माता-पिता के साथ रहती थी। बचपन में सीमा मंडावी का नाम मेसी रूसी बेड़दा था। वह गांव की भोली-भाली लड़की थी। बचपन में उसके माता-पिता की मौत हो गई। लालन-पालन के लिए घर में कोई नहीं बचा। गांव में गुजर बसर करने में जब 12 साल की मेसी को समस्या होने लगी, तो वह अन्य रिश्तेदारों को बिना कुछ बताए अपने घर से निकल गई। रिश्तेदारों ने उसे ढूंढने कोशिश की, लेकिन वह कहीं नहीं मिली। इसी बीच वह नक्सलियों के संपर्क में आई और नक्सली संगठन में शामिल हो गई। बपचन में एक बार लापता होने के बाद वह कभी दोबारा गांव नहीं आई। सालों बाद मेसी की जानकारी जब गांव पहुंची, तब तक वह मर चुकी थी। मेसी का नाम बदलकर अब कुख्यात नक्सली सीमा मंडावी हो चुका था।

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